________________ - / भाषाटीकासहित... बनाया है और जयचन्दको चन्द्रमा कहकर नक्षत्रपति, मंतिमन्द आदि शब्द जान बूझकर कहे हैं. - यह सुनकर जयचन्द्रने कवि चन्द्रको बैठनेके लिये संकेत किया, तब कविचन्द्र बैठ गये और पृथ्वीराजसे बक वेपसे कविचन्द्रके पीछे खडे रहे अनन्त महाराज जयचन्द और कविचन्द्रमें बात चीत हुई. - जयचन्द्र-( कुछ रुखावटसे ) कविराज, तुमारे यहां - कुशल है.. कविचन्द्र-हां महाराज, हमारे यहांकी कुशलमें क्या दोहा. राजनीति चतुरङ्गबल,धर्म बुध्दि बल पाय। करै नवेद विरुध्द रुचि,क्यौं न कुशल दरशाय // 2 // इस दोहेमें कविचन्द्रने जयचन्द्रके वेद विरुद्ध यज्ञ करने पर आक्षेप किया है, और ध्वनिसे अशुभ सूचित किया है, तदनन्तर कुछ बात करके जयचन्द बोले info Sadirayanendra