________________ भाषाटीकासहित.. 147 गढके भीतर चलागया, रानी के देखकर बादशाहका मन चंचल होगया, परन्तु ऊपरसे निष्कपट भाव दर्शा कर रानासे कहा, की आप लोगोंको जो कष्ट हमने दिया सो क्षमा करना, हमारी आपको अब आगेको सर्वदा प्रीति बढती रहेगी, रानाने अपने सरल स्वभावानुसार विचार किया कि, बादशाह हमारे साथ अकेलाही हमारे किलेमें चला आया, हमको भी इसकी वातपर विश्वास करना चाहिये, क्योंकि जिस प्रकार कोई अपना विश्वास करै उसी प्रकार उसकाभी विश्वास क्यों न किया जाय, यह विचार कर बादशाहको पहुंचाने के लिये किलेके बाहर रानाजी चले आये, बादशाहने रानाको बातोंमें लगाकर अपनी सेना तक पहुंचाया और तुरंत वहीं वंधवाकर कहा कि जब तक तुम अपनी रानीको नहीं दोगे तब तक हम तुमको नहीं छोडेंगे, यहां पर विचार करना चाहिये कि यवन बादशाह कितने छली और कपटी थे, क्षत्रियोंके सन्मुख वीरता दिखा कर किसी यवन बादशाहने विजय नहीं, L SO.. PP.AC.Gunratnasuri M.S: Gun Aaradhak Trust