________________ Charat भाषाटीकासहित.. 117 राज कहीं नहीं दीख पडै, संयोगताने महाराजा पृथ्वीराजकी प्रशंसा सुनकर अपने मनमें विचार लिया था कि, हमारे पति होनेके योग्य महाराज पृथ्वीराजही हैं, यदि महाराज पृथ्वीराजके संग विवाह न हुवा, तो मैं विवाह नहीं करूंगी संयोगता यह विचार करही रही थी कि इतनेमें उसकी दृष्टि महाराज पृथ्वीराजकी सुवर्णमूर्ति पर पडी तुरन्त जयमाल उस मूर्ति के गलेमें डाल दी और अपने पिता जयचन्द्रकी अप्रसन्नता और द्वेषका कुछ विचार न किया,तब उस सभाके बीच जितने राजा लोग बैठे थे, अपना अपना मन मारकर रह गये, यह समाचार जब महाराज पृथ्वीराजको पहुंचा, तो विचार किया कि अब मौन रहना ठीक नहीं है किसी उपायसे अपनी प्यारीको कन्नौजसे दिल्ली हाना चाहिये, यह विचार कविचन्दसे सम्मति की सम्मति करके कविचन्दके साथ सेवक वेषसे कन्नौजकी राजसभामें जाना निश्चय हुवा. - तब चुने हुये सरदार और कुछ सेना साथ लेकर PPPMSParirati P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun-Gun Aaradhak Trust