________________ स्त्रोचरित्र. तैसे पियपद सुरति लगावै। म अंतकालसो हरिपुर जावै // हरि जन नामभजहिं करिप्रेमा। त्यौं राखै त्रिय प्रिय सननेमा॥ संतमजहि हरिलज्जा खोई। त्यौं पतिमजै दोष नहिं कोई // सुत वित नारि भवन सब त्यागी। भजहि नाम हरि जन अनुरागी॥ त्यौं त्रियभजै पियहि मनलाई / हित कुटुंब तजि सखी सुहाई॥ करें सत्यपति पद कर पूजा / तीनि लोक तेहि सम नहिं दूजा // ब्रह्म रुद्र हरिदेव मुआरा। पतिव्रताके आज्ञाकारा // 12 // * सकल देव रक्षाकरै, पतिसेवै जो नारि। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S; Jun Gun Aaradhak Trust