________________ भाषाटीकासहित. 187 जीतकर लौटता, या समर भूमिमें शत्रुके सन्मुख लड। कर प्राण दे देता, अब तू इस नगरमें आनेके योग्य नहीं हैं, क्योंकि मैं कायरका मुख देखना नहीं चाहती, द्वारपालोंसे कहा कि उस कायरको फाटकके भीतर नहीं आने देना, जिस समय रानीने सुना कि शत्रुकी सेना बहुत है, मेरा स्वामी जीत नहीं सकता, उस ससय रानीने निश्चय करलिया था कि मेरा पति रणमें पीठ नहीं दिखावेगा, अवश्य शत्रुकी सन्मुख युद्ध करके लड मरैगा.... - यह निश्चय कर रानीने एक चिता वनवा रक्खी थी कि सुनतेही जलकर भस्म हो जाऊंगी, जव रानीने सुना कि मेरे पतिने रणमें पीठ दिखाई है, तब पतिको अनेक दुर्वचन कहे, और पतिके आनेका निषेध करके एक सप्ताह पर्यन्त कोधमें आकर पड़ी रही; जब रानाकी माता उदयपुरसे आई, और समझाया वुझाया कि तुमारा पति दूसरी बार सेना लेकर जायगा, और अपनी पहली हारका बदला लूंगा, राजधर्ममें लिखा है कि अपनी हार P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust ..