Book Title: Narbhavdrushtantopnaymala
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 0 පපපපපපDපෙරපපප6 0 श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला ग्रन्थांक-३२३० पंडितश्रीनयविमलगणिविरचिता नरभवदृष्टांतोपनयमाला (प्राकृतबद्धा भावार्थसहिता) පපපපපපපපපපපපපපපාට පපපපපපපපපපපපපපපපපපපපත් संशोधकः संपादकश्चः प. आ. श्री विजयजिनेन्द्रसूरीश्वरः --: swrf6TGT :श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला පපපපපපපපපපපපපු0 Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . vo860000000000000000 ...त जैन ग्रन्थमाला ग्रन्थांक-३२३ 6. महावीर जिनेन्द्राय नमः 0 श्रीमणिबुद्ध्याणंदहर्षकर्पूरामृतसूरिभ्यो नमः / पंडितश्रीनयविमलगणिविरचिता नु वदृष्टांतोपनयमाला .. (प्राकृतबद्धा, भावार्थसहिता) संशोधकः संपादकश्चः प.शा. श्री विजयजिनेन्द्रसूरीश्वरः b . -: सहायक :त (1). पू. आ. श्री विजय जिनेन्द्र सू. म. उपदेशतः श्री पार्श्वभक्ति मू. जैन संघ डोंबीवली पांडुरंगवाडी, (2) पू. मु. श्री पुण्योदय वि. उपदेशतः कल्याण महावीर प्रभुचोक श्री राजस्थान जैन संघः, (3.) पू.सा.श्री कैव यरत्नाश्री उपदेशतः थाणा तपागच्छ जैन संघ चातुर्मास समितिः, (4) सुरत श्री शास्त्रीनगर n खटोदरा कोलोनी श्वे. मू. जैन संघः --: प्रकाशिका :___ श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला लाखाबावल-शांतिपुरी (सौराष्ट्र) Fo000000000000 0000000000000000000000 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . . - प्रकाशिका : श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रंथमाला-(लाखाबावल) . श्रुतज्ञान भवन 45 दि. प्लोट, जामनगर वीर सं. विक्रम सं. सन् . प्रथमावृत्तिः 2522 2052 1996 अतयः 750 आभार दर्शन अमारी ग्रंथमाला तरफथी श्रीनरभव दृष्टांतोपनयमाला प्रगट करतां आनंद थाय छे. आ ग्रंथy संपादन पू. आ. श्री विजयजिनेन्द्रसूरीश्वरजी म. ए कर्यु छे. आ ग्रंथर्नु प्रकाशन (1) पू.' आ. श्री विजय जिनेन्द्र सू. म. ना उपदेशथी श्री डोंबीवली पांडुडंगवाडी शांतिनगर श्री पार्श्वभक्ति श्वे. मू. जैन संघ, (2) पू. मु. श्री पुण्योदय वि. म. ना उपदेशथी कल्याण महावीर प्रभु चोक श्री राजस्थान संघ तथा (3) पू. सा. श्री कैवल्यरत्नाश्रीजी म. ना उपदेशथी थाणा तपागच्छ जैन संघ चातुर्मास समिति (4) सुरत खटोदरा कोलोनी शास्त्रीनगर श्री श्वे. मू. जैन संघ तरफथी प्रगट थयेल छे. तेमना सहकार माटे अनुमोदन करीए छीए. ता. 1-6-96 व्यवस्थापक जामनगर चत्रभुज मगनलाल महेता Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कंइक . श्री अरिहंत परमात्माओए मलेल मनुष्यभवने दुर्लभ कह्यौ छे ते दृष्टांतो आप्या छे ते दृष्टांतोना उपनयमां भोजन विगेरे मलवा सुलभ पण मनुष्य जन्म मलवो दुर्लभ वर्णव्यो छे. ___ आ दृष्टांत (1) भोजन (2) पासा (3) धान्य (4) जुगार (5) रत्न (6) स्वप्न (7) चक्र (8) काचबो (9) घोंसरु (10) परमाणुआ दश दृष्टांतोनुं आ ग्रंथमां ते अंगेनी कथा साथे वर्णन छे, एक एक दृष्टांते मानवभव दुर्लभ छे. .. आ दृष्टांतमाला प्राकृतमा छे तेना भावार्थ साथे प्रगट थाय छे जे बोधथी भरेल छे. आ ग्रंथमां 557 पद्यो छे अने तेना कर्ता पू. आणंदविमल सू. म. ना संतानीय पूं. पं. श्री नयविमलगणि छे. ... आ ग्रंथनुं वांचन मनन त्रोधक छे. जिने 2052 द्वि. अषाढ सुद-२ 45 दि. प्लोट, जामनगर Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ r my sur 9 "V . .106 85 -: अनु क्र मः :दृष्टांत पद्यानि . पृष्ठं चुल्लगनामा 141 . पासकनामा - 12 . धान्यनामा धुतनामा 12 रत्ननाभा रत्ननामा द्वितीयरीत्या 26. 71 स्वप्ननामा राधावेधनामा 115 कूर्मानामा . 23 1 युगशमिलानामा 24 149 परमाणुनामा 12 द्वितीयः दृष्टांतः 26 167 .. -: शुद्धिपत्रकम् :- . पंक्तिः . . शदम 48 17 वीधुं 48 18. मंती पुररजमंतं . 55-56 पेज 59 छे ते पेज 55 अने पेज 55 छे ते पेज 59 वाचवा नरजम्मो 4 पत्तो पत्तो 91 14 वीश 11 .. पृष्ठ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धम् पृष्ठं 94 99 . पंक्तिः . . 17. भणिओ सो केवलेहिं लद्धेहिं पूरओ चितिउं धीरे धीरे अंइबहल० अण्णो वि भमतो भमतो मलदेव . . 100 102. . 103 8 . 106 तेहि 106 108 निष्कंटक पेठे 115 122 123 124 126 . 162 167 168 190 176 12 . पञ्चुक्खा निवा सव्वे 20 परिणेसु / 6 त्रणु 17 तिअसस्स 2 आवश्यकचूर्णी 12 दसदिटुंतेहिं लद्धण प्पहावओ श्रीमदानन्द Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . - भंडार उपयोगी संस्कृत ग्रंथो - . 3-00 1 छन्दामृतरसः 2 धनञ्जय नाममाला 2-50 3 अनेकार्थसंग्रहः सटीक भाग-१ 15-00 4 , , भाग-२ 35-00 5 उपासकदशा टीका 5-00 6 अंतकृत अनुत्तरोपातिक टीका 9-00 7 आचारांग टीका भाग-१ , 35-00 8 , भाग-२ . 40-00 9 शांतिस्नात्रादिविधि समुच्चय 25-00 10 अनेकार्थ संग्रहः भाषांतर . , 30-00 11 रघुवंश मूल सर्ग टीका 16-00 12 कुमार संग्रह मूल (2 सर्ग टीका) 16-00 13 किरातार्जुनीय मूल (3 सर्ग टीका) 16-00 14 शिशुपालवधं (2 सर्ग टीका) 16-00 15 नैषधीयकाव्य मूलं (1 सर्ग टीका) 35-00 16 रघुवंश कुमारसंभव किरातार्जुनीय शिशुपालवध नैषधीय मेघदूत काव्यषटकं [1000 पृष्ठ] 150-00 17 मेघदूतमूल (पूर्वमेघटीका) 10-00 18 योगशास्त्र [भाषांतर 25-00 19 वैराग्यशतकादि शतकत्रय टीका 20-00 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // अहम् / / पूज्याचार्यदेवश्रीविजयराजतिलक सूरिभ्यो नमः / सिरितवगणगयणंगणदिणमणि . पंडियसिरिणय-विमलगणिविरइआ // . भावार्थ सहिता नरभवदिठंतोवनयमाला / 1 / अथ चुल्लकनामा प्रथमो दृष्टान्तः / नमिऊण नमिरसुरवरं,-किरोडमणिकिरणालीढकयसोहं / वीरजिणचलणजुयलं, वुच्छं दिटुंतपयरणयं // 1 // . भावार्थ:-नमनशीलदेवेन्द्रोना मुकुटमा रहेल मणिओना किरणोनी पंक्तिथी शोभा सम्पन्नथयेल श्रीवीरजिनेश्वरना चरणयुगलने प्रणाम करी नरभवदृष्टान्तोना प्रकरणने हुँ (नयविमल) जे ते कहीश // 1 // सिट्टो सव्वगिरीणं, जह मेरु तओ वि नंदणं रम्म / तमि पुण कप्परक्खो, तहा गईणमि मणुअगइ // 2 // भावार्थ:-जेवी रीते समस्तपर्वतोमा मेरुपर्वत श्रेष्ठ छे अने तेथी . पण नंदनवन विशेष रमणीय छ, नंदनवनमां पण कल्पवृक्ष विशेष चित्ताकर्षक छे, तेवी रीते नरक, तियंच, मनुष्य अने देव ए सघळी गति Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2 : : नरभवदिद्रुतोवन यमाला ओमां मनुष्य गतिनुं स्थान सर्वोत्तम छे / / 2 / / . . मुद्धा सव्वंगाणं, तंमि मुहं तंमि दिविजुयलं च / तंमि पुण कसिणतारा, तहा गईणमि मणुयत्तं // 3 // ___ भावार्थ:-जेबी रीते शरीरना तमाम अवयवोमां मस्तक, मस्तकमां मोढानो भाग, मोढाना भागमा पण बे नेत्र अने नेत्रोमां पण कीकीनें स्थान उत्तरोत्तर विशेष महत्त्वनुं स्थानक छे, तेवो रीते तमाम गतिओमां मोटाइथी परिपूर्ण मनुष्यगति छे / / 3 / / जह खीरं सुरसाणं तओ, दहि मंगलं तओ विनवणीअं / सपि तओ विसिटुं, तहा विसिळं खु मणुअत्तं / / 4 / / भावार्थ:-जेम सुंदररसवाली वस्तुओमा दुध ने तेथी दहिं मंगलमय, तेथी पण मांखण, मांखणथी पण घृत (घी) विशेषथी विशेष श्रेष्ठ लेखाय छे, तेवी रीते मनुष्य पणुं पण विशिष्ठता धरावे छे / / 4 / / जह विउलं गयणयलं, जोइसचक्क तओवि बिहुबिबं / अमयं तओ विसिट्ठ, तहा गईणमि मणुअगइ / / 5 / / भावार्थ:-जेम गगनमंडल विशाल छे ने तेमां ज्योतिषचक्र रम्य छे, तेमां पण चन्द्रबिम्ब ने चन्द्रमानी मध्ये पण अमृत विशेष रमणीय छे. तेवी रीते सकल गतिओमां मानवगति विशेष उच्च ने उपयोगी छे // 5 // Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (1) चूल्लकदृष्टान्त : सव्वेसि रयणाणं, चितामणिरयणमइवजुइमत / बछियपूरणदक्ख, तहा गईणमि मणुअत्त / / 6 / / - भावार्थ:-जेम तमामप्रकारना रत्नोमां चिंतामणिरत्न अत्यंत तेजस्वी होवा उपरांत वांछित वस्तुओने पूरी पाडवानी शक्ति धराबे छे, तेवी रीते मात्र मनुष्यगतिज इष्टने परिपूर्ण रीते सिद्ध करी शके छे / 6 / जह सरवराण मज्झे, माणसं सुसरं तओ वि विमलजलं / पउमाणि तओ हंसा, तहा गईणमि मणुअत्तं / / 7 / / भावार्थ:-जेवी रीते सकल सरोवरमां मानसरोवर श्रेष्ठ छे, तेथी पण तेमान पवित्रजल, तेथी तेमांना पद्मो [कमलो] अने तओथी पण हंसो वधारेने वधारे श्रेष्ठ छे, तेवो रीते मनुष्यपणुं पण महापुण्य साध्य होवाथी ने मोक्षचं कारण होवाथी अधिकतर श्रोष्ठ छे // 7 // इह जह नईण गंगा, सव्वविसिट्ठा जणेसु सुपसिद्धा / तह चउगईण मज्झे, भव्वा भवाण मणुअगई // 8 // भावार्थ:-जेम आ दुनियामां सघली नदीओमां गंगानदीनी पवित्रता लोकोमा विशेषप्रसिद्ध छे, तेवी रीते चार गतिओमां मनुष्यगति भव्यप्राणीओने विशेष श्रेष्ठ जणाय छे / / 8 / / जह खीरोअहि जलहिमि, जह दीवाणमि नंदीसरदीवो। जह देवाणय इंदो, जह चक्की सव्वमणुआणं / / 9 / / Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : नरभवदिटुंतोवनयमाला सव्वेसि भोअणाणं, सिटुं कल्लाणभोयणं नाम / .. . तेयस्सियाण जह रवि, तहा पहाणो मणुअजम्मो ॥१०॥जुम्म / / ___ भावाथ:-जेवी रीते समुद्रोमां क्षीरसमुद्र, द्वीपोमां नंदीश्वरद्वीप, देवोमा इन्द्र ने मनुष्योमा चक्रवर्ती प्रधान छे, सकल भोजनोमां कल्याणनामनुं भोजन अग्रपदे छे ने तेजस्वी पदार्थोमां सूर्य जेम प्रधान छे तेवी रीते अन्यजन्मोमां मनुष्यजन्म पण प्रधान छे आ गाथानो अर्थ युग्म छे // 9-10 // विसयसुहसंपउत्ता, देवा दुहदुत्थिया हु णेरइया / तिरिया पुण अविवेया, धम्माण य साहगा मणुया॥११।। भावार्थ:-देवो विषयसुखमां फसेला छे, नारकीओ दुःखोथी घेरायेला होवाथी विव्हल छे, पशुपक्षी विगेरे तिर्यंचो विवेकवगरना छे त्यारे दानादिधर्मोना साधक मात्र मनुष्यो छे // 11 // रुद्दे य भवसमुद्दे, अइदुल्लहमणुअजम्मलाहटें / एए दस दिळंता, निद्दिट्ठा पूब्धसूरीहि // 12 // . भावार्थ:-आ विषमसंसारसमुद्रमां मनुष्यजन्मनी प्राप्ति अतिदुर्लभ छे ते जणाववा खातर पूर्वाचार्योए नीचे मुजब दश दृष्टान्तो शास्त्रमा देखाडेला छे / 12 / तथाहिचुल्लग पासग२ धण्णे 3, जूए४ रयणे५ य सुमिण६ चक्के७ य / कुम्म८ जुगे९ परमाणु 10, दस दि→ता मणुअजम्मे // 1 // Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१)चूलकदृष्टान्त : - भावार्थ:-मनुष्यजन्मनी दुर्लभता माटे योजाएल दश दृष्टान्तोना नाम 1 चुलक एटले भोजन, 2 पासा, 3 धान्य, 4 जूवटुं, 5 रत्न, 6 स्वप्न, 7 चक्र, 8 काचबो, 9 जोंसरु, 10 परमाणुं // 1 // एएसि पत्तेयं, भणामि उवणयजुया य दिट्ठता / पुवुत्तसूरिपयरण-वणाओ सुमगार कुसुमव्व // 13 // भावार्थ:-ए दश दृष्टान्तोमांना प्रत्येक दृष्टान्तने उपनय साथे एटले दार्शन्तिक मनुष्यजन्म उपर घटाडवा साथे पूर्वाचार्योना प्रकरणरुप बगीचामाथी मालीनी पेठे पुष्पोनी जेम हकिकतो मेलवी हुँ [नय- विमल] जे ते वर्णवीश // 13 // अस्थि इह भरहवासे, दाहिणभरहद्धमज्झखंडंमि / - णिच्चमकंपिल्लं पर-भयाहि कंपिल्लनामपुरं // 14 // __ भावार्थ, आ भरतक्षेत्रना दक्षिणार्द्धभागनी वच्चोवच शत्रुओना भयथी कदापि नहि कंपनार यथार्थ नामर्नु कंपिल नामनुं नगर छे / / 14 / / मइणा सोलेण धणेण, भूरिणा बाढवूहमाहप्पो / सुमिणे वि जत्थ न कुणइ, 'परिवारालोयणं लोओ / / 15 / / . भावार्थ:-जे नगरमा रहेनार लोकसमुदाय पुष्कलबुद्धि, सदाचार अने धनथी प्रतिष्ठा पामेल होवाने लीधे स्वप्नामां पण परिवारनी चिन्ता करतो नथी, 1 परदारा इत्यपि / Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : नरभवदिटुंतोवनयमाला अर्थात् सर्व कोइ सुरवी होवाथी निश्चित छे / / 15 / / जत्थ य जिणमंदिरोवरि, घणपवणपणोल्लिया पडायाओ / रेहंति व धम्मिय-जण, कित्तीओ सग्गचलियाओ / / 16 / / ___ भावार्थ:-ज्यां जिनेश्वरोना मंदिर उपर प्रचण्डपक्नथी प्रेरायेल ध्वजाओ स्वर्गतरफ चालेल धार्मिक मनुष्योनी जाणे कीतिं न होय तेवी रीते शोभे छे // 16 // तं च अणेगच्छेरय-सारं पालेइ विउलबलकलिओ। इक्खागुवंसवसहो बंभो नामेण नरनाहो / / 17 / / भावार्थ:-विशालबलशाली, इक्ष्वाकुवंशशिरोमणि ब्रह्म नामनो राजा ते अनेक विस्मयजनकसारभूतवस्तुवाळा ते कांपिलपुर नगरने पाळे छे / / 17 / / अइपीवरेहि अइदीहरेहि कत्थ वि अपत्ततोडेहि / जस्स गुणेहि व गुहिं दामिया सइ थिरा लच्छी // 18 // भावार्थ:-अतिमजबुत ने अतिदीर्घ कोइपण स्थले त्रुटी नहि पामेल अर्थात् अखंडित दोरडाओनी पेठे गुणोवडे करीने जेनी लक्ष्मी दमन पामी विशेष स्थिर थइ हती / / 18 / / सामेण य दंडेण य, भेएण उवप्पयाणकरणण / अवसरपत्तेण जसो जेण व वित्थारिओ दूरं / / 19 / / भावार्थ:-जेणे प्रसङ्गने अनुसरता साम, दाम, Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (1) चल्लकदृष्टान्त : भेद अने दंडनी राजनीतिथी दूरसुधी पोतानी कीति फेलावी हती / / 19 // तस्सुब्भडरिउभडकोडिघडणउन्भडियपुरिसकारस्स 1 बहुपणयरयणखाणी, चुलमीनामा पिया आसी // 20 // भावार्थ:-पराक्रमी शत्रुओनी हरोल अथवा कोटिगमे सुभटोनुं बल तोडवामां जेणे पराक्रम फोरव्यु हतुं तेवा ते ब्रह्मनामा नरेशने बहुन म्र अने रत्ननी खाण अथवा प्रणत. जे स्नेह तेरूप रत्न तेनी खाण समान एवी चुलणी नामनी स्त्री हती // 20 // अविसु तस्स मित्ता, निक्कित्तिममित्तभावसंजुत्ता / चउरो चउराणण-चउरबुद्धिकलिया महीवाला // 21 // भावार्थ:-तेना निष्कृत्रिम एटले खरेखरी मित्रतावाला बुद्धिशालीने ब्रह्मा जेवा निपुण चार राजाओ मित्रो हता // 21 // कासीनाहो कडओ१, कडेभदसो य गयपुराहिवइ२ / कोसलसामी दोहो३, चपाहिव पुप्फचूलोत्ति४ / / 22 / / .. भावार्थ:-जेमां एक काशीनो राजा कटक, ने बीजो गजपुरनो स्वामी कडेभदत्त, श्रीजो कोशलदेशनो राजा दीर्घ ने चोथो चंपानगरीनो पूष्पचूल . नामे राजा हतो / / 22 / / / सुहरज्जकज्जचिता,-धुरंधरो तह धणू महामच्चो / तस्स य पुत्तो वरधणू धणियं कलिओ पिउगुणेहिं / / 23 / / Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 8 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला भावार्थ:-राज्यकार्यनी सारी व्यवस्था करनार धनु नामनो मोटो मंत्री हतो, तेनो पुत्र वरधनु पोताना पिताना गुणोथी खाली न हतो / / 23 / / ते पंच वि रायाणो, बंभाइया प्ररूढपणयवसा। विरहं अणिच्चमाणा परोप्परं एवमाहिंसु // 24 / / भावार्थ:-ब्रह्म विगेरे ते पांचे राजाओए परस्पर स्थिर थयेल प्रेमने लीधे विरहने,नहि इच्छता होवाथी ए प्रमाणे विचार्यु // 24 // पत्तेयं पत्तेयं, पंचसु रज्जेसु वरिसमिक्किक्कं / नियपरिवारजुएहि, जुगवं चिय संवसेयव्वं // 25 // भावार्थ:-के पांच राज्यो'पैकी दरेक राज्यमां एकेक वर्षसुधी दरेके पोतपोताना कुटुंबसहित मली साथेज वसवू // 25 // वोलंति मियकाले, केवइए दूरपणयमाणाणं / बहुपुण्णपावणिज्जं, भोगसुहं भुजमाणाणं // 26 / / भावार्थ:-बहुपुण्यथी मेलवो शकाय तेवा भोगसुखने भोगवता ने प्रेमपूर्वक रहेता है.ओनो केटलोक काल एज प्रमाणे व्यतीत थयो / / 26 / अहमण्णया कयाइ, रयणिए मज्झभागसमयंमि / ' चुलणी अइपुण्णफला चउदससुमिणाई पिच्छेइ / / 27 / / भावार्थ:-एटलामां बीजे वखते क्यारेक रात्रीना मध्यभागमा चुलणी राणीए अतिपुण्यना उदयथी चौद Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (1) चूल्लकदृष्टान्त : स्वप्नां जोया जहा गयवसहसीहअभिसेयदामससिसूरमंडलपडाया / कुंभो सरजलनिहिणो विमाणवररयणगणसिहिणो / / 28 / / __भावार्थ:-जेमके हाथी, बलद, सिंह, लक्ष्मी, पुष्पमाला, चंद्र, सूर्य, ध्वज, कलश, पद्मसरोवर, समुद्र विमान, श्रेष्ठ रत्नराशि अने अग्नि ए चौद स्वप्नां जोया // 28 // तक्खणमेव पबुद्धा सा मुद्धा कहइ बंभनरवइणो / सामि ! मए रयणीए चउदससुमिणा इमे दिट्ठा // 29 // भावार्थ:-तत्काल जागेल ते भोली राणोए ब्रह्मराजाने का के हे स्वामिन् ! आज रात्रिए में ए चौद स्वप्ना जोयां // 29 / / राया रंजियहियओ 'धाराहयनिवकुसुमरोमंचो / फुल्लिदीवरनयणो भणइ इमं देवी ते होही // 30 // अम्हा कुलकप्परुक्खो कुलज्झओ कुलपईवसंकासो / महामंडलमउलमणी गुणरयणखाणी सुपुत्तोत्ति // 31 / / भावार्थ:-राजा पण हर्षित थइ मेघनी धाराथी छंटायेला नीप (कदंब) नामावृक्षनी पेठे पुष्परुप रोमांचयुक्तने प्रफुल्लकमल जेवां नयनवालो थइ देवीने कहेना लाग्यो के तने अमारा कुलनी अंदर कल्पवृक्ष . 1 निपः कदंबवृक्षः / Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 : : नरभवदिद्रुतोवनयमाला जेवो कुलध्वज अने कुलमां, प्रदीप जेवो पृथ्वोमंडलमों मणी जेवो अने गुणरत्नोनी खाण एवो एक पुत्र थशे / / 30 -31 / / साहियणवमासंते संतेसु य वाउधलिडमरेसु / उज्जोइयकक्कुहचक्को जाओ तणुओ कयचमक्को / / 32 // भावार्थ:-गर्भने नव मास उपरांत केटलाक दिवसो थया बाद पवन ने धूलना उपद्रवो जेवां के-वंटोलिओ, आंधी विगेरे शांत थयाथी जेणे दिशाओना मंडलने प्रकाशित कर्य छे तेवो चमत्कारी, तेजस्वी पुत्र ते राणीने जनम्यो // 32 / / वद्धामणयाएसु विहिएसु विहियसयकम्मेसु / समयंमि तस्स णा विणिम्मियं बंभदत्तोत्ति / / 33 // भावार्थ:-बधामणी विगेरे व्यवहारोने बोजी प्रसूतिकर्मने लगती क्रियाओ विधिपूर्वक थया बाद वखत आवे ते बालकनुं ब्रह्मदत्त एवं नाम राखवामां आव्युं // 33 // सियपक्खसोममंडल-मिव बुढि एस लधुमारद्धो / लच्छीनिवाससिरिवच्छ-लच्छवच्छच्छलप्पएसो // 34 / / __ भावार्थ:-जेना वक्षस्थल [ हृदय ]मां लक्ष्मीनिवास श्रीवत्स जेवा शुभ लक्षणो छे तेवो ते कुमार शुक्लपक्षना चंद्रमंडलनी जेम अनुक्रमे वधवा लाग्यो // 34 / / Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (1) चुल्लकदृष्टांत : कत्थइ लमए कडगा-इएसु पत्तंसु बंभनिवपासे / ___ भावार्थः-कोइ समये कटक विगेरे राजाओ ब्रह्मराजानी पासे आवेल हता तेवामां ब्रह्मराजाने पोताना स्नेहिवर्गने शोक उत्पन्न करनार शिरोव्यथा [माथानी पीडा] थइ आवी / / 35 / / सत्थत्थपारगेहि पहाणवग्गेहि ओसहाईसु / सम्म पउजिएसु न नियत्तइ जा सिरोवेयणा // 36 / / भावार्थ:-वैदकशास्त्रना पारगामी के शास्त्रचिकिसाना माहीतगार शास्त्रार्थना पारगामी एवा प्रधानवर्गोए उचितरीते औषधादिकनो प्रयोग कर्यो छतां पण ते राजानी शिरोवेदना दूर न थइ / / 36 / / मरणावसाणमेयं जायमिइ निछयं मणे काउं / वाहरिया कडगाइ समप्पिया बंभदत्तस्स / / 37 // जह सयलकलाकुसलो पावियनीसेसरज्जपब्भारो / जायइ सुओ ममेसो तह कायव्वंति वाहरिया // 38 // . ... भावार्थः-आ मरणावसान प्राप्त थयुं छे एंवो मनमां निश्चय करी कटकादि मित्र राजाओने बोलावी ब्रह्मदत्तने सोंपी जेवी रीते संपूर्ण कलामां कुशल पोताना राज्यभारने लइ शके तेवो अमारो पुत्र थाय तेवी रीते तमारे प्रयास करवो ए प्रमाणे कह्य // 37-38 / / Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 12 : : नरभवदिद्रुतोवनयमाला तत्तो कमेण पत्ते परलोयपहमि बंभनरनाहे / मयकज्जेसु कएसुं सव्वेसु जणप्पसिद्धेसु // 39 // भावार्थ:-त्यारबाद ब्रह्मराजा परलोक सिधावी गया ने लोकप्रसिद्ध सर्व मृत क्रिया पण थइ गइ / 39 / ते रज्जकज्जसज्ज संठावित्ता य तत्थ दोहनिबं / कडगाइ तिणि निवासं पत्ता निययरज्जेसु / / 40 / / भावार्थः-त्यारबाद ते कटकादि मित्रनरेशो पोतपोताना राज्यकार्य माटे तत्पर थइ आपेल वचनने पालवा माटे अने ब्रह्मनरेशनुं राज्य चलाववा माटे त्यां दीर्घ नामना नरेशने मूकी पोलपोताना राज्यमां चाल्या गया // 40 // , चुलणीए दोहस्स य दोण्हवि कज्जाइं चितियंताण / सीलवणदहणपउणो जलणोव्वं पवड्ढिओ मयणो / / 41 / / भावार्थ:-राज्यकार्यादिकनी व्यवस्था करतां करतां चुलणीराणी अने दीर्घनरेश ए बन्नेमां परस्पर शीलरुपवनने बालवामां तत्पर मदन जे कामाग्नि ते प्रकट थयो / / 4 / / अगणियकुलमालिण्णा चुलणी चडुलत्तणेण चित्तस्स / दूभज्झियजणलज्जा रंजिया पावदोहंमि / / 42 // ____ भावार्थः-कुलमर्यादाने गण्या विना लोकलजाने छोडी चुलणीराणी चितनी चंचलताथी दीर्घनरेश उपर पूरेपूरी आसक्त थइ / / 42 / / Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (1) चुल्लकदृष्टांत : : 13 इयरो उण. छिद्दरओ कुडिलगई विसयगिद्धविसपुण्णो / चुलणीए रतत्थो संजाओ दीहपिट्ठोव्व / / 43 / / - भावार्थः-आ तरफ दीर्घनरेश पण छिद्रान्वेषि वक्रगतिवाला विषथी भरेल साप जेवो, वक्रगतिवाला विषयनी आसक्तिरुप झेरथी भरेलो ते राणीमां वधारे आसक्त थयो / / 43 / / नायं नीसेसमिणं चरियं चुलणीइ सीलभंगफलं / धणुणामच्चेण चितियं च नो कुमर कुसलं खु // 44 // भावार्थ:-आ चुलणीराणीना ब्रह्मचर्यना भंगरुप सर्वदुश्चरित्रने धनु नामना वजीरे जाण्यं ने विचार्यु के हवे आवा प्रसंगमां ब्रह्मदत्तकुमार- कुशल नथी // 44 // भणिओ य वरधणूणा पुत्त! कुमरस्स अप्पमत्तेण / कज्जा सरीररक्खा णो जणणी 'सुंदरा जेण // 45 / / भावार्थ:-मंत्रीए पोताना पुत्रने का-हे पुत्र ! तहारे कुमारनी सावधानंताथी शरीररक्षा करवी कारण के तेनी माता चुलणी सदाचारवाली नथी / 45 / समए य माऊचरियं जाणावेयन्वओ तए सव्वं / जेण न पावेज्ज इमो उवद्दवं केणइ छलेण / / 46 // भावार्थ:-वली हे पुत्र ! प्रसंग आवे ते वखते कुमार ब्रह्मदत्तने माताना वर्तनथी जाणकार करवो 1 सुंदरी इत्यपि / Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : नरभवदिटुंतोवनयमाला जेथी आ कुमार ब्रह्मदत्त कोइपण छलप्रसंगे उपद्रव न पामे ने कुशल रहे / 46 // उवल द्धे जणणीए चरिए तो तिब्वअमरिससण्णाहो / कुमरो कालवसेणं संजाओ जुव्वणाभिमुहो // 47 // भावार्थः-त्या रबाद कुमार ब्रह्मदत्त कालक्रमे यौवनने पाम्यो अने माताना बदचलनने जाणी तेणीना उपर वैरनी लागणी धराववा लाग्यो / 47 / जणणीए जाणणकए जे जे असमाणजाइणो जीवा / कोइलकायाइया विसरिसआयारकरणरया // 48 / / अंतो रायसहाए दोहसमक्ख तओ य दंसेइ / भणियं सकोववयणं अम्ह निगिण्हामि अहमेए / / 49 / / भावार्थ:-माताने चेताववा माटे जे जे असमान जातिना अनुचित आचार एटले विषयक्रीडामां तत्पर कोयल कागडादिक जीवो के तेने राज्यसभानी अंदर कोइ प्रसंगे दीर्घनरेशनी सामे अनुचित चेष्टा करता देखाडीने गुस्साथी का के-हुँ ए पक्षीओने शिक्षा करीश // 48-49 // अण्णो चिय जो मज्झं रज्जेणायारकारयजणो जो / दूरं णिगिहियव्वो निरिविक्कमणेण सो सम्वो // 50 // भावार्थ:-ने राज्यकर्मचारीयोने संबोधीने का के-जे अन्य (बीजो) अज्ञानी मारा राज्यमां अनाचार करतो होय तेने तमारे निःशंकपणे पूरी शिक्षा करवी // 50 // Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (1) चुलकदृष्टांत : . एवं अणोरंवारे विणिगिण्हतं तहा पहासंतं / दळूण बंभदत्तं दीहो चुलणी समुल्लवइ / / 51 // भावार्थः-ए प्रमाणे अवारनवार कोइने शिक्षा करतां तेमज तेवा दुश्चेष्टित पुरुषनी खराब रीते मश्करी करता ब्रह्मदत्तने जोइ दीर्घनरेशे चुलणीराणीने का // 51 // णेयं परिणामसुहं जं जं पइएस तुज्झ किल पुत्तो। सा भणइ बालरूवो एत्थ वरज्झइ न सम्भावो // 52 // भावार्थ:-के-हे चुलणी ! तारो आ पुत्र जे कहे छे ते परिणामे सुखकर नथी, तेणीए उत्तरमा का के-बालक छे, एना कहेवामां कोइ गुप्त आशय नथी, मात्र क्रीडा करे छे / / 52 // मुद्धे न अन्नहेयं आरूढो जुव्वणं इमं कुमरो मज्झं / तुम्भं मरणाय ही होही भणइ इय दीहो // 53 // भावार्थः-तेना [चुलणीना] यार दीर्घन रेशे का के-हे मुग्धे ! मारुं कथन अन्यथा नथी, कुमार यौवन पामेल होवाथी मारा अने तारा बनेना मरणने माटे बस छे ! परिणाम अनिष्टज आववानुं / 53 / ता मारिज्जओ एसो केणावि अलक्खिए उवाएण / मइ साहीणे भद्दे अण्णे होहिति तुह तणुया / / 54 // * भावार्थः-तेटला माटे कली न शकाय तेवा कोइ उपायवडे तेने मारवो जोइए, जो हुँ तने स्वाधिन Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : नरभवदिटुंतोवनयमाला छु एटले अनुकूल छं तो बीजा घणा पुत्रो तने थशे // 54 / / रइरागपरवसाए इहपरभवकज्जवज्झचिताए / चुलणीए पडिवण्णं धिरत्थु इत्थीण चरियाई // 55 // - भावार्थ:-कामरागने परवश थइ अने आलोक परलोकना कर्तव्य संबंधी विचारथी भ्रष्ट थइ चुलणीराणीए पण ते दीर्घनरेशनी वात मानी लीधी, स्त्रीओना चरित्रो तिरस्कारने पात्र बहुधा होय छे // 55 / / जं सव्वलक्खणधरे लायण्णुक्करिसविजयकुसुमसरे / सव्वाविणयविरहिए नियपुत्ते वदसि ज़ा एवं // 56 / / भावार्थ:-कारण के जे चुलणी आ प्रमाणे सर्व लक्षणने धारण करनार सौन्दर्यनो पराकाष्ठाथी जेणे कामने पण जीत्यो छे तेवा समस्त अविनयोथी मुक्त पोतानाज पुत्र उपर द्वेष करवा लागी / / 56 // अहनाउमभिप्पायं धणुणा तो रज्जकज्जकुसलेण / भणिओ य दोहराया एस सुओ वरधणू मज्झ // 57 // _____ भावार्थ:-त्यारबाद राज्यकार्यमां कुशल वृद्ध धनुनामना मंत्रीए चुलणीराणीनो अभिप्राय जाणी लेइ तेना यार दीर्घनरेशने कह्य के आ मारो पुत्र वरधनु छे / / 57 / / . संपत्तजोवणभरो निव्वायसहो य रज्जकज्जाणं 1 वणगमणावसरो मे अणुजाणतु जामि जं तत्थ / / 58 / / Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 चुलक हष्टांत : भावार्थ:-ने ते युवान थयेलो होवाथी राज्यन संघलो भार लही शके तेवो छे, मारा वनमा जवानो वखत आवी लाग्यो छे, आज्ञा आपो जेथी हूं क्नमा जाउं // 58 // तो कइयवेण बोहेण भणिओ य अमच्च इत्थ णयरठिओ / दाणाइणा पहाणं करेसु. परलो गणुट्टाणं // 59 // भावार्थ:-त्यारबाद दीर्घनरेशे कपटथी मंत्रीने का के-अहिंज नगरमां रहीने दानादिद्वारा परलोकनुं साधन सारी रीते करो // 59 / / पडिवज्जिऊण एवं पुरपरिसरवाहि गंगतीरंमि / काराविया विसाला एगा धषुणा पचा पारा // 60 // भावार्थ:-मंत्रीए पण ते कथनने स्वीकारो नगरना बाहिरना भागमां चहेती गंगाना किनारा उपर एक सुंदर ने विशाल प्रपा एटले धर्मशाला जेवू मुसाफरोने विश्रान्ति लेवानुं स्थान कराव्यं // 6 // परिवायगाण तह भिछुयाण नाणाविहाण पहियाण / भद्दगइंदोव्व तहिं दाणं दाउं पयज्जेसु // 61 // भावार्थ:-परिव्राजक (संन्यासी), भिखारीओने तथा अनेक प्रकारना मुसाफरोने दान देइने जाणे सरलपरिणामीमां शिरोमणि न होय तेनी पेठे रहेवा लाग्यो // 61 // 1 नोरंमि इत्यपि पाठः Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 18 : : नरभवदिटुंतो वनयमाला अह चुलणीए तत्तो तस्स कए मग्गिया सबंधुसुया। . . पउणीकयं च सव्वं विवाहपाउग्गमुवगरणं // 62 / / भावार्थः-त्यारबाद चूलणीए पुत्रने माटे पोताना बंधुनी कन्यानी मागणी करीने विवाहयोग्य तमाम सामग्री तैयार करी // 62 / / थंभसयसंनिविट्ठ अइगूढपवेसनिग्गमदुवारं / कारावियं जउहरं वासनिमित्तं कुमारस्स / / 63 // ___ भावार्थ:-ने कुमारने वसवा माटे सो थांभला. वालुं तेमज अतिगूढ (न की शकाय तेवा) पेसवाना दरवाजावावं लाखनुं घर कराव्यं // 63 / / सं सव्वं वित्तंतं नाकण य पुत्तवरधणुमुहाओ / चितइ धण अमच्चो अहो ! अकज्ज कयं इए // 64 / / . भावार्थ:-ते सघला वृत्तान्तने पोताना पुत्र वरधनुना मुखथी सांभली वृद्धमंत्रीए विचार्यु के-अहो! आ स्त्रीए न करवानें काम कर्यु / / 64 / / सम्माणदाणगहिएहि अप्पणो मित्तगूढपूरिसेहिं / चउगाउयं सुरंग कारावइ जाव चउगेहं / / 65 / / भावार्थ:-सत्कार अने दानथी वश करेला पोताना मित्र अने गुप्तचरो पासे लाखना घरसुधी एक चार गाउनी सुरंग (भूमिमांथी गुप्त निकलवानो मार्ग) करावी // 65 // अह तक्कालं नरवइ कण्णा सा नियअमच्च संजुत्ता / विवाहत्थं पत्ता कंपिल्ले ऊसियपडाए // 66 // Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 चुल्लक दृष्टांत : भावार्थ:-आ बाजु तत्कालज राजपुत्री पोत्ताना मंत्री साथे पताकाथी शणगारेल कंपिलनगरमां विवाह अर्थे आवो // 66 // अह पुप्फचूलरण्णो घणुणामच्चेण भिच्चधयणाओ। सव्वा रहो पवित्ती जाणाविज्जा तहा कुज्जा // 67 / / भावार्थः-त्यारबाद धनुमंत्रीए विश्वासु भृत्य एटले नोकर मारफत पूष्पचूलराजाने आ सघली खानगी वात जणावी, उचित करवा कहेवराव्यं / 6 / मुणिऊण तं चरित्त दासी संपेसिया सुयाद्वाणे / सव्वाभरणविहिहिं लग्गदिणे सोहणट्ठाणे / / 6 / / भावार्थ:-पूष्पचूलराजाए पण सघली वात जाणी दीकरीनी जगे एक दासीने समस्तभूषणोथी शणगारी लग्नने दिवसे निमेल सुंदर स्थान उपर मोकली / 68 / जायं पाणिग्गहणं वासनिमित्तं तओ य रयणीए / वरधणुवहुसमेओ पवेसिओ जठहरं कुमरो // 69 // भावार्थ:-विवाह थयो त्यारबाद रहेवा माटे रात्रिए वरधनु मंत्रिपुत्र अने नवोढा (नवी परणेली) स्त्री साथे कुमारने लाखना घरमा प्रवेश कराव्यो / / जामजुगंमि अइगए पज्जलियं तं तम्माए तं भवणं / जाओ य कलयलरवो अइभीमो सव्वओ तत्थ // 70 / / भावार्थ:-रात्रिना बे प्रहर वीत्या के तेनी माए भवनने सलगावी मूक्युं तेथी चोमेर अतिभयंकर Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 20: के.लाहल थवा लाग्यो // 7 // पक्खुभिजलहिसंनिहि जलणं कुमरेण भीसणं विटुं / आपुच्छिओ वरधणूं किमकंडे उमरमेयंति ? // 71 // ___ भावार्थ:-क्रोध पामेल समुद्रसमान भयंकर आग कुमारे जोइने वरधनुमे पूछयं के-आ अनवसरे शो उत्पात थयो छे // 71 / / कुमर तुहाणत्यकए एसो विवाहवइयरो रइओ / एसा ण रायकण्णा अण्णा वि य कावि तस्सरिसा // 72 // भावार्थ:-ते. सभिलीने मंत्रीपुत्रे का के-हे कुमार ! तारा माशने माटे आ विवाहनो प्रसंग रचायेल छे. आ तारी स्त्री राजपुत्री नथी, परंतु तेना जेवी बीजी एक कोइ कन्या छे / / 72 / / ता तीए मंदपणओ कुमरो जपेइ कि विहेयमओ ? / तो भणियं वरवणुणा पण्णिप्पहारं अहो देसु // 73 // __ भावार्थः-आ सांभली ते स्त्रीमां मंदादर थयेल कुमार कहे छ के-हे मंत्रिपुत्र! हवे शुं करुं ? मंत्रिपुत्रे का-नीचे पानीनो प्रहार करो / / 73 / / दिग्णमि तप्पहारे सुरंगदारं विणिग्गया तेण / दोहिवि गंगातीरे पवापसमि संपत्ता // 7 // ___ भावार्थ:-पाटु मारी के तरतज सुरंगनुं द्वार उघडी गयुं, ते रस्तेथी बन्ने जण गंगाना किनारा उपर वृद्धमंत्रिए करावेल प्रपाना प्रदेशमां जइ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 चुल्लक दृष्टांत : : 21 पहोंच्या // 7 // पुव्वं चिय वरधणुणा ठावियजच्चमि दुरियजुयलंमि / तक्खणमारूढा ते पण्णासं जोयणा णिगया // 75 / / भावार्थ:-मंत्रिपुत्रे प्रथमथीज राखेल जातिवाला बे घोडा उपर बन्ने जण चढी पचास योजन दूर निकली गया / / 75 / / अइदीहमग्गखेहेण ज्झति पंचत्तमावया तुरया / पाएहिं चेव गत्तुं लग्गा पत्ता तओ गामं // 76 / / .. भावार्थ:-बहु लांबो मार्ग कापवाथी ते बन्ने 'घोडा जलदी भरण पाम्या, बन्ने सवारोए पगे चालवा मांडयुं ने एक गाम पहोंची गया // 76 / / कुद्दाभिहाणमेत्थं कुमरेणं वरधणू इमं भणिओ / जह बाहए छुहा मे परिसंतो तह वढं जाओ / / 77 / / _ 'भावार्थ:-जे गाम कुद्रनामनुं हतुं, आ स्थले कुमारे मंत्रिपुत्रने का के-भूख सतावे छे ने हुं बहुज थाकी गयो छु / / 77 // गामे बहि चियं तं ठाविऊण गामंतरं पविट्ठो सो / घेतण खुरमबि कुमरो मुंडाविओ तत्य // 78 / / ___ भावार्थ:-मंत्रिपुत्र गामनी बहारज कुमारने राखी गाममा गयो ने एक हजामने पकडी लावी कुंवरन मस्तक मुंडावी दीधुं // 78 // Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 22: : नरभवदिटुंतोवनयमाला वत्थे कसायरत्ते निवासियो पट्टए णिविट्ठो य / चउरंगुलेण वच्छे सिरिवच्छो लच्छीकुलतिलओ / / 79 // भावार्थ:-नोरुरंगना कपडाथी शरीर ढांक्यु, चार आंगलना बीजा कपडावती हृदयस्थलमा रहेल श्रीवत्सतिलक जे चक्रवर्तीपणानं सूचक चिन्ह छे तेने पण ढांकी दीधं // 79 // कयवेसपरावत्तो वरघणुणा बुद्धिबोहिमा कुमरो / नइ कहवि दोहराया जाणिज्ज हलिज्ज तो अम्हे // 8 // भावार्थ:-बुद्धिनिधान वरधनुए कुमारनो वेष बदलावी दीधो, जो दीर्घराजा कोइपम रीते जाणशे तो आपणने हणशे // 8 // ' इमं संभमं वहता तप्पडियारं तहा कुणता य / माम तो संपत्ता एगंमि य माहागहमि // 8 // भावार्थ:-एवी धास्तीने धरावता ने तेनो प्रतिकार करता एक गाममां ब्राह्मणने घेर पहोंच्या // 81 // विप्पेण निययभज्जा भासिया भुजहेह एयाणं / मासणबहुमाहिं ठाविया तत्थ ते तीए / / 82 / / भावार्थ:-ब्राह्मणे पोतानी पीने का के-तेओने जमाड. तेणीए पण आसन आपी बहुमानपूर्वक ते बन्नेने त्यां पोताने घरे स्थिर कर्या // 82 / / कुमर सिरिवच्छजुयं पासेत्ता भासइ इमं महिला / बंधुमईकण्णाए होहि वरो एसिमो चक्की / / 83 // Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 चुल्लक दृष्टांत : : 23 भावार्थ:-धीवत्स लांछनयुक्त कुमारने जोइने विप्रभार्या कहेवा लागी के आ चक्रवर्ती छे तेथी (मारी बंधुमति नामनी) कन्यानो वर थाओ // 83 // धणुणामच्चेण तहि वित्तंत भासियं च तप्पुरओ / गंधवविवाहेण य परिणीया कण्णगा तत्थ / / 84 // .. भावार्थ:-समयने जाणनार मंत्रिपुत्रे पण सघलो वृत्तान्त ते कुमारनी सामे कही संभलाव्यो त्यारबाद गांधर्व विवाहथी ते कन्या कुमारे परणी लीधी / 84 / अह दोहरायपुरिसा भामं भाम समागया तत्थ / .. तुरियं तत्थ पलाणा भयभीया णिग्गया दो य // 85 // . भावार्थ:-त्यारबाद दीर्घराजाना नोकरो भमता भमता त्यां चडी आव्या, आ बन्ने (कुमार ने मंत्रिपुत्र) भयभीत थइ जलदीथी त्यांथी पलायन करी गया // 85 // अह एगो पहि मिलिओ विप्पो बु सलाभिहो य पहदक्खो। तसद्धि संपत्तो कुमरो वेयढगिरिमूले // 86 // - भावार्थ:-त्यारबाद मार्गदक्ष (मार्गमा भोमियो) कुशल नामनो एक ब्राह्मण रस्तामां मल्यो तेनी साथे कुमार पण वैतान्यपर्वतनी समीपे जइ पहोंच्यो / 86 / अह दीहनिवभडेहि गहिलो अमच्चो धणू तओ पिट्टि / सो वि गो पणट्ठा कुमरसमोवे य वेयढ्ढे / / 87 / / Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 24: :: नवभवदिठूतोवनयमाला भावार्थ:-त्यारबाद दीर्घनरेशनां सुभटोए वरधनुनी पुंठ पकडी, परंतु ते पण नाशीने कुंवरनी पासे वैताब्यमा जइ पहोंच्यो / / 8 / / तत्थ य पुण्णबलेण य रिद्धिमाणाइर्ग च संपत्तों / आयरनिवस्स कण्णा-पाणिग्गहणं कयं बहुया / / 8 / / भावार्थ:-त्यां पराक्रमथी समृद्धि सत्कार विगेरेनें कुमार पाम्यो अने विद्याधरनरेशनी कन्याओगें पाणीग्रहण अनेकवार कयु / / 88 // . इत्थ य बहुवत्तव्वं यं गंयंतराओ तं सव्वै / वेयढ्ढसेलगमणं इत्थीरयणाण लाहाणं // 89 // - भावार्थ:-आ स्थले वैताढयपर्वतमां जवं, कन्यारत्ननुं प्राप्त थवं विगेरे घणं कहेवानं छे परंतु ते सघलं अन्यग्रन्थोथी जाणी लेवू // 89 // वाससएण य साहिय-भरहो संपप्प चक्कवट्टित्तं / तिमिह पिऊमित्तनिवेहि सहिलो. महिओं यजमलेहि // 30 // पत्तो कंपिल्लपुरं सेणासंजुत्तबंभवत्तनिवो। .. दोहं दीहपमिलं काऊण य तंमि समरभरे // 11 // __ भावार्थ:-सो वर्षमां भरतना छ खंडने साधी चक्रवर्तिपणुं मेलवी त्रणे पोताना पिताना मित्रों साथे यक्षोथी पूजा पामेल :ब्रह्मदत्तमुमार ते रणांगणमा दीर्घनरेशने दीर्घनिद्रा (मृत्यु) कराववा माटे अर्थात् Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 चुल्लक दृष्टांत : : 25 मारवा माटे कंपिलपुरनगरमां सेनासहित आवी पहोंच्यो / / 90-91 / / नवरविमंडलसण्णिम-मईवनिसियगाधारमइघोरं / परचक्कक्खयकारग-मारूढं करयले चक्कं // 92 / / जक्खसहस्साहिठिय-मह पंचालाहिवंगजायस्स / तक्खणमित्तण तेणं दोहसीसं तओ छिण्हं // 93 / / भावार्थ:-त्यारबाद तत्काल उदय पामता रवि. मंडल जेवू प्रकाशमान, अतितीक्ष्ण धारवालं, अतिघोर, शत्रुओना क्षयने करनारं चक्र तेना (पंचालदेशाधिपतिना पुत्र ब्रह्मदत्तना) करतल (हथेली) मां आवी पेठे, जे हजार यक्षोथी अधिष्ठित हतुं ते वती तेणे तत्कालज दीर्घनरेशन मस्तक छेदी नांस्यं // 92-93 // . गंधव्यसिद्ध खेयरनरेहि मुक्काओ कुसुमवठीओ। युत्ता जहेस चक्की बारसमो 'इह सुवण्णतणू // 94 // भावार्थ:-गंधर्व, सिद्ध, विद्याधर अने मनुष्योए तेना उपर पुष्पवृष्टिओ करी जेथी आ सुवर्णकाय ब्रह्मदत्त बारमा चक्रवत्ति तरीके प्रसिद्धि पाम्यो 94 कपिल्लपुरबहिया बारसवासाणि चक्कट्टिमहो / जाओ य. अइमहतो चउद्दसरयणाहिवहिवहिस्स // 95 // भावार्थः-कपिलपुरनगरनी बहार चौदरत्नना नाथ ते ब्रह्मदत्तचक्रवत्तिना मानो खातर बार वर्षसुधी Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : नरभवदिटुंतोवनयमाला एक मोटो चक्रवर्तीपदनो महोत्सव थयो / / 95 / / . . नवनिहिपइणो तस्स-णयाओ भोग निसेवमाणस्स / विप्पो पुत्वपसंगी समागओ निवपलोयळं / / 96 / / भावार्थ:-अन्यदा नवनिधिना स्वामी नवनवा भोगने भोगवता ते ब्रह्मदत्तना दर्शनार्थे ब्राह्मण जे पूर्व परिचित हतो ते आव्यो / / 96 // स तस्स अणेगेसु विविहविहिकज्जरज्जसाहज्जो। अच्चतपरमभत्तो य आसी परमं पणयट्ठाणे // 97 / / .. - भावार्थ:-ते ब्राह्मण अनेक स्थलोमां विविधराज्यकार्योमां सहायता करनार होवाथी अने अत्यंतभक्तहोवाथी ब्रह्मदत्तने प्रेमपात्र हतो / / 97 / / रायाभिसेयमहिमा पवढ्ढमाणो य वासबारसगं / चक्की तेण न दिट्ठो अलद्धद्दारप्पवेसेण // 98 // . . भावार्थ:-राज्याभिषेकनो महिमा वधतो ज जतो हतो तेथी अनेक दरवानलोकोए पेसवा न. आपेलो होवाथी ते ब्राह्मण बार वर्षसुधी सजानुं दर्शन करवा न पाम्यो / / 98 // : ... तप्पज्जते बाढं निसेवमाणेण वारपालनरं / दिट्ठो कहमवि तेण य बारसमे बच्छरे राया / / 99 // भावार्थ:-त्यारबाद दरवानलोकोनी घणी सेवा करता ते ब्राह्मणे बारमे वर्षे ब्रह्मदत्तचक्रवर्तीने बहु मुश्केलीथी जोयो / Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 चुल्लक दृष्टांत : : 27 अण्ण भणंति जाहे न लहइ सो बसणंपि चक्किस्स / तो जिष्णुवाहणाओ वंसे दोहंमि विलसेइ / / 10 / / भावार्थ:-बीजा आचार्योनुं एम कहेवं छे के ज्यारे ते ब्राह्मण कोइपण रीते चक्रवर्तीनुं दर्शन करवा न पाम्यो त्यारे वांस उपर जुना जोडाओनी एक मोटी हारडी लटकावी // 10 // बहिनिग्गमसमए सो रण्णो जे चिधगाहगा तेसि / मिलिओ निर्याचधकरो उवाणहो उग्धविग्घेणं / / 1011: भावार्थ:-अने राजाना बहार नीकलवा वखते पोताना चिह्नरूप जोडानी हारडीने उठावी, जे तरफ राज्य चिह्न छडी विगेरे उठावनाराओ हता तेमां मली गयो / / 101 // निज्झाइओ य रण्णा किमियं चिधति चितियं रण्णा / पुट्ठो य तेण भणियं तुह सेवाकालमाण मिणं // 102 // : भावार्थ:-राजानी दृष्टि ब्राह्मण उपर पडी ने विचारवा लाग्यो के आते चिह्न शानुं छे ! पूछतां ब्राह्मणे जणाव्यु के तारी सेवाना वखतनुं आ प्रमाण छे // 102 // . एत्तिय उवाहणाओ घट्ठाओ तं निसेवमाणस्स / न य देसणमुवलद्धं कहंचि तुह देवचलणाणं // 103 // __ भावार्थः-तारी सेवा करता करतां आटला जोडाओ घसाइ गया छतां पण कोइ रीते तारा Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 28 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला चरणोनुं दर्शन नज थयुं // 103 / / सुकयण्णयाए तेणं पुव्वुवयारं मणे सरंतेण / भणिओ संतुट्ठमणेण भद्द ! मग्गाहि वरमेगं // 104 / / भावार्थ -अत्यंत कृतज्ञ होवाने लीधे तेणे पूर्वोपकार- स्मरण करतां संतुष्ट मनथी ब्राह्मणने का केहे भद्र मारी पासेथी वरं (वरदान) मांगी ले / 104 / आउच्छिय नियभज्ज पच्छा मग्गामि नंपियं तीसे / इय भणिऊगं विप्पो गेहं गओ पुच्छिया साय // 105 / / भावार्थ -पोतानी स्त्रीने पूछीने तेणीने जे प्रिय हशे ते हुं पछी मांगोश, एम कही ते ब्राह्मण पोताने घरे गयो ने पोतानी स्त्रीने पूछयुं / / 105 / / अइनिउणबुद्धिजुत्ता अवि तुच्छमणा हवंति नारीओ / तो चितियमेईए बहुविहवो परवसो होही / / 106 / / भावार्थ:-बहुसूक्ष्मबुद्धिवाली होवा छतां पण स्त्रीओनुं मन विशाल होतुं नथी तेथीज़ रोणीए विचायु के घगो संपतिथी पुरेपुरा परतंत्र थशे / / 106 / / इक्किकमि गेंहमि पइदिवसं भोयणं तुमं मग्गं / दोणारदक्खिणं तह पज्जतं चक्किआणाए // 107 // भावार्थ:-दरेक घरे एकेक दिवस सोनामहोरनी दक्षिणासहित भोजन चक्रवतीनी आज्ञाथी मागी लेवं / / 107 // . . . . Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 चुल्लक दृष्टांत : : 29 इय भणिओ सो तीए चक्किणं विष्णवेइ तह चेव / / राया भणइ किमेयं अइतुच्छं मग्गियं तुमए / / 108 / / भावार्थ:-स्त्रीए एम कह्याबाद ते ब्राह्मण चक्रवर्तीने तेज मुजव विनववा लाग्यो, चक्रवर्तीए पण उदारताथी का के-हे ब्राह्मण ! ते आवी तुच्छ मांगणी केम करी? / / 108 // मइ तुर्दू मग्गिज्जइ रज्जं चलधवलचामराडोवं / विप्पकुलुप्पण्णाणं किमम्ह रज्जेण सो भणइ // 109 // भावार्थ:-ज्यारे हुं तुष्ट थयो छु त्यारे चंचल सफेद चामरना आडंबरवालुं राज्य तारे मागवं जोइए. ब्राह्मणे का-विप्रकुलमां उत्पन्न थयेला अमोने राज्यनी कशी जरुर नथी / / 909 / / पढम नियगेहे च्चिय तो रण्णा भोयणं सदीणारं / दिण्णं तओ कमेणं अंतेउरमाइलोएण // 110 // भावार्थ:-प्रथम राजाएज पोताने घेर (रसोडे ) भोजन करावी दक्षिणा बदल सोनामहोर आपी. त्यारबाद अंत:पुर विगेरे लोकोए पण एज क्रमथी राजानी आज्ञाने मान आप्युं / / 110 / / बत्तीससहस्सनरवईण बहुयाओ कुडंबकोडीओ। तत्य णिवसंति पयरे तप्पज्जतं न सो लहइ // 111 // भावार्थ:-बत्रीस हजार राजाओगे घणाज क्रोड कुटुंबो ते नगरमा वसे छे तेथी ते ब्राह्मण तेनो पार पामतोज नथी // 111 / / Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 30 : : नरभवदिळूतोवनयमाला छण्णवइगामाणं कोडीओ तत्थ कुलसहस्साई / . .. कइया भारहपज्जत-मेस संजायपुण्णवरो / / 112 / / भावार्थ:-छन्नुक्रोड तो गामो छे, जमां हजारो कुल छे तेवा भारतवर्षनो छेडो पूर्ण वरवालो ब्राह्मण एकेक दिवसे एकेक घरे जमता क्यारे पामे ! / 112 / तइया वाससहस्सं संभवइ आउयं नराण परं / ... कह एय कालजीवी नयरस्स वि लहइ पज्जतं // 113 / / ___ भावार्थः-ते वखते मनुष्योनुं वधारेमां वधारे हजार वर्षनुं आयुष्य हेतुं एटला काल सुधी जीवनारो नगरनो पण पार शी रीते पामी शके ? तो आखा भारतना छेडानी वातज क्यां रही / / 113 // एवं पुनरवि दुलहं जह चविकगिहमि भोयणं तस्स / तह मणुयत्तं जीवाण जाण संसार कांतारे / / 114 / / भावार्थ:-आ प्रमाणे ते ब्राह्मणने फरीथी चक्रवर्तीना घर- भोजन जेम दुर्लभ है, तेम मनुष्यपणुं पण फरीथी मलवं अत्यंत दुर्लभ छे / / 114 / / अत्रोपनय योजना, यथा___ अहींया दृष्टांत घटावे छे, जेम-2.. जह सो साहियभरहो चक्की राया य बंभदत्तो य / . तह तीत्थयरो धम्म-चक्कवट्टी सकारुण्णों / / 115 // भावार्थ:-जेवी रीते भारतने साधी ब्रह्मदत्तचक्रवर्ती राजा थयो हतो तेवी करुणाकर तीर्थंकर. Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 चुल्लक दृष्टांत : भगवान धर्मक्षेत्रमा धर्मचक्रवर्ती होय छे / / 115 / / जह सो दुहिओ विप्पो तह संसारी जणो मुणेयव्यो / मिच्छत्तदरिद्देण य दुत्थो अत्थप्पसंगो य // 116 / / भावार्थ:-जेम दरिद्रताथी ते ब्राह्मण बहुदुःखी हतो तेम संसारी जीव पण मिथ्यात्वरूप दरिद्रताथी दु:खी होइ कोइ साराफलनी इच्छा धरावे छ / 116 / जीण्णोवाणचिहि दिट्ठो दोवारिएहिं जह चक्की / सुपसन्नकम्मविवर-पडिहारपरप्पसाएण / / 117 / / भावार्थ:-जेम ते ब्राह्मणने राज्यदर्शनमां जीर्णजोडाओ सहायक थया ने दरवानोए तथा अंदरना पोलीयाओए मोटी महेरबानी बतावी तेम अहिं कर्मविवर एटले ग्रंथीभेद थयाथी मोटी अनुकूलता प्राप्त थइ // 117 // सुहसामग्गिधएहि दिट्ठो तह तीत्थधम्मवरचक्की / तुद्रेण तेण दिण्णं महप्पसाएति पवरवरं // 118 / / भावार्थ:-जेम ब्राह्मणने राजदर्शनमां ध्वज एक सामग्रीरूपे हतो, तेम अहिं शुभपुण्यसामग्रीथी धर्मचक्रवर्तीतीर्थंकरन दर्शन प्राप्त थाय छे ने ते तुष्ट थइ चक्रवर्तीनी पेठे पोतानी महेरबानीरूप वरने आपे .छे // 118 // जह सा दिअस्स भज्जा दुट्ठमणा या अलच्छिसारिच्छा / तब्धयणेहि भिक्खं पत्थई मोत्तूण वररज्जं / / 119 / / Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 32 : : नरभवदिळूतोवनयमाला भावार्थ:-जेम ते ब्राह्मणनी हलका मननी कंगाल जेवी स्त्री हती तेणीना कथनथी ते ब्राह्मणे उत्तमराज्यनी उपेक्षा करी मात्र भोजनज़ मांगी लीधुं 119 दुट्टकम्मपयडिदिइतरुणीपरवसो तहा जीवो / हिच्चा चरित्तरज्ज अहिलसइ विसयसुहभिक्खं // 120 // भावार्थ:-तेवी रीते दुष्ट अष्टकर्मप्रकृतिस्थितीरूप स्त्रीनी जालमा फसाइ संसारी जीव पण उत्तमचारित्रनी उपेक्षा करी विषयसुखनी भीक्षाने मांगी ले छे // 120 // तो भणइ धम्मचक्की किमिय पत्थेइ महू पसन्नमणे / वरनाणदसणचरित्तरजं तुम्भं पयच्छामि, / / 121 / / भावार्थ:-त्यारबाद धर्मचक्रवर्ती कहे छ केहुं प्रसन्न छु छतां तुं आ तुच्छ शुं मांगे छे, जो तारी लालसा होय तो उत्तमज्ञानदर्शनचारित्ररूप राज्यने आपुं / / 12 / / नो बुज्झइ सो मूढो हिय में भासिओ अ सइसया / रियभोयणुव्व तस्स य चक्किप्पसाओ पुण दुलहो // 122 / / भावार्थः-आम अनेकवार हितावह कह्यां छतां पण ते मूढ समजतो नथी चक्रवत्तिना अनुग्रहरूप भोजन- फरीथी प्राप्त थर्बु जेम ब्राह्मणने अत्यन्त दुर्लभ छे तेम तीर्थंकरनो प्रसादपण धर्मप्राप्तरूप होय ते पण अत्यन्तदुर्लभ छे // 122 / / . Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 चुल्लक दृष्टांत : कहमवि देवबलेण लहइ पुणो भोयणं च सो विप्पो / जाएइ चक्की तत्थ य भोज कल्लाणनामाणं // 123 // भावार्थः-कदाचित् देवानुग्रहथी ते ब्राह्मण फरी पण चक्रवत्तिनो प्रसाद मेलवी शके परंतु बोधिबीज (सम्यक्त्व) विगेरे गुणो विना जीव तो कोइपण रीते मनुष्यपणुं मेलवी चथी शकतो // 123 // / हवे चालतो कथाने लंबावे छे / / अह अण्णया य अण्णो समागओ पुव्वसंगओ विप्पो / जाएइ चक्की तत्थ य भोज कल्लाणनामाणं // 124 / / भावार्थः-एकदा ते अन्य पूर्वपरिचित ब्राह्मण आव्यो ने चक्रवत्ति पासे पोताना उपकारना बदलामां चक्रीने खावा लायक कल्याणनामनुं भोजन माये छे / / 124 // तो भणइ दीयं चक्की नेयं तुह जिज्जए महाभोज / घयजु तं परमण्हं उयरे जह सारमेयाणं // 125 / / . भावार्थः- उत्तरमा चक्रबत्तिए ब्राह्मणने कह्य के-हे द्विज ! तने आ भोजन पची शकशे नहिं जेम घृतथी पूर्ण परमान्न (खीर) कुतराओने पचती नथी तेवी रीते आ भोजन तारे माटे अतिगरिष्ठ छे / / 125 / / Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : नरभवदिळूतोवनयमाला सव्वेहि परियहिं वारिज्जतो वि भणइ पुणं इत्थं / . दिट्ठोसि महाकिविणो भोअणमित्तंपि नो देइ // 126 / / भावार्थ:-तमाम नोकरचाकरो वार्या छतां पण ते ब्राह्मण कहेबा लाग्यो के-म आ एक महाकृपणने जोयो छे जं भोजनमात्र पण आपी शकतो नथी / / 126 // सव्वं तस्स कुटंबं रण्णा भुज्जावियं तहा घायं / कंदप्पदप्पपरबश-मह रयणीए तहा जायं / / 127 / / भावार्थ:-राजाए ब्राह्मणनी मागणी स्वीकारी सम्पूर्ण कुटुंब साथे जमाड्यो आ भोजनथी रात्रिम तेनुं सघलु कुटुंब कामविकारने वश थइ गयुं / 127 // अम्मापिउपुत्तपुत्तीसुसुरण्हुसाइयं लज्जप्पन्भटें / लोए दुगंछणिज्जं हिच्चा तं णिग्गओ विप्पो / / 128 // भावार्थ:-माता, पिता, पुत्र, पुत्री, श्वशुर, बहेन पुत्रवधु विगेरे तमाम कुटुंब जे लोकमां निंदवा लाग्युं हतुं ने लज्जाभ्रष्ट थयु हतुं तेने छोडी ब्राह्मण चाल्यो गयो / / 128 / / / नियदोसमयाणंतो रणोवरि दोसपोसमुच्चंतो / कत्थवि णयरस्स बहिं पस्सइ एगं अजावालं // 129 / / भावार्थ:-पोताना दोषने नहिं जाणतो ने सघला दोषोना बोजाने राजापर मुकतो नगरनी बहारना Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 चुल्लक दृष्टांत : : 35 कोई भागमां जाय छ ने त्यां एक भरवाड (रबारी) ने जुवे छे / / 129 / / निग्गोहपत्तयरं कक्करियाहि कयं सपच्छिदं / सव्वं नियवित्रतं तप्पुरओ जहत्थियं भणइ / / 130 // भावार्थः-वडमा पांदडाओमां जेणे कांकराओवती सेंकडो छिद्रो करी मूक्या छे तेवा ते निशानबाज रबारीनी आगल पोतानो सघलो वृत्तांत यथास्थित कही संभलाव्यो / / 130 // विप्पेण तेण तइया दव्वेण वसोकओ अजावालो। सिक्खाविओ य इस्थ पणासियव्वा य निबदिट्ठी // 131 / / भावार्थ:-ने द्रव्यवडे वश करी, ते रबारीने ब्राह्मणे शिखव्यू के आवीज रीते निशान ताकी राजानी आंखो. फोडी नांखवी // 131 // कंजरखंधारूढो सेणासहिओ व उन्भवियछत्ता / निग्गच्छइ पुरबहिया कोलाए जावया चक्की // 132 / / ... भावार्थ:-हाथी उपर बेसी छत्रने धारण करी, सेनासहित राजा ब्रह्मदत जेटलामां नगरथी बाहेर क्रीडामाटे नीकले छे / / 132 // कुड्डंतरट्टिएण य दुट्ठण य पामरेण लहु हत्थं / कक्करियाहिं जुगवं पणासियं चक्किदिद्धिजुगं / / 133 // Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : नरभवदिटुंतोवनयमाला भावार्थ:-तेटलामां एक भींत पाछल संताइते दुष्ट पामर अजापाले राजानी आंखो कांकराओ वती फोडी नांखी // 133 // चक्किभडेहिं गाढ बद्धो सो पामरो तया भणइ / तमणस्वउविम्पं जहत्थियं सम्ववित्तंतं // 134 // . भावार्थ:-ज्यारे चक्रवत्तिना सुभटोए तेने मजबुत बांधीं लीधो त्यारे ते पामरे आ •अनर्थना कारण तरीके ब्राह्मणने निर्देशि सघलो हतो लेवो वृत्तान्त कही संभलाव्यो / / 134 / / रुट्टण चक्किणा सो विप्पो विद्धंसिओ सवंसो य / अण्णे वि दिया पुरोहियपमुहा उम्मूलिया तत्थ य // 135 / / भावार्थ:-चक्रवत्तिए कापायमान थइने ते ब्राह्मणने तेना परिवार साथे मारी नांख्यो ने ते स्थले वसता बीजा पण पुरोहित विमेरे ब्राह्मणोनो नाशा कराव्यों // 135 // तहवि पुण पभूयकोवा चक्की भासेइ मंतिणं इत्थ / पइदिणमेगं थालं दियट्ठिीभरियमुवणेसु // 136 // भावार्थ:-छतां पण गुस्सो शांत न थवाथी चक्रवत्तिए मंत्रिने का के-प्रतिदिन. ब्राह्मणोना नेत्रोथी भरेलो एक थाल मारी पासे लाववो।१३६॥ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 चुल्लक दृष्टांत : सेलुफलेहि पुण्णं थालं मंती दलेइ उवयाणं / हवइ निवो तह हट्ठो तुट्ठो विप्पच्छिबुद्धेहिं / / 137 / / * भावार्थ:-संत्रिशेलु नामना फलोथी भरेल थालने राजा पासे लावे छे, तेथी राजा ब्राह्मणना नेत्रो जाणी वधारे खुश थाय छे / / 137 / / सत्तयवाससयाई पालेत्ता रुद्दज्झाणपडिपुण्णो / अंधत्तमणुहवेत्ता सोलसवासाणि कूराणि // 138 // भावार्थ:-आ प्रमाणे ब्रह्मदत्तचक्रवत्ति रौद्रध्यानथी युक्तथइ सातसो (700) वर्ष राज्य करी छेल्ला सोलवर्ष अंधपणे दुःखदायो रीते वितावी / / 138 / उत्तंगो तत्तधण चक्कधरो बंभदत्तनरनाहो / पत्तो सत्तमपुढवि पावमई रुद्दपरिणामो // 139 // भावार्थ:-उन्नत्तकाय, सप्तधनुष्य देह प्रमाणवालो ते सातमीनरके रौद्रपरिणामना बलथी उत्पन्न थयो / / 139 // . इय पढमो दिलुतो चुल्लगनामा मए विणिदिट्ठो / नरभवलद्धट्टाए लिहिओ पवयणसमुद्दाओ / / 140 / / __ भावार्थ -आ प्रमाणे नरभवनी दुर्लभता जणाववा खातर दश दृष्टान्त पैको चुलग [भोजन] नामा प्रथम दृष्टान्त प्रवचन समुद्रथी लेइ भव्योना हितने माटे निदिशेल अने लखेल छे / / 140 / / Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 38: : नरभवदिटुंतोवनयमाला सिरिविजयप्पहसूरीरज्जे सिरिविणयविमलकविराया / सिरिवीरविमलसुगुरुसीलेण गयाइविमलेण // 141 / / भावार्थ:-हवे आ ग्रन्थनी संकलना करनार पोताना नाम साथे स्वगुरु परंपराने पण सूचवे छे // 141 // // इति नरभवदृष्टान्तोपनयमालायां चुल्लकनामप्रथमो दृष्टान्तः सम्पूर्णः // 1 // Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // 2 / / अथ पाशकनामा द्वितीयो दृष्टान्तः / / अत्थीहखेत्ते भरहाभिहाणे सोरट्टर? णयरी चणिक्का / वेयेंगदक्खो चणिनामविप्पो चणेसरी तस्स दिअस्स भज्जा / 11 भावार्थः-आ भरतक्षेत्रमा सौराष्ट्र (सोरठ) नामना देशमां चाणिक्य नामना नगरमां वेद अने वेदांगमां निपुण चणिक नामनो ब्राह्मण हतो ते ब्राह्मणनी चणेश्वरी नामनी एक स्त्री हती / / 1 / / पुत्तो पसूओ सुहगो य तीए गब्भत्थदाढापरिजुत्ततुंडो / आपुच्छिऊणं निययं कुटुंब विणिम्मियं तस्स चणिक्कनामं / 21 भावार्थ:-तेणीने गर्भमाथी भाग्यशाली दाढावालो एक पुत्र थयो, सम्पूर्ण कुटुंबने पूछीने तेनुं चाणिक्य नाम आप्यु // 2 // अहेगया तस्स निकेयणमि समागया णाणधरा मुणिंदा / दाढासरूवं जणएण पुट्ट होही नरिंदो भणइ मुणिदो // 3 // भावार्थ:-त्यारबाद एकवार ते ब्राह्मणने घेर ज्ञानवान् मुनि पधायाँ ते ब्राह्मणे पोताना पुत्रने गर्भमांधीज दाढ होवा- फल पूछतां ते एक राजा थशे ए प्रमाणे मुनिए कह्य // 3 // णिसम्म एवं वयणं मुणिस्स चितेइ चित्ते णरयाहिरज्ज / वियस्कइत्तेति सुयस्स दाढागोणीहिं घट्टा तुरियं च तत्थ 14 / Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 40 : : नरभवदिळूतोवनयमाला भावार्थ:-ए प्रमाणे मुनिनां वचन सांभलीने चित्तमां विचार्यु के राज्य तो नरकन अधिकारी छ माठे पुत्रनी दाढा जलदीथी घसवाना हथियारवडे घसाको नांखं तेथी तेनो राज्य मलशे नहि / / 4 / / उणवास तणर्य सुबुद्धि विण्णाय अज्झावयसंनिहाणे / वेयंगसज्जा गिरवज्जविज्जा दक्खीकयं सव्वगुणेहि जुट्ट // 5 // भावार्थ:-आठवर्षना पुत्रने सुबुद्धिवालो जाणीने अध्यापकनी समक्ष वेदना अंगवडे करीने सज अने निरवद्य एर्वी विद्यावडे करीने सर्वगुणोए युक्त एवो दक्ष (हुंशियार) करायौ // 5 // अहण्णया तज्जणणी पिऊण गेहे गया दिक्खमहस्स कज्जे / तुट्ठीकया णो य दरिद्दभावा समागया दीणमणा सगेहे // 6 // भावार्थ:-त्यारबाद एकदा तेनी माता पिताने घरे विवाहमहोत्सवमा गइ किन्तु दरिद्रताने लीधे सत्कार न पामी अने उदासीन थइ पाछी पोताने घरे आवी // 6 // दोणत्तहेउं तणुओ य तीए पुच्छेइ सा भासइ आसुरूत्ता / सव्वा कला दव्वगुणे पविट्ठा धणस्स माणं न गुणाण लोए।७। भावार्थ:-पुत्रे तेणीने दीनपणानुं कारण पूछयु तेणीए पण पोतानी उदासीनतानुं कारण जणाव्युं Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2 पाशक दृष्टांत : : 41 के-तमाम कला ए एक पैसामांज समाएली छे, लोकमां पैसाने जेटलं मान छे तेटलं गुणोने नथी / / 7 / / अण्णावि जामिउ ममं धणट्ठा समागया हुज्ज पिऊणगेहे / सम्माणिआ ता बहुभत्तिपूवं दिणं ममं नो खलु पीइदाणं / 8 / . भावार्थः-मारी बीजी धाढ्य बहेनो पिताने घेर आवेल हती तेणीए पैसाने लइ बहुमान पामी अने मने तो पिताए जरापण दान के मान न आप्युं // 8 // सरिच्छसंबंधगुणेवि एसो अम्मापिऊहिं विहिओ पडिच्छो / दुक्खस्स हेउं सुणिऊण पुत्तो चितेइ चित्ते वसुदुक्खदुत्थो / 9 / भावार्थः-अमारो सघलीनो पुत्रीरूपे सरखो संबंध होवा छतां पण मातापिताए मोटो भेद को. पुत्र चाणाक्ये माताना दुःखनुं कारण सांभली पैसाना दुःखथी व्यग्र थइ मनमी विचार्यु / / 9 / / विज्जा समग्गा अहिया मए .. जहा तहा समज्जामि धणं जहिच्छया / * अम्मापिऊणं तह पुच्छिऊणं - सुहे दिणे निग्गमओ चणिक्को // 10 // . भावार्थ:-जे प्रकारे में सघली विद्याओगें उपार्जन कयुं छे तेवी रीते इच्छानुसार पैसो पण मेलवू Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 42 : : नरभवदिद्रुतोवनयमाला आ प्रमाणे संकल्प करी मातापिताने पूछी शुभ दिवसे ते चाणाक्य गामथी देशाटनमाटे नीकली गयो / 1 / रूवं परिवायमयं विहिज्जा निरग्गलं गच्छइ सत्यदक्खो / कमेण पत्तो वरबुद्धिजुत्तो मयूरपोसाभिहगाममज्झे // 11 // ___भावार्थ:-शास्त्रनिपुण चाणाक्य परिव्राजकनुं रूप बनावी अटकायत विना चाले छे क्रमे क्रमे श्रेष्ठबुद्धि धरनार ते ब्राह्मणपुत्र मयूरपोष नामना गाममां आवी पहोंच्यो // 11 // पालेइ रज्जं निऊणं सुनंददायाय राया वरगुत्तणामा / मोरोयवसोदहिसीयभाणु सम्भाणु पच्चत्थिनिसायरस्स / 12 / / भावार्थ:-त्यां नंदराजानो भागीदार राजा वरगुप्तनामा सारीरीते राज्य करे छे जे मौर्यवंशरूप समुद्रनी वृद्धि माटे चन्द्र जेवो अने शत्रुरूप चन्द्रनो नाश करवा माटे एटले के तेजोहीन करवा माटे राहु जेवो हतो / / 12 / / चंदावई तस्स निवस्स भज्जा आवण्णसत्ता समयंमि जाया / पुण्णेदुबिबालिहपाणदोहलो पाउन्भवित्था दहपूरणिज्जो / 13 / भावार्थ:-ते राजाने चंद्रावती नामनी स्त्री हती गर्भिणी होवाथी वखत आव्ये पूर्णचन्द्रना बिबर्नु पान करवानो मुश्केलीथी पूर्ण करी. शकाय तेवो एक दोहद (मनोरथ) उत्पन्न थयो // 13 // ... Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2 पाशक दृष्टांत : : 43 चउप्पहे तत्थ .ठिअं चणिकं विज्जापसिद्ध पुरलोयपुज्जं / विण्णाय दक्खं तमपूरणट्ठा मंतो उवागम्भ मिमं उदाहु / 14 / भावार्थ:-ते गाममां चतुष्पथ (चोक) मां स्थित लोकपूज्य विद्याथी प्रसिद्धी पामेल ते दक्ष परिव्राजकने जाणी मंत्रिए पासे आवीने संन्यासीने कह्य।१४। हविज्ज तुम्भं जइ कज्जसत्ती पसज्जमज्जज्जवयाहि किज्ज / अक्खाइ सिद्धो जइ गब्भमीसे . पयाहितोमि सुहियं खु कुज्जा // 15 // भावार्थ:-जो तमारी शक्ति होय तो महेरबानी करीने मारा आ कार्य (दोहद. पूरवारूप) ने पूरुं करो, सिद्धवेशधारी चाणाक्ये कह्य-जो तेणीना गर्भमां जे पुत्र छे ते जन्म्या पछी मने आपो तो हुं मनोरथ पूरो करुं ते सांभली / / 15 / / अंगीकयं तव्वयणं जणेहि रण्णो समक्खं लिहियं च सव्वं / निम्मावियं दब्भमयं कुडीरं सोआविया तंमि निवस्स देवी / / 16 / / भावाथः-लोकाएं तेनुं वचन अंगीकार कर्यु अने राजा पासे सघल लखावी लीधुं, ते चाणाक्ये पण एक डाभनी नानो झुपडी करावी जेमां राणीने सुवाडवामां आवी // 16 // सुसक्करापायसपुण्णमेगं पुण्णेदुबिबंतरियं च थालं / जहा जहा तं पिबइ तहेंदु थगेइ एगो उडजट्टिओ नरो / 17 / Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 44 : : नरभवदिट्टतोवनयमाला भावार्थ:-साकरवाला दुधथी भरेल थाल जे मां पूर्णचन्द्रनुं प्रतिबिंब पडेल छे, तेने ज़म जेम राणी पीती जाय छे तेम तेम झंपडीनं छिद्र, जेमांथी चंद्रनुं प्रतिबिंब थालमां पडतु हतु तेने एक मनुष्य उपर बेसी बंध करतो गयो / / 17 // ... उप्पत्तियाबुद्धिगुणेहिं देवी तुण्णं कया पुण्णमणोरहा सा / घेतूण लेहं अइतुट्ठचित्तो भमेइ देसं विहगुव्व विप्पो // 18 // भावार्थ:-ते देवीने औत्पातिकी बुद्धिना गुणोवडे करीने ते चाणाक्ये जलदी पर्णमनोरथवाली करीने लेख लइ अतितुष्ट चित्त थंइ पक्षीनी पेठे ते चाणाक्य देशमां भमवा लाग्यो / / 18 / / कमेण देवीहि सुओ पसओ सुहे दिणे भूमि जहा निहाणं / ईहाणुभावेण य तस्स चंद-गुत्तेत्ति नामं विहियं दिएहिं / 19 / ___ भावार्थ:-क्रमे ते देवीने शुभ दिवसे पुत्र उत्पन्न थयो मनोरथानुसार ब्राह्मणोए तेनुं चंद्रगुप्त नाम राख्यं // 19 // सो राजपुत्ता विहुमंडलुव्व पवढ्ढमाणो धुरि सुक्कपक्खे / वित्तंतमेयं सुणिऊण तुण्णं समागओ तंमि पुरे चणिवको / 20 / भावार्थ:-ते राजपुत्र शुक्लपक्षना चंद्रमंडलनी पेठे वधवा लाग्यो, आ वृत्तान्तने सांभली चाणाक्य शीघ्र ते नगरमां पाछो आव्यो // 20 // Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2 पाशक दृष्टांत : : 45 दसेइ लेहं वय इत्थमेयं दलिज्ज हुज्जा अनिणी निवो जहा / तुट्ठ ण रणावि य पोइदाणं पडुव्वयारूव्व सुयरसदिष्णं // 21 // ___ भावार्थः-लेख बतावी राजाने को के-पोतानुं वचन पाली ऋणमुक्त थव जोइए, राजाए पण संतुष्ट थइने प्रत्युपकाररूप पोताना पुत्रनुं प्रीतिदान कर्यु // 21 // तं चंदगुत्तं णिरवज्जविज्जा-सज्जीकयं तेण गुणुक्करेण / कल हिवस्सेव कलापयारो जहा हविज्जक्खलिओ तहस्स / 22 / भावार्थ:-गुणवान् ते चाणाक्ये पण ते चन्द्रगुप्तने समस्त निर्दोष विद्याओमां पारंगत को कलाधिप (चंद) नी कलाओनो प्रचार जेम अस्खलित थाय छे तेम आ चंद्रगुप्तनी कलाओनो प्रचार पण अस्खलित थयो / / 22 / / चाणिक्कमाभासइ चंदगुत्तो दलाहि मे नंदनिवस्स रज्जं / हविज्ज तो जीवियजम्मलाहो सव्वत्थ भूवालसलाहणिज्जो / / 23 / / भावार्थ:-चंद्रगुप्ते चाणाक्यने का के-मने नंदन राज्य देवरावो, अमारा जीवित अने जन्मनी प्राप्ति सर्वत्र राजाओमां प्रशंसनीय थाय // 23 // कुमारभासं सुणिऊण चित्ते चमक्किओ तत्थ गओ चणिक्को / समागयं तं सुणिऊण विप्पं सचंदगुत्तं नियरज्जलुद्धं // 24 // Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 46 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला . नंदस्स पुत्तो अह आसुरूत्तो तप्पिट्टओ गच्छई णिग्गहट्ठा / नाऊण तं भीइपलायमाणो विणिग्गओ चंदजुओ चणिक्को // 25 // . भावार्थः-चाणाक्य पण कुमारनु कथन सांभली चमत्कार पाम्यो अने चंद्रगुप्तने लइ नंदराजाना नगर तरफ गयो, चंद्रगुप्तसहित चाणाक्यने पोताना राज्यने खुशीथी लेवा माटे आवेल जाणी तत्काल नंदनो पुत्र ते बन्नेना निग्रह अर्थे तेओनी पीठ पाछल आव्यो नंदना पुत्रने पाठल आवेल जाणी डरथी . भागतो चाणाक्य चंद्रगुप्त सहित त्यांथी नीकली गयो // 24-25 // अग्गट्ठियं तण्णयरस्स बाहिं णिणे जयंगंणलनामदिट्ठ। अउ पण?त्ति हु नंदपुत्तो रुट्ठो समागच्छइ इत्थ मग्गे // 26 // भावार्थः-चालतो चालतो ते नगरनी बहार आगल रहेल सरोवरमां वस्त्रधोता धोबीने चाणाक्ये कह्य के अरे कोपायमान थएलो नंदराजानो पुत्र आ मार्गे आवे छे माटे अहींथी नाशी जा // 26 / / सिद्धस्स एयं वयणं सुणित्ता पलाइओ वत्थचयं च हिच्चा / लयापएसंमि सुयं ठवेत्ता सयं ठिओ वत्थधविज्जमाणो // 27 // भावार्थः-सिद्धना ए वाक्यने सांभलीने वस्त्रना ढगलाने छोडी ते धोबी भागी गयो चाणाक्य पण Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2 पाशक दृष्टांत : : 47 चंद्रगुप्तबालकने लताप्रदेशमां संताडी पोते लुगडाने धोतो त्यांज रह्यो / 27 / / अहागओ नंदसुओ भणाइ रे धूत्तो गओ कत्थ वयाहि तुष्णं / धूत्तो गओ तुम्ह भएण नट्ठा बालं खवेज्जाहिव कूवमझे / 28 // भावार्थः-त्यारबाद नंदपुत्रे आवी कह्य-रे धोबी ! धूर्त कइ तरफ गयो, जलदी बोल धोबी रूपमा रहेल चाणाक्ये कह्य-हे अधिप ! आपना भयथी बालकने कुवामां नांखी ते धूर्त भागी गयो / / 28 / णिसम्म तज्भासियमिट्ठसिद्धो कुवं गओ णिग्गहणट्टयाए / पंचत्तपत्तं अह नंदपुत्तं विण्णाय तुट्ठो हियए चणिक्को // 29 / / भावार्थ:-आ वाक्यने सांभली कुवरने मारवा अर्थे नंदपुत्र अंधकूप तरफ गयो त्यांज तेने मरी गयेलो जाणी चाणाक्य हृदयमां खुश थयो // 29 // आरोवइत्ता तुरयस्स पिट्ठ तं चंदगुत्तं गहिऊण तत्थ / ' पुरस्स छिद्दाणि गवेसमाणो भमेइ रज्जं मणसीच्छमाणो / 30 // भावार्थ:-ते कुमारचंद्रगुप्तने घोडाउपर बेसाडी * लइने नगरना पेसवाना छिद्रोने जोतो ने मनमां राज्यने इच्छतो चोमेर फरवा लाग्यो // 30 // Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 48 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला वत्तव्वया इत्थवि अत्थि बाढं एलोइयव्वा बुहमाणसेहिं / . सदुत्तरज्मयणपवित्तवित्ती संखेवओ इत्थ कओहियारो // 31 // भावार्थ:-अहीं पण घj कहेवार्नु छ परंतु विस्तारना भयथी अहीं संक्षेप करवामां आव्यो छे जेओ निपुणमति छे तेओए उत्तराध्ययननी पवित्र वृत्ति (टीका) जोइ लेवी / / 31 // अइदुद्धरं पव्वयनामरायं किरायरायं विहिओ सहायं / नंद हणिज्जा गहियं च पाडली-पुरस्स रज्जं समएण पत्तं // 32 // भावार्थ:-अतिदुर्धर भीलोना राजा पर्वतने सहायक करी नंदने मारी पाटलीपुत्रनुं राज्य थोडा वखतमां मेलवी लीधुं / / 32 / / रज्जाभिसेओ कुमरस्स तस्स विणिम्मिओ सव्वजणेहि तत्थ / चाणविकण्णा बुद्धिबलेहि पव्वयं __ हणिज्ज रज्जं कयभेगच्छत्तं / / 33 / / भावार्थ:-तमाम लोकोए ते चंद्रगुप्तनो राज्याभिषेक कर्यो, चाणाक्ये बुद्धिबलथी सहायक पर्वत राजने मारी चंद्रगुप्तनुं राज्य एकछत्र करी दीधं / 33 / चितेइ भंती पुररज्जभत्तं लद्धं मए णो निवनंदलच्छी / कोसं बलं बाहणरट्ठमाइ केणावुवारहिं तदज्जिणामि / / 34 / / भावार्थः-मंत्रिचाणाक्ये विचायु के में नगरनुं राज्यमात्र मेलव्युं छे नंदनी लक्ष्मी तो हाथ लागी Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2 पाशक दृष्टांत : नथी, कोइ पण उपाये खजानो, घोडा, हाथी, विगेरे सैन्य मारे मेलवी देवं जोइए // 34 / / विणिम्मिया जंतगजोगपासया णियस्स इट्टा परगस्सऽणिटा / भणंति अण्णे कुलदेविभत्ति-प्पसायओ पुण्णबलेहि पत्ता / 353 __भावार्थ:-एम विचारी यंत्रयोगना बलथी पोताने इष्ट लाभ आपनार ने बीजाने नुकशान पहचाडनार पासा बनाव्या ने बीजा आचार्यो कहे छ के-श्रोष्ठ कुलदेवीनी भक्तिथी तेणीना प्रसादरूपे चाणाक्यने प्राप्त थया छे // 35 // पभायकाले अह मंतिदक्खो दोणारपुण्णं गहिऊण थालं / टिओ सहाए णयरंमि तत्थ घुटावइत्ति पडहं च उप्पहे // 36 // भावार्थ:-त्यारबाद ते मंत्रिदक्ष प्रातःकालमां सोनामहोरोथी भरेल थालने लइ सभामां रह्यो ने नगरमां आ प्रमाणे चोकमां पड़ह वगडाव्यो (ढंढेरो वगडाव्यो) // 36 // जिणाइ जोमं मणुओ य जूए दोणारथाले अह गिण्हउ सो / अहं जिणामित्ति सुवण्णमेगं गेण्हामि तो 'सच्चपणप्पइट्ठो / 37 / ___ भावार्थ:-के जे मनुष्य जूवटुं रमता मने जीते ते मारा सोनामहोरथी भरेला थालने लइले ने जो 1 सव्वपण इत्यपि Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 50 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला हुं जीतुं तो सत्यवचनमां स्थिर रही मात्र हारनार पासेथी एकज सोनामहोर लइश // 37 // एयारिसं तं पडहं सुणेता समागया तत्थ बहुमहेन्मा। घणत्थिणो लोहवसा परुप्परं / कोलंति अक्खेहि चणिक्कसिद्धि // 38 // भावार्थ:-ए प्रकारना ते ढंढेराने सांभलीने धनना लालचु मोटामोटा धनाढ्यो लोभवश थइ त्यां आव्या ने चाणाक्यनी साथै पासाओथी रमवा लाग्या / 38 // पयट्टइ जूयमहं निरग्गलं मिगाइ गो को वि अमच्चदक्खं / माणाइगालच्छि समज्जिया , तहिं अक्खप्पसाएण य कित्तिजुत्ता // 39 / / भावार्थ:- मोटु निरर्गल (रोकावटविनानुं) जूवटुं प्रवत्यु परंतु कोइपण चाणाक्यमंत्रिने जिती शक्तुं नथी, आ जूवटामा इजतसाथे बेहदलक्ष्मी ते चाणाक्ये मेलवी // 39 // सन्वेहिं लोएहि विजेउं दुक्करो * अक्खेहि दहि जहा चणिक्को / सम्मत्तजुत्ते मणुयत्तलंभे तहा नराणं खु भवण्णवंमि // 40 // भावार्थ:-जेम सघला मनुष्योथी पण दीव्य अनुकूल पासाओ साथे चाणाक्य जीतावो दुष्कर छे Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2 पाशक दृष्टांत : तेवी रीते संसारसमुद्रमां सम्यक्त्वसहित मनुष्यजन्म पण मलवो घणो दुर्लभ छ / // 40 // देवप्पसाएण य कोवि दक्खो जिणाइ जूए मणुओ चणिक्कं / परं नराणं जिणधम्मजुत्तं नरत्ततंभे व न दंसषं तहा // 41 // भावार्थ:-काइ निपुण मनुष्य देवप्रसादथी कदाचित् चाणाक्यने जीते खरो पण जिनधर्मयुक्तमनुष्यपणुं तो मलवु अत्यन्तदुर्लभ छे / / 4 / / अनोपनययोजना यथा-- अहींया द्रष्टांत घटावे छे, जेमकम्मपरिणामराया तब्भज्जा कालपरिणइणामा / मोहस्स बंधु जेट्ठो लोयट्टिइ भयणीए लहुओ / / 42 // जह चणिक्को मंती दंसणमंती तहा मुणेयत्वो / कम्मपरिणामनरवइ-पासे मग्गेइ भविजीवो // 43 // उवमिइभवप्पवंच-गाथाओ तप्पवित्ति यया / तह चंदगुत्तुव्वजीवं दसणसचिवो य मग्गेइ // 44 / / भावार्थः-कर्मपरिणाम राजा छे, कालस्थिति तेनी स्त्री छ, मोहनो ज्येष्ठबंधु ने लोकस्थिति भगिनीथी नानो चाणाक्यमंत्रिरूप दर्शनमंत्रि जाणवो, कर्मपरिणामरूप राजा पासे भव्यजीवने मागे छे, उपमितिभवप्रपंच कथाथी आ कथानो सघलो प्रपंच Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 52 : : नरभवदिळूतोवनयमाला (विस्तार) जाणी लेवो, चंद्रगुप्त जेवा जीवने दर्शन सचिव मागे छे // 42-43-44 / / . सिकलाविया समन्या विण्णाणकला तहा हु भव्यस्त / .. चारित्तधम्मानरबह- सहायकज्जे तहा जाओ // 45 // भावार्थः-समस्तविज्ञानकला. भव्यने दर्शनमंत्रिए शीखवी तेमज चारित्रधर्मरूप नरपतिनी सहायता पण करी // 45 // पवयनिवुवुरालिय-वणुप्पवंचं सहायमासन्ज / दंसणमंतिबलेप य नंदुव्व हणिज्ज मिच्छत्तं // 46 // भावार्थ:-पर्वतराजा जेवा औदारिकशरीरनी सहायता मेलवी दर्शनरूप मंत्रिना बलथी मिथ्यात्वरूप नंदने हणे छ // 46 // नह पाडलिपुररज्जं चरित्तधम्मं तहा य निरवज्नं / सम्मत्तमप्पमत्तयसुणिम्मिया पासया तत्थ // 47 // . भावार्थ:-जेम पाटलिपुत्र नगरनुं राज्य तेम अहिं निरवद्यचारित्रधर्म जाणवो सम्यक्त्वने अप्रमादरूप पासा बनावेला जाणवा // 47 // अलैहि तेहि लोओ विणिज्जिओ सव्वओ विभवजूए / इंसणमाणगुणुक्कररयणेहिं पुरिमो कोसो // 48 // . Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 53 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला भावार्थ:-ते पासाओवडे करीने विभवरूपजूवटुं खेलता समस्तलोकने जीती लीधो दर्शनज्ञानादिगुणोना समूहरूप रत्नोथी भंडार भरी दीधो / / 48 / / विक्खायकित्तीपसरो संजाओ रज्जकज्जसाहीणो / एवं चिय मणुयत्ते उवणयसंजोजणा जाण // 49 // भावार्थ:-जेनी कीति विशेष प्रसिद्ध थइ छ तेवो चंद्रगुप्त जेम राज्यकार्यमा विशेष स्वाधीन थयो तेम सम्यग्दर्शनरूप मंत्रिनी सहायताथी चारित्रधर्म रूप राज्यनी प्राप्ति करी भव्यजीव स्वतंत्र थाय छे आ प्रमाणे मनुष्यना दृष्टान्तनी उपनय योजना जाणी लेवी / / 49 / / इय बोओ दिट्ठ तो पासगणामा मए विणिद्दिवो / गरभवलट्ठाए लिहिओ पवयणसमुद्दाओ // 50 // . भावार्थ:-ए प्रमाणे पाशकनामा बीजो दृष्टान्त मनुष्यभवनी दुर्लभता उपर शास्त्रसमुद्रमांथी उद्धरी अहिं निर्देशेल छे / / 50 // सिरिविजयप्पहसूरि-रज्जे सिरिविणयविमलकविराया / सिरिधीरविमलपडियसीसेण णयाइविमलेण // 51 // भावार्थ:-श्रीविजयप्रभसूरिना राज्यमां श्रीविनय Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 54 :.. . : नरभवदिटुंतोवनयमाला विमल कविराज थया तेमना शिष्य श्रीधीरविमलपंडित ने तेओना शिष्य नयविमल तरीके में आ योजना करेली छे // 51 // . // इति श्रीमत्तपागणगगनांगणदिनमणिभट्टारकश्रीमदानन्दविमलसूरीश्वरसुशिष्यपण्डितहर्षविमलगणिशिष्यपण्डितजयविमलगणिविनेयपण्डितकोतिविमलगणिशिष्यपण्डित. विनयविमलगणिशिष्यपण्डितधीरविमलगणिसुगुरुपादारविन्दचञ्चरीकायमाणपण्डितनय विमल गणिरचितायां नरमवछटातोपनयमालायां ... द्वितीयो यान्ता सम्पूर्णः // .. Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // 4 // अथ द्युतनामा चतुर्थो दृष्टान्तः // अत्थीह वसंतउरं नयरं नामेण धणकणसण्णाहं / पोढपरक्कमकलिओ जियसत्तू तत्थ आसि निवो // 1 // भावार्थ:-आ भरतक्षेत्रमा धनधान्यथी परिपूर्ण वसंतपुरनामे नगर छे, ज्यां प्रौढपराक्रमवालो जितशत्रु नामनो राजा हतो // 1 // भज्जा य धारणी से णियरूवविणिज्जियाणिमिसवल्लया / जाओ य तेसि तणुओ पुरंदरो रज्जभारसहो // 2 // भावार्थ:-तेनी रूपसुंदरताथी देवीने जीतीलेनार धारणी नामनी स्त्री हती, तेणीने राज्यकार्य करवामां कुशल पुरन्दरनामे पुत्र थयो हतो // 2 // चउविहबुद्धिसमेओ. अइनिम्मल विउलकुलसमुप्पण्णो / आसि अमच्चो सच्चो निच्चं सज्जो निवइकज्जे / / 3 / / भावार्थ:-चार प्रकारनी बुद्धि (औत्पातिकी, वैनयिकी, कार्मिकी, पारिणामिकी)थी युक्त निर्मलकुलमां पेदा थयेल सत्यनिष्ठ सर्वदा राजाना राज्यवहीवटमां तत्पर एवो एक मंत्री हतो // 3 / / थंभट्ठसयनिविट्ठा सुसिणिद्धाणेगरूवकलिया य / नरवइणो तस्स सहा अहियसिरिचित्तखोहसहा // 4 // भावार्थ:-ते राजाने अत्यंत मनोहर विविध Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : नरभवट्टितोवनयमाला जेवी रीते पूर्ण हतो तेवी रीते तेना तमाम दाणाओने जुदा पाडी प्रस्थ भरी आपवो, परंतु कोइ पण रीते पार पामती नथी ने सरसवनो प्रस्थ पूरो करी शकती नथी // 4 // एकमेव मणुयजम्मो अणेगजोपासु परिभमंताएं / पत्तो भट्ठो मणुआणं दुल्लहो मोहमनिणाणं / / 5 / / भावार्थ:-एज प्रमाणे अनेकयोनिमां भमता प्राप्त थयेल मनुष्यनो जन्म मोहमां पडेला मनुष्यो नकामो गुमावी नांखे तो फरी प्राप्त थवो अत्यंत दुर्लभ छ / 5 / सा वि समत्था हवह देवप्पहावेण तत्थ कइयावि / धण्णयविगंछणाइकज्जे नो पुण मणुवलाहे // 6 // भावार्थ:-ते डोशी पण देवप्रभावथी कदाचित् धान्यनुं पृथक्करण करवा समर्थ थाय . परंतु मनुष्यजन्म तो कदापि गुमाव्या बाद महामोहवाला प्राणीओने मलवो अशक्य ज छे // 6 // - अत्रोपनययोजना यथा हवे दृष्टान्त घटावे छे, जेमकम्मसुहासुहपज्जव-वग्गणघण्णाइजाइ णेयव्वा / . जह थेरा तह अविरइ मिच्छत्तदरिद्दगयजुत्ता / / 7 / / भावार्थः-शुभाशुभ कर्मप्रकृतिनी जातिओ तेज Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3 सर्षप दृष्टांत : ': 57 तरेह तरेहना धान्यनी जातिओ, जेम त्यां डोशी छ तेम अहिं अविरति (पापारंभथी अनिवृत्ति) छे, जेम डोशीने दारिद्र हतुं तेम अहिं मिथ्यात्वरूप दारिद्र अविरतिरूप डोशीने जाणवू // 7 // संकाइदुब्बलंगी नत्थिक्कजराइजीण्णजरदेहा / जिणवयणसरिसवाणं पत्थो तह दिद्विवाओ य // 8 // भावार्थः-शंकाथी अविरतिरूप डोशीने दुर्बल अंगवाली जाणवी, नास्तिकपणारूप घढपणथी तेणीना तमाम अंगो जीर्ण थयेल छे तेम जाणवू, जिनवचनरूप सरसवने दृष्टिवाद (बारम् अंग) रूप प्रस्थ (धान्य भरवानुं मापः) जाणवू // 8 // सुविवेयसुप्पगेहिं विगंछए णो वि कम्ममिलियाणं / / जिणवयणसरिसवाणं जह थेरा अविरइ तहा य // 9 // भावार्थ:-सद्विवेकरूप सुपडावती पृथक्करण करी कर्मरूप बीजा धान्यो साथे मलेल जिनवचनरूप सरसवोने जुदा काढवा माटे अविरतिरूप डोशी समर्थ थती नथी // 9 // एवं दसणभट्ट नरो न पावेइ पुणो वि मणुयत्तं / घण्णयनिदसणेण य दुलहो लाहो तहा जाण // 10 // भावार्थः-ए प्रमाणे सम्यक्त्वयुक्त मनुष्यजन्मने Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 58 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला धान्यना दृष्टान्तथी फरी मेलववो बहुज अशक्य छ / 10 / इय तइओ दिलुतो धण्णगणामा मए विणिहिट्ठो / नरभवलट्ठाए लिहिओ पवयणसमुद्दाओ // 11 // भावार्थः-आ प्रमाणे धान्यनो बीजो दृष्टान्त मनुष्य जन्मनी दुर्लभता जणाववा माटे शास्त्रसमुद्रमांथी लइ अहिं में योजेल छे / / 11 / / सिरिविजयप्पहसूरि-रज्जे सिरिविणयविमलकविराया। सिरिधीरविमलपंडिय-सीसेण णयाइविमलेण // 12 // भावार्थ:-श्रीविजयप्रभसूरिना राज्यमां श्रीविनयविमलगणि कविराय थया तेमना शिष्य श्रीधीरविमलगणि तेमना शिष्य नयविमलसूरिए (में) आ दृष्टांतनी घटना अहिं लखेल छे / / 12 / / // इति श्रीमत्तपागणगगनांगणंदिनमणिभट्टारकश्रीमदानन्दविमलसूरीश्वरसुशिष्यपण्डितहर्षविमलगणिशिष्यपण्डितजय विमलगणिविनेयपण्डितकीतिविमलगणिशिष्यपण्डितविनयविमलगणिशिष्यपण्डितधीरविमलगणिसुगुरुपादारविन्दचञ्चरीकायमाणपण्डितनयविमलगणिरचितायां नरभवदृष्टांतोपनयमालायां धान्यराशिनामा तृतीयो दृष्टान्तः सम्पूर्णः // 3 // Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // 3 // अथ सर्षपनामा तृतीयो दृष्टान्तः / / किल कप्पणाए केणवि सुरेण कोउहलेण सव्वाइं / धण्णाई मेलियाई भारहवासस्स तणयाइ / / 1 / / भावार्थ:-कोइ देवे कुतुहलथी भारतवर्षना तमाम धान्योने एकठां कर्यां (आ एक कल्पनिक प्रसिद्धी छ) // 1 // एगो सरिसवपत्थो अह खित्तो ताण मज्झयारंमि / आलोडियाई ताई भणिया एगा तओ थेरी // 2 // भावार्थ:-तेमां एक शेर जेटला सरसव नांखीने तेने हलावी हलावी एकमेक करी नांखी एक डोशीने कह्य // 2 // दुब्बलदेहा दारिद्द-दूमिया किंचि रोगविहूरंगी / तं सुप्पसणाहकरा विगिछ एयाइं धण्णाइ / / 3 / / भावार्थः-ते डोशी दुर्बल शरीरवाली अने दरिद्रने रोगथी विह्वलशरीरवाली हती, तेणीना हाथमां सूपडं आपी एम कहेवामां आव्युं के आ तमाम धान्यो- पृथक्करण करी नांख // 3 // ता जा सरिसवपत्थो पुण्णो सो चेव सा तहा काउं / पारद्धा मेलिज्जा किण्णं पत्थं सरिसवाणं // 4 // भावार्थ:-तेमांथी प्रथम सरसवनो प्रस्थ (शेर). Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : नरभवदिळूतोवनयमाला चित्रोथी शणगारेली अधिकशोभा संपन्न एकसोआठ थांभलावाली सभा हती // 4 // तत्थेक्केक्के थंभे अस्सीण सयं समत्थि अट्टहियं / एवं अस्सीण सहस्सा एगारससहस्सछसयचउसट्टा // 5 / / भावार्थः-जे सभाना एकेक थांभलामा एकसो आठ हांशीया (खुणा) हता, तमाम मली अगीयार हजार छसें चोसठ (11664) हांशीया हता / 5 / एवं कालंमि गए बहुमि रज्जं निसेवमाणस्स / नरवइणो तस्स सुओ अहण्णया चितइ कुचित्तो // 6 / / भावार्थः-आ प्रमाणे केटलोक काल वीती गया पछी राज्यने पालन करनार जितशत्रुराजानो पुत्र दुष्टचित्तवालो थइ एकदा विचारवा लाग्यो / 6 / रज्जं जह तह पत्तं सोहणमिइ चितिऊण जणवायं / ता थविरं नियपियरं मारिय गेण्हामि रज्जमिणं // 7 // भावार्थ:-जे रीते बनी शके ते रीते राज्य प्राप्त करवं ते ज श्रेय छे, आवा जनवादनो विचार करी निर्णय उपर आव्यो के, वृद्धपिताने मारी राज्य मेलवी लउं // 7 // नाऊण तस्सहाव-मच्चेण निवेइओ तओ रण्णा / आहुओ तेण सुओ भणिओ य कम पडिक्खाहि / / 8 / / Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 द्युत दृष्टांत : : 61 अह तोरसि रज्जकए दाएणेगेण अट्ठसयवारे / जिणसु निरंतरमस्से एक्केवकं देमि तो रज्जं // 9 // भावार्थः-शाणामंत्रिए कुमारनो भाव जाणी लीधो ने राजाने जणावी दीg, राजाए पुत्रने बोलाव्यो ने का के-आ क्रमने स्विकार, ते ए छे के मारी साथे जूवटे रम ने एकेक दावे जीतता निरंतर एकसो आठवार मने जीती शके तो हुँ राज्य आपीश // 8-9 // जो मं जए जिणाइ मए समं पइदिणं जह क्कमसो / अट्ठसयं यंभाणं तुरियं पावेसि तो रज्ज // 10 // ___ भावार्थ:-जो मारी साथे हमेशां जूवटुं रमता क्रमे एकसोने आठ थांभलाने जीती लइश तो तरत ज समग्र राज्य समर्पिश (आपीश) // 10 // जइ एगवारमित्थ य खलहिज्जसि तो हविज्ज पुण जूयं / सुणिऊण जणयवयणं हट्ठो तह उज्जमी जाओ // 11 // ... भावार्थ:-जो एकवार पण जूवटामां हारीश तो ते पहेला जीतेल तमाम निष्फल जशे अने फरी पहेलेथी रमत शरु थशे, आवं पिताजी- वाक्य सांभली लोभी पुत्र ते शरते जूवटुं रमवा तैयार थयो // 11 // Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 62 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला अण्णोणं ते कोला-परायणा जाव बारवरिसाणि / न लहइ पुण दुचित्ता पुत्तो कइया वि जयवायं // 12 // ____ भावार्थः-ते बन्ने उक्त शरते जूवटुं खेलवा लाग्या ने बारवर्ष चाल्या गया परंतु दुष्टहृदयनो पुत्र दावमां विजय मेलवी शक्तो नथी // 12 // एवं दीणमणो सो न लहइ रज्जं च जूयजयवायं / कहमवि देवबलेण य लहइ जयं णो वि निरजम्मो / / 13 / / ___ भावार्थ:-ए प्रमाणे ते पुत्र राज्य के जूवटामां जय आपनारो दाव मेलवी शकतो नथी, कदाचित देवानुग्रहथी ते मेलवी शके पण खरो, किन्तु मनुष्य . जन्म तो पामवो घणो दुर्लभ ज छे // 13 / / जह तासि असीणं तस्स जओ दुल्लहो चिरेणा वि / तह मणुयत्तं जीवाणं जाण भवगहणलीणाणं // 14 // भावार्थ:-जेम ते तमाम थांभलानी हांशोनो जय मेलववो धणो ज कठिन छे तेम संसाररूपगहन (वन) मां लीन थएला बहुलभविजीवोने मनुष्यजन्म पण फरी मलवो महा दुर्लभ छे / / 14 // ___ अत्रोपनययोजना, यथा हवे दृष्टान्त घटावे छे, जेमजह णरवइ तह भन्बो जीवो अत्थिक्कणयररज्जधुरो / सुहमइरमणीरमणो विवेयमती पसन्नगुणो // 15 // Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 द्युत दृष्टांत : भाषार्थ:-जेम त्यां राजा छे तेम अहिं भव्यजीव जाणवो, ने आस्तिक्यनगर- राज्य जाणवं. शुभमति रूप रमणीमां रक्त (आसक्त) छे, विवेकरूपमंत्री सारा गुण धरावनारो भव्यरूप राजा पासे छे / / 15 / / तस्स य जह दुट्ठसुओ दुट्टा तह कायवयणमणजोगा / दुमणा. नियजणउवरि णिच्चं दुल्झाणसंपुण्णो // 16 // भावार्थ:-दुष्ट पुत्ररूप मनवचनकायाना दुष्ट योगो जाणवा, ते पोताना जनकरूप (पितारूप) भव्यजीव उपर हमेशां दुर्व्यानवाला ज रहे छे / / 16 / / जह चित्तसहुव्व पवयण-साला विमला दुवालसंगी य / अठ्ठत्तरसयमुना उप्पत्तिखणी य जीवाणं // 17 // भावार्थ:-जेम राजाने चित्रसभा हती तेम अहिं प्रवचन (आगम) रूप महेलमां विशाल द्वादशांगरूप शाला जाणवी जेमां एकसोआठ 108 स्तंभरूप भव्य जीवोनी एकसोआठ. 108 उत्पत्ति खाणो कही छे // 17 // भूजलजलणानिलवण-सुहमियरमेय भिण्णदसभेआ / पज्जापज्जपबीसं पत्तेय जुएहिं दुगवीसं / / 18 / / भावार्थ:-पृथ्वी, पाणी, अग्नि, वायु ने वनस्पतिकायना सूक्ष्म अने बादर एम दश भेद, तेना पर्याप्ता ने अपर्याप्ता एम वीस भेद, प्रत्येकवनस्पतिना बे भेद Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : नरभवदिटुंतोवनयमाला मलता बावीस भेद थया / / 18 // बित्तिचरिदितिविगला-पज्जापज्जत्तजुत्तछन्भेया / जलथलखयरोरग भुवगा य पणिदि य तिरक्खा // 19 / / सण्णिअसण्णिपज्जा-पज्जयभेऐहि वीसपेचिदी / कम्माकम्मगंतर-मणुया दुय समुच्छिमा सत्त // 20 // नारयपज्जापज्जापरमा पणदस य वंतरा सोल / . जोइस पण दस भवणा किविसा तिणि विमाणा // 21 // अट्टोतरसय जीवाण खाणी एसि च अस्सि. णायन्या / कम्मट्ठपयडिमिच्छत्त-इंदियणोइंदियसरूवा / / 22 / / भावार्थ:-बेइंद्रिय, तेइंद्रिय, चतुरिंद्रिय ए त्रण विकलेंद्रियना पर्याप्ता अपर्याप्ता मली छ भेद, जलचर, स्थलचर, उरपरि, भुजपरि, खेचर ए पांचना संज्ञी असंज्ञी, पर्याप्ता ने अपर्याप्ता. एम चार प्रकारे गणता वीस भेद पंचेन्द्रिय तिर्यंचना थया, कर्मभूमि, अकर्मभूमि ने अंतरद्वीपना मनुष्योना बबे भेद गणतां अने समूछिम मनुष्य मली सात भेद थया, नारकीना पर्याप्ता ने अपर्याप्ता, परमाधामी पंदर, व्यंतर सोल, ज्योतिष पांच, भवनपति दश, किल्बिष त्रण अने वैमानिकना बे भेद मली कुले एकसोआठ जीवनी खाणीओ जाणवी, आठ कर्मनी प्रकृति मिथ्यात्व, इन्द्रिय अने नोइंद्रियरूप हास्या (खूणा)ओ जाणवा // 19-20-21- 22 // Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 धुत दृष्टांत : खाइयदंसणचारित्त-अक्खेहि परोप्परं रमति सया / जइ लभइ जयवायं लहइ तया केवलं रज्जं // 23 // भावार्थ:-क्षाषिकसम्यक्त्वने चारित्ररूप पासाओथी अंदरो अंदर हमेशां रमे छे, जो जयनो दाव नाखे छे तो जय पामी केवलज्ञानरूप राज्यने मेलवे छे // 23 // पावेज्जइ नो फहमवि दुट्ठसुएण य जहा जणयरज्जं / तह दुट्ठजोगतणुएहिं न लहिज्जइ अप्पपगइवररज्जं // 24 // भावार्थ:-जेम दुष्टपुत्र पोताना राज्यने कोइपण रीते मेलवी शकतो नथी. तेम दुष्टयोगोथी आत्मान स्वाभाविक रमणरूप श्रेष्ठ राज्य मेलचो शकातुं नथी / / 24 / / विट्ठ तो य चउत्थो जूयगनामा मए विणिहिट्ठो / परभवलद्धट्टाए लिहिओ पवयषसमुहाओ // 25 // भावार्थ:-आ प्रमाणे जूवटानो चोथो दाखलो मनुष्यजन्मनी दुर्लभता उपर शास्त्रसमुद्रमांथो लइ में संक्षेपमा निर्देशेल छे एटले देखाडेल छे / / 25 / / सिरिविजयप्पहसूरि-रज्जे सिरिविणयविमलकविराया। सिरिधीरविमलपंडिय-सीसेण णयाइविमलेण // 26 // Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : नरभवदिटुंतोवनयमाला भावार्थ:-श्री विजयप्रभसूरिना राज्यमां कविराज श्रीविनयविमलगणि थया तेओना शिष्यपंडितश्रीधीरविमलगणि थया तेमना शिष्ये में (नय विमले) आ योजना करी छे // 26 // ...... // इति श्रीमत्तपागणगगनाङ्गणदिनमणिभट्टारकश्रीमदानन्दविमलसूरीश्वरसुशिष्यपण्डितहर्षविमलगणिशिष्यपण्डितजयविमलगणिविनेयपण्डितकीतिविमलगणिशिष्यपण्डितविनय। विमलगणिशिष्यपण्डितधीरविमलगणिसुगुरुपादारविन्दबञ्चरीकायमाणपण्डितनयविमलगणिरचितायां नरभवदृष्टान्तोंपनयमालायां द्यूतनामा दृष्टान्तश्चतुर्थः सम्पूर्णः Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // 5 // अथ पञ्चमो रत्ननामा दृष्टन्तः / / रयणकयाणगवस्स- उच्छलंतकित्तीए तामलित्तीए / आसी पमुइयचित्तो सागरदत्तेत्ति णामा य // 1 // भावार्थ:-रत्नोना व्यापारथी फेलायेल कीर्तिवाली तामलिप्तिनगरीमा प्रसन्न मनवालो सागरदत्त नामनो शाहुकार वसतो हतो // 1 // सो लाहट्ठमण्णयाइ नाणाविहवत्थुभरियबोहित्थो / रयणद्दीवमइगओ विहिओ रयणाण संजोगो // 2 // भावार्थ:-एकदा लाभमाटे अनेक वस्तुओथी भरेल वहाणने लइ रत्नद्वीपमा गयो ने त्यां भाग्ययोगे रत्नो पण मली आव्या // 2 // परियमणोरहो सो चलिओ जा एइ जलहिमझमि / णयरीए तामलित्तीए सम्मुहं ताव संपोयं / / 3 / / भावार्थ:-मनोरथ पूर्ण थनाथी ते त्यांथी चाल्यो, ज्यारे समुद्रमध्यमां तेनुं वहाण तामलिप्तीनगरी तरफ चालवा लाग्यं // 3 // पुष्णक्खएण भिण्णं अइगुहिरे तंमि सागरजलंमि / सव्वोवि रयणरासी दिसोदिसं विप्प इण्णो य // 4 // ___ भावार्थ:-त्यारे अकस्मात् पुण्यक्षयथी घणाउंडा समुद्रजलमां ते त्रुटी डूबी गयुं अंदर भरेल रत्नपुंज चारे तरफ विखराइ गयो // 4 // Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 68 : : नरभवतोदिटुंवनयमाला सोवि य समुदत्तो पावियफलगं कहंचि तीरंमि / लग्गो विसण्णचित्तो खारजलासीणसव्वंगो // 5 // भावार्थ:-ते पण समुद्रदत्त (सागरदत्त) शाहुकार एक पाटीउं मली जवाथी महामुशीबते कांठे आवी लाग्यो ते वखते तेनुं शरीर खारापाणीमा रहेलं होवाने लीधे बहुज नाराज चित्तवालो थइ गयो हतो // 5 // पारद्धं रयणाणं गवसणं तेण पउणदेहेण / जह तस्स रयणनिबहो दुलहो तह इत्थ मणुअत्तं // 6 // भावार्थ:-त्यारबाद तेजे गएल रत्ननी गवेषणा करवी शरु करी, जो के ते हवे पुष्टशरीरनो हतो तोपण तेने गएल रत्नराशी पाछी मलवी तो दुर्लभ ज छे तेवी रीते. आ मनुष्यजन्म पण दुर्लभ जाणवो // 6 // अत्रोपनययोजना, यथा- . हवे दृष्टान्त घटावे छे, जेमजह सेट्टी तह भन्यो सुगुरुसुधम्माइतत्तसंजुत्तो। इंसणगुणवररयणेहिं पुरिअअस्थिक्कबोहित्यो // 7 / / भावार्थ:-जेम श्रेष्ठी हतो तेम अहिं सद्गुरुसद्धर्मादितत्त्वयुक्तभव्यजीव जाणवो, सम्यक्त्वदर्शनरूप रत्नथी आस्तिक्यरूप वहाण भरेलु हतुः // 7 // Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 रत्न दृष्टांत : संजमरवणद्दीवं पत्तो पुण तत्थो गुरुजिणाणुकलाओ। आगमणयवररयणाण सोहणं भायणं जाओ // 8 // भावार्थ:-संयमरूप रत्नद्वीपे पहोंच्याबाद त्यां जिनदेव अने गुरुनी अनुकूलताथी सिद्धान्त अने नयरूप रत्नोनुं भाजन थयो / 1853 विगहोस्सुत्तमहानिल-उन्भडकल्लोलभीसणवसाओ / अस्थिक्कजाणवत्तं भग्गंमि गया रयणरासी / / 9 / / भावार्थः-विग्रह अने उत्सूत्ररूप प्रचंडपवनना वेगथी थएल भयंकर कल्लोलोने लीधे आस्तिकतारूप यानपात्र (वहाण) भांगी गयुं ने संयमरूप रत्नराशी गुम थइ गयो // 9 // . रुद्दे य भवसमुद्दे णिच्च परिभम्मुवागओ णिगोयगिहे / तस्स सुइरयणगणों दुलहो तह जाण मणुअत्तं // 10 // ____ भावार्थ:-भयानक संसाररूप समुद्रमां बहु भमीने निगोदरूप घरमां पाछो आव्यो परंतु जेम गयेल राशी दुर्लभ छे तेम मनुष्यपणुं अतिदुर्लभ छे / 10 / इय पंचमदिटुंतो रयणगणामा मए विणिद्दिष्टो / नरभवलद्धट्ठाए लिहिओ पवयणसमुद्दाओ // 11 / / भावार्थ:-ए प्रमाणे मनुष्यजन्मनी दुर्लभताउपर रत्ननामनो पांचमो दाखलो प्रवचनसमुद्रथी लइ में अहिं योजेल छे / / 11 / / Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 70 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला सिरिबिजयप्पहसूरि-रज्जे सिरिविणयविमलकविराया। . सिरिधीरविमलपंडिय-सीसेण गयाइविमलेण // 12 // भावार्थ:-श्रीविजयप्रभसूरीश्वरना राज्यमां श्रीविनयविमल कविराज थया जेओना शिष्य श्रीधीरविमलपंडित हता तेमना शिष्य नयविमलमुनीश्वरे उपरनी रचना करेली छे / / 12 // // इति श्रीमत्तपागणगगनांगणदिनमणिभट्टारकश्रीमदानन्दविमलसूरीश्वरसुशिष्यपण्डितहर्षविमलगणिशिष्यपण्डितजयविमलगणिविनेयपण्डितकोतिविमलगणिशिष्यपण्डित. विनयविमलगणिशिष्यपण्डितधीरविमलगणिसुगुरुपादारविन्दचञ्चरीकायमाणपण्डितनयविमल गणिरचितायां नरभवदृष्टांतोपनयमालायां रत्नराशिनामा पञ्चमो दृष्टान्तः सम्पूर्णः / / Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आवश्यकचूणौ रत्नदृष्टान्तोऽन्ययापि दृश्यते, तथाहिआसी.सुकोसलणयरे पवरगुणपउणजणसमाइण्णो / इभो अच्चन्भुयभूइ-भायणं धष्णदत्तोनि // 1 // भावार्थ:-सुकोशलनगरमा श्रेष्ठगुणो अने मोटा परिवारथी युक्त अत्यद्भुत ठकुराइवालो धनदत्त नामे शेठ हतो // 1 // तस्स पिआ पणइणी घणसिरित्ति जाया सुया पंच / बहुरयणरासिसारो घरसारो अगणिओ तह य // 2 // ___ भावार्थः-तेनी धनश्री नामनी प्रियपत्नी हती ने पांच पुत्रो हता तेमज सारसाररत्नोथी मोटो किंमति अगणित खजानो हतो // 2 // जायंमि वसंतमहे तंमि पुरे जस्स जत्तिआ अस्थि / षणकोडीओ पडाया तावइया सा समुस्सेइ / / 3 / / . भावार्थ:-ते नगरमां वसंतमहोत्सव चखते जेने जेटला क्रोड धन होय तेओ तेटली पताकाओ बांधवा लाग्या // 3 // सो पुण इभो कोडोहि रयणमोल्लं करेउमसमत्थो / तेसिमणग्यत्तणओ उज्झइ णो तो पडायाओ / / 4 / / भावार्थ:-ते. धनदत्तोष्ठी तो रत्नो अमुल्य होवाथी करोडोथी पण मूल्य न करी शकवाने लीधे Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : नरभवदिटुंतोवनयमाला. पताकाओने बांधतो नथी / / 4 / / .. कालेण तंमि कइया तामि गयंमि कत्थः वि य समए / कत्तो वि कन्जवसओ विहिया देमंतरं दूरं / / 5 / / ___ भावार्थ:-केटलोक समय वित्याबाद कोइ वखते तेनो पिता कार्यवशात् दूर देशान्तरमा गयो / / 5 / / तो तरुणबुद्धिणा ते तणपा कोउहलं पडागाणं / काऊण मणे रयणाण विक्कयं काउमारद्धा // 6 // भावार्थ:-त्यारबाद उछलनी बुद्धिवाला ते पांच छोकराओए पताकाओ बांधवानां कुतुहलमां आवी ते अमुल्यरत्नोने वेचवा शरु कर्या // 6 // विहिया धणकोडीओ पत्ते य महमि पंचवण्णाओ। पवणपणोल्लियकणय-किंकिणीजालकलियाओ // 7 // नियपासायस्सुरि सयसंखा णिम्मिया पडायाओ / एवं वटुंताणं तेसिं ताओ समायाओ // 8 // भावार्थ:-अनेक क्रोडो धन मेलव्यं पुनः वसंतमहोत्सव आवे पवनथी चालती सोनानी घुघरीओवाली पंचरंगी सेंकडो पताकाओ पोताना घर उपर बांधी आ प्रमाणे पुत्रो वर्त्तताज हता एटलामां तेनो पिता आवी पहोंच्यो / 7-8 / / भणिया य तेण किमियं चेट्टियमसमंजसं जओ ताणि / रयणाणि मोल्लरहियाणि विक्कओ ताण कहं विहिओ // 9 / / Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 आवश्यकचूर्णी रत्नदृष्टांतः : : 73 भावार्थ:-तेणे पुत्रने का रे ! आ अघटित चेष्टा शो ? किंमत न थइ शके तेवा रत्नोनो विक्रय तमोए क्या कर्यो // 9 // मोल्लाणि पडिसम्मपिअ तेसिं वणिजा रयणाण लहु चेव / जह एइ मज्झ गेहं ताई तुब्भेहिं तह कज्ज // 10 // ___ भावार्थ:-किंमत पाछी आपी ते खरीदनार वाणीआओ पासेथी जे रीते रत्नो मारे घेर पाछां आवे ते रीते तमो सघलाएं करवू // 10 // तो तेहिं अट्ट अदृसु दिसासु तेसि गवेसणनिमित्तं / पारसकूलाइसु पत्ता देसंतरेसु कमा / / 11 / / ___ भावार्थः-त्यारबाद ते पुत्रो आठे दिशामां ते रत्नोनी शोध माटे नीकली गया ने छेवटे देशांतरमां गया // 11 // सव्वायरेण ताई गवेसयाई न सव्वसंजोगा। संजाओ वणिआणं कहिंपि केसिपि गमणवसा // 12 // . भावार्थ-विशेष आदरपूर्वक गएलां रत्नो शोध्या परंतु खरीदी लइ जनार वाणीआओ कांइ अनियत स्थाने चाल्या गएला होवाथी रत्नो मल्या नहि / 12 / रयणाण तेसि दुलहो समागमो जह तहेव जीवाणं / मणुयत्ताओ भट्ठाण पुणोवि माणुस्सओ जम्मो / / 13 / / Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 74 : : नरभवटुिंतोवनयमाला ... भावार्थ:-जेम ते शेठना छोकराओने पोते वेची मारेला रत्नोनो फरी समागम थवो दुर्लभ छे, तेवी रीते मनुष्य जन्मथी भ्रष्ट थएला जीवोने पण फरी मनुष्यनो जन्म. मलवो महा दुर्लभ छे / / 13 / / घेत्तूणं रयणाणि कहमवि तेसि समागमो हुज्जा / देवःपहावेण पुणो मणुयत्तं णो तहा भटुं // 14 // भावार्थ:-कोइपण उपायथी देवतानी महेरबानीथी ते गएला रत्नोने लइने समागम थाय पण प्रमादथी भ्रष्ट थएल मनुष्यभवनो समागमतो फरी मलवो दुर्लभ छे / / 14 / / अत्रोपनययोजना यथा अहीया दृष्टान्त घटावे छे, जेमणिच्छयविवहारमाइ-जलबहुमुल्लागमाइरयणधणो / जो सुविहियगीयत्थो सो विवहारी मुणेयव्यो // 15 // भावार्थ:-निश्चय अने व्यवहारनय विगेरे देदीप्यमान बहुमूल्यवाला आगमादि रत्नथी धनवाला जे सुविहितगोतार्थ होय ते व्यवहारी [धनदत्तश्रेष्ठी] जाणवा // 15 // पासत्थोतनकुसील-संसत्तहाच्छंदरूवपंचसुया / . . बज्झसुहबद्धचित्ता अण्णोण्णं ते परममित्ता // 16 // . Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 आवश्यकचूर्णौ रत्नदृष्टांतः : : 75 भावार्थ:-जे धनदत्तशेठने पांच पुत्रो हता ते अहिं गोतार्थरूपव्यवहारीयाने बाह्यपौद्गलिक सुखमां बंधायेला चित्तवाला अने परस्पर परमप्रीतिवाला होवाथी परममित्रतावाला पासत्थो 1, उसन्नो 2, कुशील 3, संसक्त 4, यथाछंद 5 एरूप पांच कुगुरूओ. पांचपुत्र रूप जाणवा / / 16 / / हवे पासत्था विगेरे पांच कुगुरुओनुं स्वरूप शास्त्रमाथी उद्धरीने भव्योना बोधने माटे कांइक लखिए छीए, तेमां पासत्था विगेरे पांच कुगुरुओमां पासत्थो बे प्रकारे छे,-सर्वथी पासत्थो अने देशथी पासत्थो, तेमां पोताना रागी श्रावकने संभालीने राखे अने सारा साधुनी सोबत करतां अटकावे, भोलालोकोने भरमावे, पोताना अवगुणने ढांके, पारका अवगुणने देखे, मोक्षमार्ग पुछनार भव्योने अवलो मार्ग बतावे अने सारा साधुओनी निंदा करे एम अनेक अवगुणथी भरेलो होय ते सर्वथी पासत्थो कहेवाय छ, तथा देश थकीतो शय्यातरपिंड तथा राजपिंडने कारण विना ग्रहण करे तथा सन्मुख लावेलो आहार लेवे, देश, नगर कुल विगेरेमां ममतावालो, शुद्ध कुलमर्यादाने उत्थापनारो, विवाहमहोत्सवने जोनारो, जेवा तेवा माणसोनो परिचय Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : नरभवदिठूतोवनयमाला करनारो अने महाव्रतनो त्याग करीने प्रमादमां पडेलो ते देशथी पासत्थो कहेवाय छे. 1 हवे गलियाबलदनी जेम जे महाव्रतादिना भारने न उपाडे ते उसन्नो जाणवो, ते पण देशथी अने सर्वथी, एम बे प्रकारे छे, तेमां शेषकाले कारण विना पाटी पाटला वावरे, अमुक श्रावकना घरनुं लावेलुज म्हारे भोजन लेवं इत्यादि दोषयुक्त पिंड लेवावालो जे होय ते. सर्वथी उसन्नो कहेवाय छे, तथा देश थकीतो प्रतिक्रमणादि ठेकाणा ओच्छा वधतां करे, अने सुगुरुनं वचन जालवे नहि अने राजवेठी काम करनार अने उपयोग विना क्रिया करनार, एम करवाथी आगामिभवे जेने चारित्र मलवं महादुर्लभ छे तेवो अने पोताना शिष्योने पण क्रियामां शिथिल करनार होय ते देशथी उसन्नो कहेवाय छे. 2 हवे कुशीलनुं स्वरूप कहे छे-ज्ञानदर्शनचारित्रना भेदथी त्रण प्रकार- कुशील होय छे, एटले त्रण रत्नोनी आराधना न करे तो कुशील जाणवू, जेमके ज्ञानथी "काले विणए बहुमाणे" इत्यादि ज्ञानाचारनो भंग करे, तथा दर्शनथी "निस्संकिय निकंखिय" इत्यादि दर्शनाचारनो भंग करे तथा चारित्रथी. Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 आवश्यकचूणी रत्नदृष्टांतः : : 77 “पणिहाण जोगजुत्तो पंचहि सम इहिं तिहिं गुत्तिहि" इत्यादि चारित्राचारनो भंग करे, अने शोभामाटे स्नान करे, औषध आपवा विगेरे वैदकना कामो करे अने प्रश्न विद्याप्रमुखना बलथी कारण विना पोताने मनाववा पूजाववा माटे निमित्तादिक कहे अने जातिकुलप्रमुखथी आजिवीका करे अने कपटनो भंडार अने स्त्रीप्रमुखना अंगलक्षण कहे, नीच मार्गे मंत्रादिकना काम करे इत्यादि चारित्रने दूषण लगाडवाना कार्य करवाथी चारित्रकुशील जाणवो, ए प्रमाणे कुशीलनुं स्वरूप. जाणवू. 3 / हवे संसक्तनुं स्वरूप कहे छे-जे जे ठेकाणे जाय त्यां तेना जेवो थइ जाय अने नाटकीयानी जेम बहुरूपी थइने फरे अने श्रीतीर्थंकरमहाराजाना वेषने वगोवे ते अशुभसंसक्तो कहेवाय छे, केमके आगमना अर्थो बे प्रकारे छे-शुभ अने अशुभ, तेमां जो महाव्रतादि मूलगुणमां तथा पिंडविशुद्धि प्रमुख उत्तरगुणमां थतां दोषोने निवारनार शुद्धयोगीपुरुषोनी साथे एटले संवेगी पुरुषोना साथे आगमनो अर्थ मल्यो होय तो शुभरीते परिणमवाथी शुभ कहेवाय छे, अने तेहिज आगमनो अर्थ जो पासत्थादिसाथे मल्यो होय तो प्राये करी अशुभरीते परिणमवाथी अशुभ कहेवाय Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 78 : .: नरभवदिठूतोवनयमाला छे, केमके "लिंबडाना समागमथी मीठा आंबामां पण कडवास आवे छे" तो आ ठेकाणे आंबाना जेवा आगमो जाणवा अने लिंबडा समान पासत्यादि जाणवा, तो अहि अशुभ संसक्तो एटले प्राणातिपातादि पांच आश्रवमां अने ऋद्धिगारवादिकमां आसक्त होय, बहुकामी होय अने मोहथी घेरायेल होय ते अशुभसंसक्तो जाणवो, अने आगमना जाण अने शुद्धमार्गे चालनारा गीतार्थ प्रमुख जे संवेगी पुरुषो होय ते शुभ संसक्ता जाणवा पण अहिं कुगुरुना संबंधमां अशुभ संसक्तो ग्रहण करवो एज. 4 हवे यथाछंदन स्वरूप कहे छे-जे जैनसूत्रथी विरुद्धाचारे चालतो होय अने सूत्रविरुद्ध बोलीने उत्सूत्रनी प्ररूपणा करनार अने स्वेच्छाए वर्तनार होय ते यथाछंद कहेवाय छे, तेमां जे वचनो सूत्र अने परंपराथी मलतां न होय ते वचन उत्सूत्र कहेवाय छ, तथा गारवमां माच्यो रहे अने गृहस्थना करतां पण नीचकार्य करे, भोलालोकोने भरमाववा माटे पोतानां मतिकल्पित वचनो बोले, जेमके-हे भाइयो! आपणे एकली मुहपत्तिथी पडिलेहण करीशुं माटे चरवलानुं शुं काम छे, अने आपणे पात्रामां Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 आवश्यकचूर्णौ रत्नदृष्टांत: : : 79 मा करीशुं माटे कुंडीनुं शुं काम छ, अथवा चोलपट्टाना आपणे पडला करीशुं माटे जुदा पडला राखवानी कांइ जरुर नथी चोमासामां जो वरसाद न आवतो होय तो साधुओने विहार करवामां शुं दोष छे अथवा चोमासामा साधुओने वस्त्र वहोरवाथी शुं दोष छ, वहोरे तो कांइ हरकत नथी एम कुभाषण करे, अथवा पोताने गमतुं न लागे तो "अहो ! तीर्थंकरे आ प्रमाणे क्यां कह्य' इत्यादि स्वमतिकल्पनाथी भूतगृहीत (भूतावल) अथवा गांडा माणसनी पेठे बोले अने तेनुं मन पण शुद्ध होय नहि ते मिथ्यादृष्टि यथाछंद जाणवो. 5 - ए पांचे कुगुरुनु विशेषस्वरूप जाणवानी इच्छा होय तो श्रीव्यवहारभाष्य तथा श्रीआवश्यकसूत्रवत्ति योगबिन्दु प्रमुख ग्रंथोथी जोइ लेवं, एम प्रसंगथी पांच कुगुरूनुं स्वरूप का जह तत्थ वसंतमहो इत्थ य जणपूअमहिमप्पारंभे / इड्ढोरससायगारव-धया जहोससियपडाया // 17 // भावार्थ:-जे त्यां वसंतमहोत्सव हतो ते अहिं लोकोए करेली पूजा अने महिमानो प्रारंभ जाणवो, तेमां ऋद्धिथी, रसथी, मुखथी गर्व पामवारूप Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 80 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला ऋद्धिगारव, रसगारव, सातागारवरूप घर उपर उंची करेली पताकायुक्त ध्वजा जाणवी // 17 // सो गीयत्थो सूरी पत्तो देसंतरे खु कइयावि / / जणवयविहारकज्जे तं पासेत्ता सुया हट्ठा // 18 // भावार्थ:-ते गीतार्थसूरिरूप व्यवहारी जनपद (देश) मां विहार करवा माटे निश्चये कयारेक देशान्तरमां गया, ते जोइने पेला पांचकुगुरुरूप पांच पुत्रो हर्ष पाम्या एटले गीतार्थ परदेशमा विहार करे त्यारे कुगुरुओनु बल वधे ते माटे ते आनंद पामेज केमके सिंह ज्यांसुधी वनमां होय त्यां सुधी शियाल प्रमुखोनुं कांइ जोर चाले नहिं, ज्यारे सुगुरुगीतार्थरूप व्यवहारी परदेशे गया एटले पेला कुगुरुरूप पुत्रोनुं जोर वध्यु // 18 // अइणग्धं जिणवयणं रयणं विक्किज्ज अप्पमल्लेण / नियउयरपूरणट्ठा गारवकेऊ समुस्ससिया // 19 // . भावार्थ:-हवे ते गीतार्थरूप व्यवहारी ए देशान्तरमा विहार कर्या पछी पेला पांच कुगुरुरूप पुत्रोए अमूल्य अथवा बहुमूल्यवालुं श्रीतीर्थकरना वचनरूप रत्नने पोतानी उदरपूर्णा (पेट भरवा) माटे थोडी किम्मतमां वेचीने. (अमे पण कोटिध्वजो छीए) एम गारवरूप ध्वजाओ उंची करी दीधी // 19 // Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 आवश्यकचूर रत्नदृष्टांत- : : 81 जणएण य ते पुत्ता दिट्ठा दुट्ठकम्मगारविया / आयरियउचज्झाय-पयं लहिज्जाऽहलगुणेहिं / / 20 / / - भावार्थ:-तेवारपछी परदेशथी आवेला गीतार्थरूप पिताए दुष्ट एवा आठकर्मवडे गर्व पामेला पेला कुगुरुरूप पुत्रोने जोया, केमके सारा गुणो होय तो आचार्य तथा उपाध्यायन पद लइ शके, पण गुण विनाना कुगुरुओने तेवी सारी पदवीओ शोभती नथी, पण हमणा तो एहवी रुढी चाली छे के प्रतिक्रमण क्रियानं ठेकाणुं होय नहि अने संस्कृतभाषामां शब्दनी विभक्ति पण जाणता होय नहिं, जाती पण कुणबी (पटेल) होय के कोली के रबारी होय के मोची होय अथवा अनेक अनाचारो सेवता होय अने बाह्यथी बहु आडंबरी होय अने श्रीतीर्थंकरमहाराजनी आज्ञाना उत्थापक होय तेवा कुगुरुओ पण पोताना रागी वाणियाओने अथवा पैसाथी गुलाम करेला ब्राह्मणोने भेगाकरीने योगोद्वहन कर्या विनाज मिथ्याभिमानीओ पोताने हाथे आचार्यपद लइने बेसे छे ते दुष्टो आचार्यनामधारियोने दीवालीकल्पमां कहेला नरकगामि आचार्योनी संख्यामां पंडितोए लेवा, केमके संघनी समक्षपण आचार्यपद आपनार तो शुद्ध आचार्य होय ते ज योग्य तथा Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 82 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला विशुद्धकुलजातिवालाने ज आपे अने कुगुरुनी पासे आचार्यपदवी कागडाना गलामां मुक्ताफल (मोती) नी मालानी जेम जाणवी, तो पन्न्यासघद अने उपाध्यायपद तथा आचार्यपद ते केवा ? साधुपुरुषोने कोणे आपवां ते संबंधी विशेष विचार जाणवानी इच्छा होय तो आगमवाचनमीमांसावृत्तिथी जाणवू ए प्रमाणे पांच पुत्ररूप कुगुरुओ जाणवा // 20 // धिद्धिक्कारं कारिय सासणगेहाओ कड्ढिया दूरं / भणइ पिया जइ रयप्पाइं गिहिज्जा तो समेयव्वं // 21 // भावार्थः-तेवारपछी अमूल्य एवा श्रीतीर्थकरना वचनरूप रत्नने अल्पमूल्ये वेचीने अमो पण सर्वोत्कृष्ट छीए एम गर्विष्ट थएला पेला कुगुरुरूप पांच पुत्रोने अरे! धिक्कार छ ! धिक्कार छ ! तमने एम कहीने शुद्धगीतार्थरूप पिताए कह्य-अरे कुगुरुरूप पुत्रो ! जो तमारे फरी शासनरूप महारा घरमा प्रवेश करवानी इच्छा होय तो तमोए अल्पमूल्ये वेची दीधेला अमूल्य जिनवचनरूप रत्नो पाछा लइने आवशो तो हं तमोने महारा शासनरूप घरमां पेशवा दइश [ चतुर्विधसंघमां पाछा लइश ] ते शिवाय तो पेशवा नहि आपुं एज // 21 // Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 आवश्यकचूर्णौ रत्नदृष्टांत: : : 83 उस्सुत्तवयणमिच्छा-उक्कडमालप्पमाणमुज्झत्ता / समायारीगेहं पांवंति ण कुसोलयाइया // 22 // भावार्थ:-ए प्रमाणे गीतार्थरूप पिताए तिरस्कार करीने शासनरूप घरमांथी बहार काढी मूक्या, एटले ते पोतानी इच्छाना उत्कटपणाथी बोलायेला उत्सूत्रवचननो त्याग कर्या विना अने कदाग्रहथी थोडी कीमते वेचो दीधेल अमूल्य जिनवचनरूप रत्नोने मेलव्या विना पेला कुशीलिया प्रमुख कुगुरु रूप कुपुत्रो फरीने समाचारीरूप घरने पामता नथी / 22 / पासत्थाइसरूवं इत्थ य कहियं ण वित्थरभयाओ। आवस्सयणिज्जुत्तीओ णेयं सुगुरुमुहाओ समं // 23 // भावार्थः-अहिं विस्तारना भयथी पासत्थादिनुं स्वरूप कहेवामां आव्युं नथी, जिज्ञासुओए आवश्यकनियुक्ति तेमज सद्गुरुमुखथी जाणी लेवें // 23 // जह तेसि पुत्ताणं हिच्चामाणं खु आणसालाए / दुटुं च समागमणं तह मणुयत्तं पुणो भट्ठ // 24 // भावार्थ:-जेम गएला रत्नोने लइने ते पुत्रोनुं पुनः पोताना घरे आवq दुर्लभ छे तेम गएल मनुष्यजन्मने फरी मेलववो अत्यंत दुर्लभ छे / / 24 / / Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 84 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला इय पंचमविट्ठतो रयणगणामा मए विणिट्टिो / गरभवलद्धट्ठाए लिहिओ पवयणसमुद्दामों // 25 // .. सिरिविजयप्पहसूरि-रज्जे सिरिविणयविमलकविराया। सिरिधीरविमलपंडिय-सीसेण गयाइविमलेण // 26 // ___ भावार्थ:-श्रीविजयप्रभसूरिना राज्यमां श्रीविनयविमलगणि कविराज ने तेओना शिष्य श्रीधीरविमल पंडित थया तेओना शिष्य में (नयविमले) मनुष्यभवनी दुर्लभता उपर शास्त्रसमुद्रथो लइ रत्नोनुं पांचमुं दृष्टान्त उपर प्रमाणे योजेल छ / / 25-26 // // इति श्रीमत्तपागणगगनांगणदिनमणिभट्टारकश्रीमदानन्दविमलसूरीश्वरसुशिष्यपण्डितहर्षविमलगणिशिष्यपण्डितजयविमलगणिविनेयपण्डितकीतिविमलमणिशिष्यपण्डितविनयविमलगगिशिष्यपण्डितधीरविमलगणिसुगुरुपादारविन्दचञ्चरीकायमाणपण्डितनविमलमणिरचितायां नरभव दृष्टांतोपनयमालायां रत्नराशिनामा द्वितीयपञ्चमो दृष्टान्तः सम्पूर्णः // 5 // 卐 . . Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // 6 // अथ स्वप्ननामा षष्ठो दृष्टान्तः / / अत्थि अवंतीविसए अलयापुरि निज्जिया सया जीए / अइनिम्मलविहववसा पवरपुरी णाम उज्जेणी // 1 // भावार्थ:-अवंतीदेशमा प्रधान उज्जेणी नामे जगरी छे, जेणीए. अतिनिर्मल (न्यायोपार्जित) संपत्तिना बलथी हमेशांने माटे अलकापुरी (कुबेरनी नगरी) ने जीतेल छे / / 1 / / उग्गपरक्कमणिज्जिय-सयलदिसिमंडलो कलानिलओ / नामेणं जियशत्तू णरणाहो तं च पालेइ // 2 // ___ भावार्थ:-उग्रपराक्रमथी सघली दिशाओने जीतनारो कलानिधान जितशत्रुराजा ते नगरीनु रक्षण करतो हतो / / 2 / / तत्थथि सत्थवाहो समग्गदेसेसु पत्तविवहारो / अयलो अयलुव्व थिरो चाई भोई महाभागो // 3 // भावार्थ:-ते नगरीमा समग्र देशमां व्यापार करनार, दानी, भोगी, महाभाग्यवालो अचल (पर्वत) ना जेवो स्थिर अवलनामे सार्थवाह हतो / / 3 / / तत्यवि य देवदत्ता लायण्णमहोयही कमलणयणा / गणियाऽगणियड्ढलोय-मियवाउरा णिवसइ धणड्ढा // 4 // - भावार्थ:-ते नगरीमा वली कमलजेवा नेत्रवाली, लावण्यनी समुद्र, अगणित धनाढ्यलोकरूप हरिणोने Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 86 : ': नरभवदिटुंतोवनयमाला फसाववामां पाशवागुरा (जाल) जेवी धनसंपन्न देवदत्ता नामे गणिका वसती हती // 4 // रायण्णकुलुप्पण्णो संपुण्णो रायलक्खणसहि / तत्थस्थि मूलदेवो धुत्तो पत्ता परं कित्ति // 5 // - भावार्थ:-ते ज नगरीमा राजन्यकुलोत्पन्न सेंकडो राज्यलक्षणोथी सहित विशेष ख्याति पामेलो मूलदेव नामे धूतारो हतो // 5 // धुत्ताणं तेणाणं वसणाणं कोउगाण कुसलाणं / विउसाण धम्मियाण य जो मूलसलाहणं लहइ // 6 // भावार्थ:-जे मूलदेव धूताराओमां, चोरोमां, कुटेवोमां, कुतूहलोमां, निपुणलोकोमां, विद्वानोमां अने धार्मिकोमा सर्वत्र प्रशंसा पामतो हतो // 6 // कंदप्पदष्पपणयं धिसयसुहं तस्स सेवमाणस्स / गणियाए देवदत्ताए सद्धि देवस्स जंति दिणा // 7 // भावार्थ:-कंदर्प ( काम )ना विकारथी प्रेममय विषयसुखने देवदत्तागणिकानी. साथे भोगवता ते मूलदेवना दिवसो व्यतीत थवा लाग्या // 7 // अहण्णया महूसव-समए उज्जाणकोलणनिमित्तं / अयलेण देवदत्ता दिट्ठा सह मूलदेवेण // 8 // .... . भावार्थ:-हवे कोइएक वखते वसंतमहोत्सवने Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6 स्वप्न दृष्टान्त: : 87 प्रसंगे क्रीडानिमित्ते गणिकानी साथे मूलदेवने बागमा फरता अचल नामना सार्थवाहे जोयो // 8 // सिबियारूढं पोर्ट तक्खणमुवकंठमागओ तीए / चितेइ सत्यवाहो एसा णो मिलइ दुत्थाणं // 9 // भावार्थ:-पालखी उपर बेसीने साहसपूर्वक ते सार्थवाह तत्कालज तेणीनी पासे आव्यो, अने विचार्य के-आ (देवदत्ता) दरिद्रोने मले तेवी नथी // 9 // ता केण उवाएणं मज्झं समीहियकरा भवेज्जेसा / पारद्धो दाणाइ-उवयारोणेगहा तोए // 10 // भावार्थ:-तेटलामाटे कोइपण उपायवडे करीने ते देवदत्तागणिका मारा मनोरथने सिद्ध करे तेम थर्बु जोइए, एम विचारी अनेकप्रकारे दान विगेरेथी तेणीनो उपचार करवो शरु कर्यो // 1 // उवयारमत्तलुब्भा गणियाओ जेण तेण सो तीए / आणीओ बहुमाणस्स गोयरं दावियसिणेहो // 11 // भावार्थ:-उपचारमात्रथी वेश्याओ बश थाय छे तेथी आ गणिकाए पण ते सार्थवाहना स्नेहनुं बहुमान कर्यु // 11 // वरचित्तभित्तिकलिए निम्मलमणिभूसिए सउल्लोचे / पज्जेलियरयणदीवष-पहागलच्छियतिमिरपूरे // 12 // कयउन्भडसिंगारो पउससममि वासभवणे से। पत्तो पडिवण्णो अस गाइराण से तीए // 13 // Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 88 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला भावार्थ:-श्रेष्ठ एवा विविध जातना चित्रोवाली भीतोथी युक्त, निर्मलमणिओथी सुशोभित अने उलेचसहित चमकतां रत्नोनां दीपकनी प्रभाथी नाश पामेल अंधकारवाला वासभुवनमा उद्भटशृंगार (नहीं छाजता एवा वेष)ने सजीने अचलसार्थवाह सायंकाल वखते देवदत्ताने त्यां आव्यो, देवदत्ताए पण भोजनादिकथी तेनो सारो सत्कार कर्यो, // 12-13 / / एवं तेन समं सा गमेइ कालं विसालभोगपरा / परमच्चंतसिणेहा णिचं चिय मूलदेवमि // 14 // भावार्थ:-आ प्रमाणे विशालभोगोमां तत्पर ते गणिका जो के तेनी साथे काल व्यतीत करे छे तोपण मूलदेवमां अत्यंत स्नेह धरावती हमेशां रहे छे // 14 // अक्का पभणइ एसो न पवेसइ तं नियंमि गेहमि / / खिज्जेइ किंचि चित्ते नाउं जणणी य तभावं // 15 // भावार्थः-कूटिनीए कह्य-ए मूलदेवने पोत ना एटले आपना घरे पेसवा न देवो, आवी रीतना माताना भावने जाणी ते देवदत्ता चित्तमां अत्यंत खेद करवा लागी // 15 // भणिया पुत्ति पवेमसु जो रच्चइ तुज्म झूरसि किं चित्ते / समए पवेसिओ सेो भणियं अक्काए तो एवं / / 16 / / Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6 स्वप्न दृष्टांत : भावार्थ:-कूटिनीए आ वात जाणीने का केहे पुत्री! जे रुचतो होय तेने प्रवेश कराव, चित्तमां खेद शामाटे करे छ, प्रसंग आव्ये देवदत्ताऐ मूलदेवनेज आववा दीधो परंतु धनलुब्धा कूटिनीने फरी आ वात न रुचवाथी इनकार (आनाकानी) करवा लागी // 16 // पभणेइ देवदत्ता नाहं लुद्धा धणेण किंतु गुणे / सम्वोवि गुणसमूहो निवसइ इह मूलदेवंमि / / 17 / / ___ भावार्थ:-देवदत्ताए कह्य-हुं धननी लालचुं नथी पण गुणनी लालचुं. छ. सघला गुणो मूलदेवमां छ // 17 // भणिया सा अक्काए अणेगगुणगणसमण्णिओ अयलो / एमा जइ तुह इट्ठो सा भणइ किज्ज तो परिच्छा / / 18 / / भावार्थ -अका (माता) ए कह्य-हे पुत्रि ! जो तने इष्ट होय तो अनेकगुणोना समूहे करीने सहित एवो अचलसार्थवाह छे, पुत्रीए कह्य ठीक, परंतु तेनी परीक्षा करो ? तो अयलस्स समीवे दासी संपेसिया जहा भणसु / तुह वल्लहाए जायं उच्छुण य भक्खणे चोज्जं / / 19 / / भावार्थ:-त्यारबाद अचलसार्थवाह पासे दासीने Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 90 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला मोकली कहेवराव्यु के तारी वल्लभा देवदत्ताने 'इक्षु (शेलडी) भक्षण करवानी आकांक्षा (इच्छा) थइ छे / / 19 / / तप्पत्थणाए साहग्गियाणमग्गेसरं मुणंतो सो। . अप्पाणमणेगाइं संपेसइ उच्छुसगडाइ / / 20 / / भावार्थ:-तेनी (देवदत्तानी) प्रार्थनाथी पुण्यशालीओमां पोताने अग्रेसर मानता एवा अचलसार्थवाहे अनेक इक्षु (शेलडो)ना गाडा तेणीने त्यां मोकलावी आप्या // 20 // .. अणणीए सा भणिया अयलस्सोदारयं तुमं पेच्छ / इक्कवयणेण जेणं महव्वओ एरिसा विहिओ / / 21 / / भावार्थ:-माताए कह्य-हे पुत्रि ! तु अचलनी उदारता जो. जेणे एकवचनमात्रथी आवो मोटो खर्च करी दीधो छ // 21 // सविसायं सा भासइ किमहं करिणी जमेव उवणेइ / असमारइयाओ इमा समूलदालाओ लट्ठिओ / / 22 / / भावार्थः-ते देवदत्तागणिका खेदसाथे कहेवा लागी के-शुं हुं हाथिणी छु के ? जे आ प्रमाणे समार्या बिना थडने पांदडावाली शेलडी मोकलावी छे तेने हुं शुं करुं? // 22 // Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6 स्वप्न दृष्टांत : : 91 तो भणसु मलदेवं किं काही सोवि ताव पेच्छाओ। पिहिया चेडी जाणा विओ य सो जूयखेलमि / / 23 / / भावार्थ:-तेटलामाटे मूलदेवने पण आ बाबतनी सूचना आप के ते शु करे छे ते पण आपणे जोइये, एम माताने कह्या बाद तेणीनी माताए जूवटाना खेलमां वर्तता मूलदेवने दासी मारफत कांइक शेलडी मोकलाववानी सूचना आपी // 23 // तत्तो तेण कवाडे घेत्तूणं दसद्गेण तम्ममं / गहिया दोलट्ठीओ दुगेण दो अहिणसरावे / / 24 / / सेसेण चाउज्जायं तिक्खेण छुरेण ताओ घडियाओ / तह गंडलीकयाओ सूलासपोइयाओ य / / 25 / / चाउज्जाएणं वासिऊण ठविओं सरावदुगमज्झे / घेडीकरप्पियाओ काउं संपेसिया तीसे // 26 / / भावार्थ:-त्यारबाद ते मलदेवे तीस (20) कोडीओ लेइने तेमाथी केटलीक काडीओना बे सांठा अने बे कोडीओना बे सारा रामपात्रो खरीयां, बाकीनी काडीीथी 'चातुर्जातक खरीधुं अने तिक्ष्णछरीथी शेलडी छोलीने कटका कर्यां अने हाथ न बगडे तेटला माटे ते दरेक कटकाने सूलीओमां परोव्या अने चातुर्जातकथी संस्कृत करी खरीदेल ___ 1 तज, लवींग, इलायची ने मरीनुं चूर्ण. 2 संस्कार. Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 92 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला ये रामपात्रमा मूकी लेवा आवनार दासीने सोंपी ते देवदत्ता गणिकाने मोकलावी आप्या / 24-25-26 / जणणीए दंसियाओ पेच्छसु विण्हाण अंतरं दोण्हं / .. अकिलेसेणं भक्खण-जुग्गाओ पेसिया जेण / / 27 / / ___भावार्थ:-ते गणिकाए माताने बतावी का के-बन्नेना विज्ञान- अंतर तपास. जे मूलदेवे परिश्रम विना खावालायक शेलडी मोकलावी छे // 27 / / अयलेण पुण महतो अत्थव्वओ कारिओ न उण मज्झ / एक्कावि उच्छुलट्ठी जुहोव जुरज इ तहा विहिया // 28 // भावार्थ:-जो के अचले पैसानों मोटो खर्च को छे छतां एक पण शेलडीनो सांठो मारा उपयोगमां आवी शके तेवं नथी कयं // 28 // एगंतेणेव गुणं एसा पेच्छेइ मूलदेवस्स / इय सविसाया जणणी चितेउं एवमारद्धा // 29 // . भावार्थ:-आवी रीतना एकान्तवडे करीने चतुराइना गुणने लीधे आ देवदत्ता फक्त निर्धन मूलदेवनेज देखे छे, आ प्रमाणे खेद साथे तेनी मा विचारमां पडी // 29 // को नाम सो उवाओ जेणेसो निग्गहं लहिज्जाहि / अयलाओ जेण न पुणो पविसेज्जा मज्झ गेहंमि / / 30 / / Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6 स्वप्न दृष्टांतः : . भावार्थः-तेणीए विचार्यु के एवो कयो उपाय छे जेवडे मूलदेव अचलथी तिरस्कार पामे ने फरी मारा घेर आववा न पामे / / 30 / / अह अण्णवासरे अयलसत्थवाहो भणाविओ तीसे / छउम्मेण गामगमणं करेच्छु एज्जाहि संझाए // 31 // भावार्थः-त्यारबाद एक वखते ते कूटनीए अचलसार्थवाहने कहेवराव्यु के आज सांजे गाम जवाना बहानाथी गमे त्यां छुपाइ जजे अने पछी छानोमानो घेर आवजे // 31 // तेण तह च्चियविहिए गमणे तुट्टाए देवदत्ताए। गेहमि मूलदेवो पवेसिओ जाव अभिरमइ / / 32 / / भावार्थः-अचले पण तेणीना कहेवा मुजब कयु, आ वात जाणी संतुष्ट थयेल देवदत्ता घरमा मूलदेवने लावी तेना साथे विलास करवा लागी // 32 // विज्जझडप्पोव्व तओ आवडिओ मत्ति अयलसत्थवाहो / गिहमज्झे य अइगओ इयरो सिज्जा तले लोणो / / 33 / / भावार्थः-तेटलामा विजलीना चमकारानी पेठे अकस्मात्रज अचल आवी पहोंच्यो अने तेना भयथी बीजो जे मूलदेव ते खाटला नीचे संताइ बेठो / 33 / नाओ य तेण भणिया गणिया हायव मज्म इत्थेव / सेज्जा एसा भणइ निरत्थयं कि विणासेसि ? // 34 // Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 94 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला भावार्थः-अचलसार्थवाहे गणिकाने का केमारे आ ठेकाणेज स्नान कर छे, तेना उत्तरमा गणिकाए कह्य के-शय्यामां स्नान करी नकामो शय्यानो बगाड शामाटे करो छो? // 34 // मझं चेव विणस्सइ न उणो तुह किंचि किवि सुरेसि / पारदो ण्हाणविही अभंगुब्वट्टणाइओ // 35 / / . भावार्थ:-अचले प्रत्युत्तरमां जणाव्युं के तने खेद करवानुं कशं पण कारण नथी, जे बगडे ते मारुंज छे, त्यारबाद अभ्यंग विगेरे स्नानविधि प्रारंभ्यो / 35 / कलसपलोट्टणसमये पारद्धो चितिउं तओ इयरो। ही! ही ! वसणाण वसो वसणाई जउभवंतेवं / / 36 // . भावार्थः-अने पापोनो लोटो डोलवानो वखत आव्यो के मूलदेवने विचार थयो के धिक्कार छ ! व्यसनी मनुष्योने! जेओ बुरी आदतोने ताबे थई तरेह तरेहना दुःखो भोगवे छे / / 36 / / विडउव्व सलिलभिण्णो निग्गच्छइ जाव ताव अयलेण / अयलग्गकरेण सिरे गिहियकेसेसु भणिओ सा // 37 / / भावार्थः-वृक्षनी पेठे पाणीथी भीनो थयों के तुरत ज गभराइ पलंग नीचेथी मूलदेव बहार नीकली आव्यो, परंतु सार्थवाहे मजबुत हाथथी केशो पकडी तेने का के Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6 स्वप्न दृष्टांत: : किं ते करेमि इण्हि ? जं रुच्चइ त करेसु सो भणइ / नियदुच्चरियवसाओ जमहं तुह गोयरे जाओ // 38 // भावार्थ:-हे मूलदेव ! बोल हुँ तने शुं करुं ? मूलदेवे कह्य-सार्थवाह ! इच्छानुसार कर. हुं पोताना दुश्चरित्रथी तारी दृष्टिए पड्यो छु // 38 / / वयणपउति सो तस्स सोउमक्खित्तमाणसो भणइ / हा देव ! परिणई सुयणाण वि जमावयाइती // 39 // भावार्थ:-आ प्रकारना / मूलदेवना वचनो सांभली अचले शांतहृदयथी विचार्यु के भाग्यपरिणति केवी छे ! जेना. वशथी सज्जनो पण आवी आफतमां पडे छे // 39 // नासियनीसेसतमो जगचडार्माणपयं पवष्णो य / पावइ सूरोवि वसणं गयकण्णल्लोलाइ कालवसा // 40 // भावार्थ:-समस्त अंधकारनो तिरस्कार करी जगच्चूडामणि पद मेलवनार सूर्य पण राहुथी हाथीना काननी माफक चंचलगतिनी प्रेरणाथी व्यसन (कष्ट) पामे छे // 40 // मज्झं करेज्ज कइयावि साहेज्जं भद्द वसणपडियस्स / सक्कारिऊण मुक्को अयलेणं मूलदेवोत्ति // 41 // भावार्थ:-आम विचारी मूलदेवने कह्य के Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : नरभवट्टितोवनयमाला कोइ वखते म्हारे माथे ज्यारे संकट आवे त्यारे तु सहायता करजे एम कहो अने सत्कार करी तेने (मूलदेवने) छोडी मूक्यो / / 41 / / अप्पत्तपुवनिग्गह-कलंकलज्जो विलक्खभावेण / विण्णयडपुरसम्मुह-मारद्धो एस अह गंतुं // 42 // भावार्थ:-परंतु पहेलवहेलांज आवं बीजाथी निग्रहरूप कलंक लागवाथी शरमाइ ते मूलदेवे बेनातटनगर तरफ जवानी शरुआत करी / / 2 / / पतो महाडवीए संबलरहिओवि कायबलजुत्तो। . किचिवि वयणसहायं पहियमवलोयए जाव // 43 / / भावार्थ:-भाता विना पण शरीरबलने लीधे चालता चालता मोटा जंगलमां आवी पहोंच्यो अने रस्तामां वचननी एटले वार्तालाप करवानी सहायभूत एक मुसाफरने निहालवा [जोवा] लाग्यो // 43 / / एगो भट्टो मग्गे ससंबलो जाइसद्धडो नाम / उयरंभरि महकिविणो तावया तेण सो दिट्ठो // 44 / / ___ भावार्थ:-तेटलामां एक उदरंभरी महाकृपण भातावालो सद्धड नामनो भट्ट जतो मूलदेवनी दृष्टिए पडयो // 44 // एयस्स संबलवलेण जामि इण्हि न वंचणं काही / मज्झमिमो ते चलिया परोप्परं विहियसंभासा // 45 // Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6 स्वप्न दृष्टांत: : - भावार्थ:-आना ( सद्धडनामे भट्टना ) भालानी सहायतावडे करी हमणा तो हुँ जइश, पण ते (सद्धड) मने रस्तामां नहि उगे? एम विचारी अरस्परस बन्ने जण वातचित करी. पछी मूलदेव तेनी साथे चाल्यो / / 45 / / पत्ते दिणपहरतिगे निग्गामपहाए तोए अडवीए / कत्थ वि सजल'पएसे विस्सामं, काउमारद्धो // 46 // भावार्थ:-दिवसना त्रीजा प्रहरमां कोइ गामनी मार्ग विनानी भयंकर अटवीमां पहोंचतां अने त्यांज कोइ भागमां जलवालो प्रदेश दृष्टिए पडवाथी विसामो लेवानो प्रारंभ कर्यो // 46 // नीहारिऊण तइयाए सत्थुआ तेण पत्तपुडयाए। आलोडिय सलिलेग भत्ता एगामिणा चेव / / 47 // भावार्थ:-ते वखते पेला भट्टे पांदडाना पडीयामा साथुवाने पाणी साथे. घोली एकले ज भोजन करी लीधुं // 47 // भासामेत्तर्णपिय इयरो न निमंतिओ समोवेधि। चट्टतो निठुरमाणसेण ही किविणचरियाई ! // 48 // . 2 भावार्थ:-समीपमाज वर्तता मूलदेवने ते भट्टे भाषामात्रथी पण निमन्त्रण न आप्यु. तो कृपण 1 पवेसे इत्यपि Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 98 : : नरभवदिळूतोवनयमाला माणसोना चरित्रो खरेखर धिक्कारने पात्र होय छे ? // 48 // विस्सरियमिणं नणं एयरस निमंतणं न तेण कयं / कल्ले दाही इइ चितिऊण तेणेव सह चलिओ / / 49 / / __भावार्थ:-निमंत्रण आपq भूली गयो हशे, आज नहि तो काले जरूर निमंत्रण एटले बोलावीने भोजन मने आपशे, एम विचारी मूलदेव ते कृपण ब्राह्मणनी साथे चाल्यो // 49 / एवं बीएवि दिणे न तेण संभाविओ मणागपि / तो पत्ते तइयदिणे तं अडवीमइच्छया दोवि // 50 // भावार्थः-बीजे दिवसे पण ते, ब्राह्मणे मूलदेवने थोडं भोजन आपीने थोडो पण सत्कार न कर्यो अने त्रीजे दिवसे ब्राह्मण तथा मूलदेव बन्ने अटवी उल्लंघी गया // 50 // पत्तो गामसमीवे आसासंपायणेण मम एसो। . सुट्टेवयारकारित्ति चितिरं मूलदेवेण // 51 // भावार्थ:-अने गामनी नजीकमां आवी पहोंच्या, आशा आपी महा अटवीमांथी पार उतारनार आ ब्राह्मण म्हारो महान् उपकारक छे ए प्रमाणे मूलदेवे विचार्यु // 51 // 1 चितिउं इत्यपि Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6 स्वप्न दृष्टांत : : 99 भणिओ भट्ट ! पयट्रसु नियकज्जे संभलाहि मं जइया / संपत्तरज्जमेज्जसु तइया जं दिम्मि ते गामं // 52 / / भावार्थ:-अने ते ब्राह्मणने का के-जा पोताना काममा प्रवृत्ति कर परंतु ज्यारे मने राज्य पामेल सांभले त्यारे तुं आवजे हुँ तने गाम आपीश / 52 // दिण पहरदुगे गामं समागओ तत्थ भिक्खणट्टाए / करकलिअपत्तपुडओ अकलिट्ठमणो पविट्ठो सो // 53 / / भावार्थः-एम कही खरे बपोरे ते गाममां आव्यो अने हाथमां पांदडानो पडीयो लइ प्रसन्नचित्ते भिक्षा अर्थे नीकली गयो / / 53 / / कुम्मासेहि चिय केवलेहिं पूरओ पुडओ / चलिओ तलागतीरे अच्चतमणुस्सुओ सणियं // 54 // एत्यंतरं मासो-धवासतववसविसोसियसरीरो / उज्जाणाइइंतो गामाभिमुहो मुणी एगो // 55 / / पारणगकए दिट्ठो अणेण पप्फुल्ललोयणमणेण / तो चितिडं पयट्टो अस्थि मे पुण्णपरिवाडी // 56 // चिंतामणीव लद्धो कइयावि मए य कप्परुक्खोवि / भोयणसमए एसो न लब्भइ भागहीणेहिं / / 57 // भावार्थ:-केवल अडदनाज बाकुला भिक्षामां मल्या, तेने लइ नगरनी बहार तलावना तीर (कांठा) उपर जवा माटे धीरे चालवा लाग्यो, एटलामां तेणे Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 100 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला उद्यानमाथी गाम तरफ पारणामाटें आवता एक मासोपवासथीं शरीर जेनुं कृश थयु छे एवा महामुनिराजने जोया अने प्रसन्नचित्त तेमज प्रफुल्लित नेत्रदर्शनथी विचार्यु के-अहो ! मारी पुण्यश्रोणी केवी छे !! कारण के चिंतामणिरत्नसमान मासोपवासी महामुनिराज मने अकस्मात ज मल्या, खरेखर भोजनसमये निर्भागी (भाग्यहीन) मनुष्योने आवो कल्पवृक्ष मली शकतोज नथी / / 54-55-56-57 // इह जुग्गं जमि खणे संपज्जइ दाउमइमहंग्धं तं / ता कुम्मासच्चिय मज्झ संपयं उत्तम दाणं // 58 // भावार्थ:-जे वस्तु जे वखते देकाने योग्य होय छे तेज वस्तु बहु किमती होय छे कारणके मारी पासे बीजी वस्तु तो छे नहि तेटला माटे गाममांथी भिक्षामां आवेला आ अडदना बाकुलामांथी अत्यारे कांइक देवं ते वधारे उत्तम छे / / 58 // . अइयहलपुलयकलिओ हरिसंसुपउल्ललोयणजुगिल्लो / पभणइ भगवं गिण्हसु मम करुणं काउ कुम्मासे / / 59 // . भावार्थ:-एम विचारी आखा शरीरना रोमांच (रंवाडा) जेनां प्रफुल्लित थइगया छे एवा, अने हर्षना अथवडे करीने भीजायेल नेत्रवालो थइ मूलदेव कहेवा लाग्यो के-त्रण जगत्ना जन्तुना उद्धारक हे भगवन् ! Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6 स्वप्न दृष्टान्तः : : 101 माराउपर महेरबानी करी आ अडदना बाकुला स्वीकारो (ग्रहण करो) 59 / / मुणिणावि दव्ववेत्ता-इएहि परियाणिऊण संतुद्धि / पज्जते ते पत्ते गहिया महयाभिमाणेण / / 60 // भावार्थ:-मुनिए पण द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावनो विचार करी तेने (मूलदेवने) संतुष्ट जाणी मोटा प्रमोद (हर्ष) थी पात्रमा ते अडदना बाकुलाने लीधा // 60 / / धण्णाणं अम्हाणं कुम्मासा होति पाराणए जत्थ / इय भणइ मूलदेवो जा परितुट्ठो तओ गयणे // 61 / / देवेहि वयणमुत्तं मग्ग वरं पभपिओ वरेइ तओ। गणियं च देवदत्तं दंतिसहस्साहियं रज्जं // 62 // भावार्थ:-अमारा आत्माने धन्य छे ! के जेओना अडदना बाकुला पण पारणाना उपयोगमां आव्या, आ प्रमाणे मलदेव बोलेज छे तेटलामां आकाशमांथी देवोए का के-जे तने इष्ट होय ते मागी ले, अमो तारा उपर अत्यंत प्रसन्न छोए, अवसर जोइ मूलदेवे पण देवदत्तागणिका अने हजारो हाथी उपरांत राज्यनी मागणी करी // 61-62 // कुम्मासेहिं सेसेहिं भोयणं तेण विहियं च / अमयमयभोयणेणेव तत्ति संपाविओ बाढं // 63 / / Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 102 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला भावार्थ:-त्यारबाद बाकी रहेला अडदना बाकु. लाओवडे तेणे भोजन कयं, अने अमृतमय भोजननी पेठे, तेथी ( बाकी रहेल बाकुलाथी ) अपूर्वतृप्ति संपादन करी // 6 // वेण्णायडतनयरं पओसकालंमि पाविओ तत्थ / पंथिसहाए सुत्तो पभायंसमयंमि पेच्छेइ / / 64 // पडिपुण्णसोममंडल-मइधवलपहापासियदिसोहं / एज्जंतमुयरदेसे पेच्छेइ अण्णो वि तं तत्थ // 65 // भावार्थ:-त्यारबाद सांजने वखते बेनातटनगरमां आवी पहोंच्यो अने मुसाफरखानामां सुइ गयो, प्रभात वखते एटले पाछली रातो अतिप्रभाथी समस्तदिशाओने उज्वल करनार अने परिपूर्णमंडलवाला चंद्रने उदरमां [पेटमां] प्रवेश करता स्वप्नमां जोयो तेज वखते बीजा एक मुसाफरे पण स्वप्नमां तेवूज जोडे // 64-65 // पडिबुद्धा ते जुगवं हट्टा सुविणेण तंमि तओ कालं / अइमंदभागधेओ कप्पडिओ भणइ सुविणमिणं // 66 / / सुविणफलं पहियाणं पुरओ पुच्छेइ ताव एक्केण / घयगुललित्तयमंडय-लाहो तुज्झत्ति वाहरियं // 67 // भावार्थ:-बन्ने आवा उत्तमस्वप्नथी प्रमुदित (हर्षवान्) थइ साथेज जाग्या, परंतु ते बन्नेमांनो Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6 स्वप्न दृष्टांत: : : 103 एक जे बीजो भीखारी हतो तेणे तेज वखते आ स्वप्ननु फल मुसाफरखानामां सुतेला मुसाफरोने पूछयु, तेओमांना एक मुसाफरे ते स्वप्नफल पूछनार रंकने का के-तने घी गोलथी खरडायेल रोटलानो मांडो मलशे // 66-67 / / पत्तो य बीयदिवसे छाइज्ज तमि कमिवि गेहमि / गिहपहुणा निद्दिट्ठो मंडओ तेण संपत्तो // 68 // भावार्थ:-बीजेज दिवसे ते पामर भमतो एक नलाता घरनी अंदर दाखल थयो के ते घरना मालिके तेने भीख बदल रोटलानो मांडो लेवा कह्य ने भीखारीए पण ते मांडाने लइ लोधो // 68 / / अइनिउणबुद्धिणा तेण चितिउं ताव मूलदेवेण / एत्तियफलो न एसो सुविणो अविआणगा एए // 69 / / . भावार्थ:-आ तरफ विशेष विचारवाला मूलदेबे विचार्य के आवा स्वप्ननु फल मात्र आटलुंज न होवू जोइये, आ तमाम फलदर्शको (स्वप्नना फलने कहेनारा) सर्वथा अजाण छे // 69 // अह उग्गयंमि रवि मंडलंमि काउं पभायकिच्चाई / कुमुमभरियंजली सो पत्तो सुविणुण्णु य सयासे / / 7 / / .. भावार्थ:-एम विचारी सूर्योदय थया बाद Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 104 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला प्रातःकालना आवश्यक कृत्यो करी अंजलीमा (हथेलीमां) पुष्पो भरी स्वप्नना फल जाणनार पासे गयो // 7 // परिपूजितच्चरणो काऊण पयाहिणं पणयमउली / . बद्धंजली निवेएइ ससहरपाणं सुविणयंमि / / 71 // भावार्थ:-अने तेना चरणो पूजी, प्रदक्षिणा दइ, मस्तक नमावी, हाथ जोडी, स्वप्नमां करेल चंद्रपाननुं स्वप्न स्वप्नज्ञ (स्वप्नना फलने जाणनार स्वप्नपाठक)ने निवेदन कर्यु // 71 / / तो सुविणपाढगेणं रज्जफलं निच्छि ऊण तं सुविणं / . लावण्णामयपुण्णं कण्णं परिणाविओ पढमं / / 72 / / ___ भावार्थ:-स्वप्नना पाठके पण ते स्वप्न, फल आने (मलदेवने) अवश्य राज्यप्राप्ति थशे तेवो निश्चय थवाथी लावण्य (रूपरंग)थी परिपूर्ण पोतानी कन्याने पहेलाज ते मूलदेव साथे परणावी दीधी / / 72 / / एसो ते रज्जफलो सत्तदिणभंतरे फुडं सुविणो / काउं तहत्ति अंजलि-पुडेण पडिवण्णमेएणं / / 73 / / भावार्थ -अने त्यारबाद कह्य के-तमारं आ स्वप्न खरेखर सात दिवसमां राज्यप्राप्तिनुं सूचक छ, माटे तमने सात दिवसमां राज्य मलशे ते सांभली मूलदेवे पण हाथ जोडी " तथास्तु." शब्दथी स्वप्न Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6 स्वप्न दृष्टांत : : 105 पाठके कहेल फलने स्वीकारी लीधुं / / 73 / / . पत्तो कमेण बेण्णायडंमि परिचितिउं तओ तेण / अच्चंतनिद्धगोहं भमामि कह णयरमज्झमि / / 74 / / . भावार्थ:-अने अनुक्रमे बेनातट नामना शहेरमां आवो विचार्यु के-हं अत्यंत दरिद्र छु, तेथी शहेर वच्चे आवी स्थितिमां केवी रीते भमवा (फरवा) नीकलं / / 74 // तो रयणीए ईसरगिहमि एगमि खणियखत्तो सो / ..." आरक्खिएहिं गहिओ. बद्धो नीओ य करणंमि / / 75 / / ___ भावार्थ:-एम विचारी रात्रिमा एक धनाढ्यना घरमां खातर पाडयु. परंतु पहेरगीरोए तेने पकडी लीधो, अने बेडीना बंधनथी जकडी बांधीने ते चोर (मूलदेव) ने प्रधाननी पासे लाव्या / / 75 / / चोरस्स वहो दंडोत्ति नीइसत्थं सरंतओ अमच्चो / तं बज्झमाणदेइ निज्जइ जा. बज्झभूमीए // 76 // ता चितेइ किमेयं सव्वं पुवुत्तमलीयगं होही / तस्सेव पयडपुण्ण-पभावसओ पुरे तत्तो // 77 / / उग्गाढसूलवियणा-विहुरसरीरो अपुत्तओ मरइ / नरनाहो दिव्वाइं अहिवा सिझंति ते पंच // 78 / / भावार्थ:-मंत्री पासे लावतां मंत्रीए नीतिशास्त्रानुसार 'चोरने मारवानी शिक्षा छे' तेम आज्ञा Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : नरभवदिटुंतोवनयमाला आपी ते मूलवेव पोताने बंधायेल अने वधभूमि तरफ लइ जवातो जोइ विचारवा लाग्यो के-आ अणधायु शु उपस्थित थयु ? शु प्रथमनुं स्वप्नपाठकनुं कथन मिथ्या ज थशे ? आवो विचार करे छे तेटलामां तेना प्रबल पुण्यना परिपाकथी प्रबल शूलना रोगनी वेदनाथी विह्वल थइ पूत्र विनानोज ते नगरीनो राजा मरणने शरण थयो अर्थात् मरी गयो, त्यारबाद राज्यना भोगवटा माटे पंचदिव्यो (छत्र, चामर, हस्ति आदि) करी योग्य मनुष्यनी तजवीज करवी शरु थइ / / 76-77-78 // तंबेरमो तुरंगो छत्तं चामरजुगं च तह कलसो / तो देवयाओ लहुओदीरंति एए सुरज्जस्स // 79 // मग्गिज्जइ नररयण जोग्गं रज्जस्स चच्चराईसु / दिव्वेहि नेहि नयरीए सव्वओ हिंडमाणेहिं / / 80 // __ भावार्थः-हस्ति, घोडो, छत्र, चामरयुग्म अने कलश आ पंचदिव्यसाथे नगरमां चोमेर सरीयान रस्ता उपर भमता भमता लोकोए राज्ययोग्य नररत्न माटे देवताओ पासे याचना (मागणी) करी // 79-80 // दिट्ठो य खरारूढो छित्तछित्तो सरावमालगलो / पिचुमंदपत्तजुत्तो मुंडियसीसो य मसिसरीरो // 81 / / Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6 स्वप्न दृष्टांतः : : 107 सो मूलदेवतेणो सम्मुहमितो तओ गईदेण / वारिया गलगज्जा हएण हेसारवो विहिओ / / 82 // भावार्थ:-तेटलामां गधेडा उपर चडेल, काणावाला छत्रवालो, रामपात्रोनी हारडीने पहेरेल, मस्तकथी मुंडायेल, लीं बडाना पांदडाने धारण करेल अने काजलथी लेपाएल ते मूलदेवने लोकोना टोला वच्चे हस्तिए जोयो अने प्रसन्न थइ गर्जारव कर्यो .तेमज घोडे पण हेषारव शब्द को / / 81-82 // कलसं घेतूण करी अहिििचय नेइ निययखंधमि / ढलियाओ चामराओ छत्तं उवरि टिओ झत्ति / / 3 / / भावार्थ:-हाथीए कलशथी अभिषेक करी ते मूलदेवने पोताना स्कंध उपर चडावी दीधो अने चामरो हलवा लाग्या, तेमज तत्काल छत्र पण उपर धारण थइ गयु / / 83 // पूरियसयलनहंगण-मग्गं बाहे पवाइयं तूरं / अइमुहलो जयसद्दो पउँजिओ बंदिवंदेहिं // 84 / / ____ भावार्थ:-वली समस्त आकाशमंडलने व्याप्त करनार तूर्य (वाजिबनो) नाद थयो, आ तरफ भाटचारणोए मोटो जयजय शब्द करी मूक्यो अने बंदिवानोए गुणगान कर्या // 84 / / Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 108 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला पत्तो रायसहाए मुत्ताए मंडिए चउक्कमि / सिंहासणोवरि गओ पणओ सामंतचक्केण // 85 / / . भावार्थः-त्यारबाद राजसभाने विषे गयो अने मोतीथी पूरेल चोकीउपर बिराजमान सिंहासनउपर आरूढ थयो के तुरत ज समस्तसामंतसमहे पण राजा तरीके स्वीकारी प्रणाम कर्यो / / 85 / / जाओ य महानरवई पयावपरिभूयवेरिनरनाहो / सो रज्जरंजियमणो माणइ माणं जहिच्छाए // 86 // भावार्थः-मलदेवे राज्यत्व ( राज्यपणुं ) प्राप्त करी अनुक्रमे सकलदुर्जयशत्रुराजाओने दमी निष्कंटक राज्य भोगववाना सुखने इच्छा' मुजब भोगववा लाग्यो // 86 // जाओ जणे पवाओ जह इमिणा चंदमंडलं सुविणे / पीयं तस्स पसाएण पावियं एरिसं रज्जं // 87 / / भावार्थ:-लोकामां पण एवी जनश्रुति (वार्ता) फेलावी के आ मूलदेवे स्वप्नमां चन्द्रमंडल जोयु हतु, अने तेथीज आवं अपूर्व राज्य तेने प्राप्त थयु छे / / 87 // सुणियं च तेण कप्पडियन रेण कि एरिसं न मे जायं? / नरनाहत्तं विण्णाणदोसाओ जणेण सो भणिओ / / 8 / / Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6 स्वप्न दृष्टांतः : : 109 भावार्थः-आ वात पहेला पोतानी साथेज सरखं स्वप्न जोनार रंकने मालुम ( खबर ) पडी अने ते रंक विचारवा लाग्यो के मने आ मूलदेव जेवं राज्य केम प्राप्त न थयु? केमके में पण तेना जेवू स्वप्न जोयु हतु त्यारे लोकोए जणाव्यु के तेमां फक्त तारी अणसमजपणानोज दोष छ जो तु विज्ञानवान होत तो तने पण आ मूलदेव जेवु फल प्राप्त थात 84 एत्तो जमण्णमेयं सुविणं लब्भामि तं कहिस्सामि / निउणस्स कस्सइ जेण हुज्ज जइ रज्जसंसिद्धी // 89 // * भावार्थ:-आ वात सांभली ते रक मनुष्ये विचार्य के जो तेवु स्वप्न फरीथी मने आने तो कोइ हुंशीयार जाणकारने निवेदन करुं के जेथी मने पण तेवा राज्यनी प्राप्ति अवश्य थाय // 89 // दहितक्कपउरभोयणपरायणो सोवि रोरो जहिच्छाए। मुविणं मग्गंतो सो किलिस्सिओ कालमइबहुयं / / 90 // .. भावार्थ:-आवा विचारथी दहि, छाशथी प्रचुर भोजनमांज तत्पर थइ तेवा स्वप्ननी - आशामां ते रंक घणा कालसुधी दुःख भोगवतोज गयो // 90 // जह तस्स य सुविणस्स प्र लाहो. अइदुल्लहंतहा भट्ठ / मणुयत्तं मणुयाणं अपारसंसारजलहिमि / / 91 // भावार्थः-जम ते रंकने फरी तेवु स्वप्न आव Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 110 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला अत्यंत दुर्लभ छे तेवी रीते आ अपारसंसारमा हारी जवायेल मनुष्यपणुं फरीथी प्राप्त करवु अत्यंत दुर्लभ छे // 91 / / अत्रोपनययोजना यथा हवे दृष्टान्त घटावे छे, जेमविण्णाणकलाकुसलो जीवो संसारी मूलदेदुव्व / जह जुयवसणवसणो तह प्रमायव्वसणदुत्थो // 12 // भावार्थ:-मूलदेवनी पेठ आ संसारमा संसारीजीव विज्ञानकलाकुशल जाणवो, जेम ते मूलदेव अनेक व्यसनोथी घेरायो हतो रोम संसारीजीव पण प्रमादना दोषथी माठी स्थितिमां पडेलो होय छे / / 92 / / जहावंती तह नरगई जह गणिया तह य धम्मसद्धाय / जह अक्का तह अरुई जह अयलो तह अहम्मनिवो / / 93 / / भावार्थ:-जोम अवंतीनगरी हती तेम अहीं नर (मनुष्य) गति जाणवी, देवदत्तागणिकाना ठेकाणे धर्मश्रद्धा अने अक्काना स्थानमां ( ठेकाणे ) अरुचि तेमज अचलना स्थानमां अधर्मराजा जाणवो // 93 // जह अडवी तह भववण-गहणे विप्पो तहा य विवहारो। जह दाण मासाण पुण्णं मग्गाणुसारि तहा / / 94 // भावार्थ:-महा अटवीना स्थानमां गहनसंसार, Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6 स्वप्न दृष्टांत : : 111 ब्राह्मणना स्थानमा व्यवहार अने बाकुलाना दानना स्थानमा मार्गानुसारि गुण जघन्यपुण्य जाणवू / / 94 // जह पहियाणं साला सामायारी तहा वरा सुद्धा / जह सुविणं चंदस्स य पाणं तह सणावत्ति / / 95 // ___ भावार्थः--मुसाफरखानारूप शुद्ध समाचारी, अने स्वप्नने विषे चंद्रमाना पान जेवु दर्शन प्राप्त थयु तेम जाणवू // 95 // जह अण्णे कप्पडिया तह मिच्छादट्टिणो मुणेयव्वा / सुविणफलं वाहरियं मंडयमिव विसयसुहलाहो / / 96 / / भावार्थ:-अने जे मूलदेवनी जोडे चंद्रपानस्वप्न जोनारा रके पेला जे बीजा कापडियाओने पोतानु स्वप्न कहेवाथी तेओए तेने कह्य के तने रोटलानो मांडो मलशे तो रोओ स्वप्न फलना अजाण होवा छतां असंबद्धस्वप्नफल कहेनारा ते कापडियाओ मिथ्यादृष्टिओ जाणवा, मांडा जेवा तुच्छ फलरूप विषयसुखनी प्राप्ति जाणवी // 96 / पुष्फफलपुण्णहत्थो विवेयभत्तीमहग्घसंजुत्तो / सुविणुण्हुव्वय सुविहिय-गुरुपासे फलं च पुच्छेइ / / 97 / / भावार्थ:-पुण्यफल समुदायरूप विवेक भक्ति अने स्वप्नपाठकरूप गुरु जाणवा, तेवा गुरुने संसारी जीव Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 112 : : नरभवट्टितोवनयमाला भक्तिपूर्वक विवेकसाथे प्रश्न करे छे / / 97 / / जह कण्णा तह विरई पाणिग्गहणं कराविया तेण / जह पंचदिव्वकलियं रज्जं पत्तं वरं ज्झत्ति / / 98 / / जह पंचदिव्व पंच य महत्वयालंकियं चरणधम्भ / संविग्गमुणिहिं विहियं तस्स य आयरियपयरज्जं // 99 / / .... भावार्थ:-कन्याना पाणिग्रहण [हस्तमेलाप] रूप विरतिनो स्वीकार अने पंचदिव्यरूप पवित्रपंचमहाव्रतवाला चारित्रधर्मनी प्राप्ति अने राज्यरूप सुविहित मुनिओथी स्वीकारायेल आचार्यपद जाणवू / 98-99 / सुणिऊण तस्स रज्ज अण्णे पासंडिया विचितेइ / जह इमिणा लद्धफलं तहा न अम्हाण लाहोत्ति / / 100 / / - भावार्थ:-ते मूलदेवने मलेला राज्यने सांभलो पेला रंक जेवा अन्यतीथिको विचारे छे के जेम एणे (मूलदेवे) स्वप्नना बलथी आ. अत्युत्तम राज्य मेलव्यु तेम अमे केम प्राप्त करो शकता नथी / 100 / लन्भामि पुणो सुदिणं जइ तो पभणामि बुहजणस्स पुरो / इय चितिऊण निद्धं-धसकिरियाई किलिस्सति / / 101 // / ___भावार्थ:-जो तेवु स्वप्न फरीथी अमने प्राप्त थाय तो स्वप्नना जाणकार एवा पंडितो पासे निवे दन करीये, एवा विचारथी अन्यमतवाला संघलाओ अज्ञानक्रिया करवामां ज अंध थइ - क्लेश पामे छे Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6 स्वप्न दृष्टांत : : 113 उस्सुत्तणिवसया पमायदहितक्कभोयणा तुट्ठा / निअनिअमाणागासे सुवंति ते सुविणलाहट्ठ // 102 / / भावार्थ:-उत्सूत्रनी निद्राने वश थइ प्रमादरूप दहीं ने तक (छाश) थी मिश्रभोजन करी पोताना मानरूप आकाश (खुल्लामेदान) मां स्वप्ननी आशाथी बिचारा अज्ञानीयो सुइ जाय छे / / 102 // उम्मग्गसारिणो ते णो लभिज्जति दसणं सुविणं / विसयसुहगिद्धियाणं दुलहो चारित्तधणलाहो // 103 // भावार्थ:-उन्मार्गने अनुसरता तेओने दर्शनरूप स्वप्ननी प्राप्ति थती नथी केमके विषयसुखनी आसक्तिथी चारित्ररुप धननो लाभ थतो नथी / / 103 / / कहमवि देवबलेण य लाहो सुविणस्स हवइ णेव पुणो / एवं अणोरपारे संसारे सदसणं खु मणुयत्तं / / 104 / / भावार्थ:-कदाचित् कोइ उपाये देवताना बलवडे करीने तेवा स्वप्ननी फरीथी प्राप्ति थवी शक्य छे, परन्तु आ अपार संसारसमुद्रमां सम्यग्दर्शनसहित मनुष्यपणुं प्राप्त थQ तो घणुंज अशक्य छ / / 104 / / इय छट्ठो दिट्ठतो सुमिणयणामा मए विर्णािटो / नरभवलखट्टाए लिहिओ पवयणसमुद्दाओ // 105 / / भावार्थ:-आ प्रमाणे चंद्रस्वप्ननामनो छदा दृष्टांत शास्त्रसमुद्रमांथी उद्धरी में मनुष्यभवनी दुर्लभता Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 114 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला बताववा खातर अहिं देखाडीने योजेल (रचेल) छे // 105 // सिरिविजयप्पहसूरि-रज्जे सिरिविणयविमलकविराया। सिरिधीरविमलपंडिय-सीसेण णयाइविमलेण // 106 // भावार्थ:-श्रीविजयप्रभसूरीश्वरना राज्यमां श्रीविनयविमल कविराज थया, तेमना शिष्य पंडित श्रीधीरविमलगणि थया तेमना शिष्य भयविमले आ रचना करी छ / 106 // . // इति श्रीमत्तपागणगगनाङ्गणदिनमणिभट्टारकश्रीमदानन्दविमलसूरीश्वरसुशिष्यपण्डितहर्षविमलगणिशिष्यपण्डितजयविमलगणिविनेयपण्डितकोत्तिविमलगणिशिष्यपण्डितविनयविमलगणिशिष्यपण्डितधीरविमलगणिसुगुरुपादारविन्दपञ्चरीकायमाणपण्डितनयविमलगणिरचितायां नरभवदृष्टान्तोपनयमालायां चन्द्रपानस्वप्ननामा षष्ठो दृष्टान्त सम्पूर्ण: 卐 Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / / 7 / / अथ राधावेधनामा सप्तमो दृष्टान्तः इंदपुरे इव रम्मे इंदपुरे वरपुरंमि णरणाहो / नामेण इंददतो इंदो इव विबुहमहणिज्जो // 1 // भावार्थ:-इंद्रपुर (अमरापुरी) जेवा अत्यंत रमणीय इन्द्रपुरनामना नगरमा विबुधोने (पंडितोने अथवा देवोने) पूज्य इन्द्रना जेवो प्रतापशाली इंद्रदत्त नामनो राजा राज्य करतो हतो // 1 // सिरिमालीपमुहपुत्ता बावीसमणंगचंगरूवधरा / बावीसाए देवीण मत्तया तस्स य अहेसि // 2 // भावार्थ:-ते इंद्रदत्तने श्रीमाली प्रमुख बावीस पुत्रो कामना जेवा रमणीय शरीरने धारण करनारा हता, अने सुंदर बावीस स्त्रीओ अन्तःपुरमा हती // 2 // एगंमि य पत्यावे अमञ्चधूया रइध्य पच्चरका / विट्ठा तेणं गेहे कोलंति विविहकीलाहिं // 3 // ____ भावार्थः-एक वखते घरमां जुदीजुदी जातना खेलोथी क्रीडा करती, अने रूपमां रती जेवी मंत्रीनी पुत्री ते राजानी दृष्टिए पडी // 3 // तो पुच्छिो परियणो कस्सेसा तेण जंपियं देव ! / मंतिसुया अह रण्णा तदुवरि संजायरागेण // 4 // विविहपयारेहि मग्गिऊण मंति सयं समन्वदा / परिणयणाणंतरमविखित्ता अंतेउरे सा य / / 5 / / Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 116 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला - भावार्थ:-प्रेमने पराधीन थयेला एवा राजाए आ कोनी पुत्री छे ? तेवू सेवकने पूछयु, सेवके का-हे देव ! आ मंत्रीनी पुत्री छे, तेवो उत्तर परिजन तरफथी मलतांज तेणीना उपर विशेष अनुरागवान् थइ राजाए अनेक प्रकारे मंत्री पासे मागणी करी छेवढे तेनी साथे लग्न कर्या बाद तुरतज तेणीने अंतःपुरमा मोकलावी दीधी // 4-5 // अण्णण्णपवररामा-पसंगवासं गओ य नरवइणो। विस्सुमरिया चिरेण य दलृ 'आलोयणठियं तं / / 6 / / नंपियमणेण ससहर-सरिच्छपसरंतकतिपब्भारा / का एसा कमलच्छी लच्छीविव सुंदरा जुवई ? / / 7 / / भावार्थ:-परंतु राजा तो अन्यान्य (बीजी बीजी) प्रवरस्त्रीओना प्रसंगमां लपटाइ गयो अने घणाकाल सूधी मंत्रीपुत्रीने भूलीज गयो, परंतु क्यारेक ते मंत्रीपुत्री अंतःपुरमांज दृष्टिगत थता राजाए नोकरोने पूछयु के चंद्रना निर्मल बिंब जेवी कान्तिने धारण करनार कमलाक्षी ( कमलना जेवी आंखवाली ), लक्ष्मीना जेवी आ सुंदर युतति (स्त्री) कोण छे ? // 6-7 // 1 ओलोयण इत्यपि. Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7 राधावेध दृष्टांत: : : 117 कंचुइणा संलतं सा एसा देव ! मंतियो धूआ। जो परिणीऊण मुक्का तुब्भेहिं पुव्वकालंमि // 8 // भावार्थ:-उत्तरमां कंचुकीए (अंतेउरना रक्षके) जणाव्यु के हे नरेश ! आ मंत्रीनी पुत्रो छे, जेणीने आपे प्रथम परणीने ज अंतःपुरनी अंदरज राखेल छे / / 8 / / एवं भणिया राया तीए समं तं करेइ संभोग / उउण्हार्यात्त तहच्चिय पाउन्भूओ य से गम्भो // 9 / / भावार्थ:-आ प्रकार- कंचुकीन कहे, सांभली ते राजा तेणीनी साथे विलासमां फसी गयो अने अनुक्रमे ते मंत्रीपुत्रीने ऋतुस्नाने गर्भ रह्यो / // 9 // अह उ पुत्वमच्चेण आसि भणिया जहा तुहं पुत्ती / व ज गम्भो जं च नरिंदो समुल्लवइ // 10 // ___ भावार्थ:-प्रथम मंत्रीए पोतानी पुत्रीने का हतु के-हे पुत्रि ! ज्यारे तने गर्भ रहे त्यारे ते वात मने जणाववी केमके हुँ एहवं काम करीश के तने राजा पोते पोतानी मेले बोलावे // 10 // तं साहज्जइ तइया तहत्ति तइए वि सव्ववृत्तंतो / सिट्ठो पिउणो तेणा वि भुज्जखंडंमि लिहिओ सो // 11 // ... भावार्थः-पिताना आ कथनने मान आपी तेणीए Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 118 : : नरभवदिठूतोवनयमाला पण सघलो वृत्तांत पोताना पिताने कहेबरावी जणाव्यो, तेनापिताए पण विश्वास खातर आ सघलो वृत्तांत भोजपत्रमा लखी लीधो // 11 // पच्चयकएणमच्चो, पइदिअहं सारवेइ अपमत्तो। नाओ य तीए पुत्तो, सुरिंददत्तो कयं नाम / / 12 // भावार्थ:-त्यारबाद मंत्री सावधानतापूर्वक ते गर्भनी तजवीज अने संभाल अहर्निश राखवा लाग्यो, कालक्रमे वखत आवता तेणीने पुत्र थयो, जेनुं नाम सुरेंद्रदत्त राखवामां आव्यु // 12 // तमि य दिणे पसूयाणि तत्थ चत्तारि ,चेव रूवाणि / अग्गियओ पव्वयओ बहली तह सायरयनामा // 13 // __ भावार्थ:-ते.ज़ दिवसे बीजा पण चार बालको जन्म्या, जेओनां नाम-अग्निदत्त, पर्वतक, बहली अने सागर एवा नाम राखवामां आव्या // 13 // उवणीओ पढणत्थं लेहायरियस्स सो अमच्चेणं / तेहिं चेडेहि समं कलाकलावं अहिज्जेइ // 14 // भावार्थ:-मंत्रीए सुरेंद्रदत्तने लेखाचार्य पासे भणवा माटे मोकल्यो. जे त्यां पाठशालामा जइ चार उपर कहेला चेटो (दासपुत्रो) साये तरेह तरेहनी कलाओनो अभ्यास करवा लाग्यो / / 14 / / . Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7 राधावेध दृष्टांत : : 119 ते वि सिरिमालीपमुहा रण्णो पुत्ता न किंचि वि पढंति / थेवंपि कलायरियेण ताडिया निययजणणोण / / 15 / / साहिति रोयमाणा एवं एवं च तेण भणियम्हे / अह कुवियाहिं भणिज्जइ ओझाओ रायमहिलाहिं // 16 // हे कवडपंडिय ! सुए अम्हाणं कीस हणइ निलज्जं / पुत्तरयणाई जह तह न होंति एवं पि नो मुणसि / / 17 / / भावार्थ:-श्रीमालीप्रमुख ते राजाना पुत्रो काइ पण अभ्यास करता न हता, तेथी अध्यापके थोडीएक ताडना तर्जना करी तेथी ते राजपुत्रोए पोतपोतानी माताओ पासे आ बाबतनी फरीयाद करी अने का के-हे पूज्यमाता ! आ अध्यापक अमोने ताडना तर्जना आदि करे छे आ वात सांभली अज्ञान माताओए गुस्से थइ अध्यापकने का के-हे कपटपंडित! अमारा .पुत्रोने बेशरम थइ शामाटे हणे छ ? शुतु ए वात नथी जाणतो ? के पुत्ररत्नो ज्यां त्यां मली शकता नथी / / 15-16-17 // पज्जत्तं तुज्झ पाढण-विहीए अच्चतमूल विहलाए / जो न सुए थेबंपि हु ताडतो वहसि अणुऊपं // 18 // भावार्थ:-अत्यंत ढीला मूलवाली आ तारी भणाववानी रीति नकामी छे. कारण के तुं पुत्रोने ताडनातर्जनादि करता थोडी पण अनुकंपा (दया) राखतो नथी / / 18 // Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 120 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला इयताहि फरुसवयहि तज्जिएणं उवेहिया गुरुणा / . मच्चतमहामुक्खा ताहे जाया नरिंदसुया / / 19 / / - भावार्थः-आ प्रमाणे ते राणीओना कठोर वाक्योथी उपाध्याये पण तेणीओना पुत्रो प्रत्ये उपेक्षा करी, अंते तपासतां परिणाम ए आव्युं के तमाम राजाना पुत्रो शिक्षणविनाना होइ अत्यंत महामूर्ख थया // 19 // राया वि वयमित्तं अयाणमाणो मणमि चितेइ / अच्चंतकलाकुसला मम चेव सुया परं एत्थ // 20 // भावार्थ:-परंतु राजां आ हकीकतने जाणतो न होवाथी एम धारतो हतो के आ जगत्मां म्हाराज पुत्रो कलाकुशलने विषे अत्यंत हुंशियार छे // 20 // सो पुण सुरिददत्तो कलाकलावं अहिस्जिओ सयलं / अगणतो विहु समवय-चेडरूवंपि 'पत्थहं // 21 // भावार्थ:-आ तरफ सुरेंद्रदत्त समस्त प्रकारनी कलाकौशल्यताने जाणो अभिज्ञ (विशेष रुचिवालो) थयो, ते एवो तो बुद्धिमान अने चतुर हतो के समान वयना अने साथे अध्ययन करनारा चार दासीपुत्र [अग्निदत्तादि] ने बिलकुल गणंतो नहि // 21 // 1 पच्छ्रह मित्यपि पाठः Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7 राधावेध दृष्टांत: : : 121 अह महुराए नयरीए पव्वयनराहिवो निययधूयं / पुच्छेइ पुत्ति ! तुह वरो जो रोयइ तं पयासेइ / / 22 / / भावार्थ:-एटलामां मथुरा नामनी नगरीमा पर्वत नामना राजाए लग्नने योग्य थयेली पोतानी पुत्रीने पुछयु के-हे पुत्रि! जे वर तने इष्ट होय ते तुं खुशीथी तेने प्रकाशकरी आप // 22 // तीए पयंपियं ताय ! इंददत्तस्स संति या पुत्ता / सुच्चंति कलाकुसला सूरा धीरा सुरूवा य / / 23 / / भावार्थ:-पूत्रीए उत्तरमा कह्य के-हे तात ! इंद्रदत्तनरेशने जे पुत्रो छे, ते सघला कलाकुशल, शूरवीर, धैर्यवान् (हिंमतवाला) अने सर्वोत्कृष्टरूपवाला संभलाय छे / / 23 // तेसि एक्कं सुपरि-क्खिऊण राहावेहाइविहिणाहं / जइ भणसि ताय ! से चिय पाणिग्गहणं करेमि तओ // 24 // भावार्थ:-तेओमांथी एकनी राधावेधनी विधिवडे करीने परीक्षा कर्या पछी जो आपश्री कहेशो तो हुं ते राजकुंवरनुं पाणिग्रहण करीश / / 4 / / पड़िवष्णं नरवइणा ताहे पउराए रायरिद्धीए / सा परिगया पयट्टा गतुं नयरंमि इंदपुरे / / 25 / / भावार्थ:-राजाने आ वात गमवाथी तेणे स्वीकार्यु Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 122 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला अने प्रचुर (अत्यंत) समृद्धि साथे ते राजकुंवरी इंद्रपुर नगर तरफ जवा माटे नीकली पड़ी / / 25 / / तन्वयणं सोऊणं पिऊणा तुट्ठण कण्णगट्टाए / कारविया नियनयरी उन्भवियविचित्तधयनिवहा / / 26 / / ____ भावार्थ:-आ वातनी जाण थवाथी इंद्रदत्तनरेशे खुश थइ राजकन्या . पोतानी मेले माहरा पुत्रोने परणवाने आवे छे तेटला माटे पोतानी नगरीने अनेक प्रकारनी ध्वजापताकाओथी शणगारी सुशोभित करावी / / 26 / / अह आगयाए तीए दवाविओ सोहणो य आवासो / भोयणदाणप्पमुहा विहिया गुरुउचियपडिवत्ती / / 27 / / ___ भावार्थ:-तेटलामां ते राजकुंवरी पण आवी पहोंची, राजाए तेणीने रहेवा माटे एक भव्य अने सारो प्रासाद (महेल) सोंप्यो, अने भोजन विगेरेथी समयने योग्य सत्कार करवामां कृपणता न करी / 27 / विण्णत्तो तीए निव्रो राहं जो विधिहि सुओ तुज्झ / सो च्चियं में परिणेही इइ पइण्णा ममं अत्थि // 28 // भावार्थ:-राजपुत्रीए नरेशने निवेदन कर्यु. केहे राजन् ! तमारा पुत्रोमांथी जे राधावेध करे तेने हुं परणीश, आ प्रमाणे मारी प्रतिज्ञा छे / / 28 / / Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7 राधावेध दृष्टांतः : : 123 रण्णा भणियं भो सुयणे ! इत्थत्थे कि किलिस्सहसि? सुया। एकिक्कपहाणगुणा सव्दे वि सुआ जओ मज्झं // 29 // भावार्थ:-राजाए कह्य के-हे राजकुमारी ! आटलामाटे नकामुं दुःख शामाटे वहन करे छे ? केमके मारा तमाम पुत्रो एकेक गुणे करी श्रेष्ठता धरावनारा विद्यमान छे / / 29 / / उचियपएसे य तओ सबेयरभमिरचक्कातिल्लो / सिररइयपुत्तिगो लहु महं पइट्ठाविओ थंभो // 30 // भावार्थः-त्यारबाद योग्यस्थान उपर चारे तरफ घुमनार चक्रोनी पंक्तिवालो अने अग्रभाग उपर पुतलीवालो एक मोटो स्तंभ (थांभलो) जलदी प्रतिष्ठा (स्थापन) करवामां आव्यो / / 30 / / अक्खाडओ य रइओ बद्धा मंचा कयाइ उल्लोया / हरिसुल्लसंतगत्तो आसीणो तत्थ नरनाहो // 31 / / भावार्थ:-अने एक अखाडो कराव्यो, जेमां बेसवा माटे मांचडाओ बांधवामां आव्या, सारा सारा तोरणो बंधाव्या ते मांचडाना उपर खुशीथो मलकातो इंद्रदत्तराजा बेठो // 31 // - उबविट्ठो नयरिजणो आहूवा रायणा निययपुत्ता / वरमालं घेतणं समागया सावि रायसुया / / 32 / / Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 124 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला भावार्थ:-अने नगरनी अंदर वसनारा मनुष्यो पण बेसी गया, राजाए पोताना तमाम पुत्रोने मंड. पमां बोलाव्या, परणवाने आतुर थयेली राजकुमारी पण वरमालाने लइ त्यां उपस्थित थइ मंडपमा आवी] // 32 // अह सव्वपुत्तजेट्टो सिरिमाली राइणा इमं वुत्तो / हे वच्छ ! मणोवंछियमवज्झमेत्तो कुणंसु मज्झ / / 33 // भावार्थ:-त्यारबाद नरपतिए पोताना वडील (युवराज) पुत्रने का के-हे पुत्र ! तुं पोतानी कलाने बतावी मारा मनोवांछितकार्यने सिद्ध कर // 33 // धवलसु नियकुलपरम-मुइण्णं नेसु रज्जमणवज्जं / गेहाहि जयपडायं सत्तूण य विप्पियं कुणसु // 34 / / भावार्थः-पोताना श्रेष्ठ अने पवित्रकूलने प्रस्तुत कार्य साधी उज्वल कर अने काइपण जातनी खोटखामी विनाना आ श्रेष्ठ राज्यने मेलव, अने जयपताकानो तुं स्वीकार कर ने शत्रुओने दुःखदायक थाय तेम कर // 34 / / एवं रायसिरिपि पच्चक्खं निव्वुइं नरिंदसुयं / प रणेसु कुसलयाए राहावेहं ल काउं // 35 / / Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7 राधावेध दृष्टान्त: : : 125 भावार्थः- ए मुजब ज राज्यलक्ष्मी ने प्रत्यक्ष शान्तिस्वरूप आ राजकुमारीने परणी ले, परंतु तारे फक्त कुशलपणाथी राधावेध करी योग्यता बताववी जोईशे / / 35 / / एवं वुत्ते रण्णा संखोहं पाविओ य वुड्ढसुओ / लज्जायमाणवयणो दीणमणो उढिओ थद्धो // 36 // ___ भावार्थ:-आ प्रमाणे पिताना * वाक्यो सांभली ज्येष्ठपुत्र श्रीमाली क्षोभ पाम्यो, लजितवदने उभो थयो, परंतु निश्चेष्ट [जड जेवो] स्तब्ध थइ गया।३६। कि कत्तव्वयमूढो अपुरिसक्कारथामगुणहीणो / विहलाभिमाणहिट्ठो थरहरियतणुत्ति तह दिट्ठो // 37 // ___ भावार्थ:-किं कर्तव्यता मूढ तेमज पुरुषाकार (पराक्रम ने बल) विनानो अने कंपता शरीरवालो ते ज्येष्ठपुत्र राजानी दृष्टिए पड्यो // 37 // पुणरवि भणिओ रण्णा संखोहं वज्जिऊण हे पुत्त! / कुणसु समीहियमत्थं कित्तियमेत्तं इमं तुब्भ // 38 // भावार्थ:-ते जोइ राजाए कह्य-हे पुत्र ! क्षोभ मूकीने इच्छित अर्थने जलदी सिद्ध कर, आथी तारोज यश थशे, गभरावानी कशी पण जरूर नथी / 38 / संखोहं पुत्त ! कुणंति ते परं कलासु जे न वियड्ढा / तुम्हसरिसाणं स कहं ? अकलंककलागुणनिहाण ! // 39 / / Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 126 : : नरभवदितोवनयमाला भावार्थ:-ते ज पुरुषो क्षोभ पामे छे के जेओ विविधकलाचातुरीने नथी धरावता (जाणता), हे निष्कलंककलागुणनिधानपुत्र ! तारा जेवा निपुणोने तो क्षोभनो संभव केम होइ शके ? // 39 // इय भासिओवि घिडिम-मवलंबिय सो मणागमवियट्टो' / कहमवि गेण्हेइ श्रणुं पकंपिरेण करग्गेणं // 40 // ___ भावार्थ:-आ प्रमाणे वारंवार कहेवाथी ते ज्येष्ठ (मोटा) पुत्रे महामुसीबते थोडीक धीठाइ अवलंबी अने कंपायमान हस्तना अग्रभागथी धनुष्यने धारण कर्यु // 40 // सव्वसरीरायासेण कहमवि आरोहिऊण धणुदंडं / जत्थ य तत्थ य वच्चओ मुक्को सिरिमालिणा बाणो / / 41 / / भावार्थ:-शरीरना सघला बलथी घणी मुश्केली वडे धनुष्य उपर पण चढावी लक्ष्य विनाज अनियतदिशामां तेणे (श्रीमालीए) बाण छोडयुं // 41 // थंभे अन्भट्टित्ता झडित्ति सो भंगमुवगओ य तणु / लोगो कयतुमुलरवो निहुय हसि उ समारद्धो // 42 // भावार्थ:-ते बाण थांभलासाथे अफलाइ जल्दीज भांगी गयुं, सभामां बेठेला प्रेक्षकजनोए पण कुतू 1 मविअड्ढो इत्यपि Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7 रावावेध दृष्टांत : : 127 हलसाथे मोटो कोलाहल करी मुक्यो अने तालीओ पाडी. हसवा लाग्या / / 42 // एवं सेसेहि वि नर-वइस्स पुत्तेहिं कलविउत्तेहि / जह तह मुक्का बाणा न कज्जसिद्धी परं जाया // 43 // भावार्थ:-ए प्रमाणे बाकीना कलाविनाना राजपुत्रोए पणं एकेएके दरेके राधावेध अर्थे बाणो छोड्या, परंतु कार्य सिद्धि काइनाथी करी शकाइ नहि / 43 / लज्जमिलतनयणो वज्जासणिताडिउव्व नरनाहो / विच्छायमणी विमणो सोगं काउं समाढत्ता / / 44 / / भावार्थ:-तेथी शरमाइ आंखो चोलतो राजा वज्रना अग्निथी जाणे ताडित न थयो होय ? तेम फिक्का चहेरानो अने खिन्न हृदयवालो थइ गयो, तेमज अफसोस करवा लाग्यो // 44 // भणिओ य तत्थ चेडी-सुएहि कि ?. सोयमित्थ कज्जेसु ? / अग्गियपव्वयबहुली-सागरणामाण उट्ठत्ता // 45 / / थंभसगासे चउरो आगया जाव ताव करकंपो / एगस्स सरो भग्गो अण्णस्स य चित्तविक्खेवो // 46 // दिसिमूढो तह तइओ जाओ भमदिढिओ अह चउत्थो / भण्णे सव्वेवि निवा हसति तह इंददत्तनिवं // 47 // ___भावार्थः-त्यारबाद दासीपुत्रोए राजाने कह्यहे पृथ्वीपाल ! आवा कार्यमां शोक के विचार श्यो Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 128 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला करवो ! एम कही आग्निक, पर्वत, बाहुली अने सागर नामना चारे दासीपुत्रो उठीने जेटलामा स्तंभ पासे आव्या के तुरत ज एकने हस्तकंप थयो अने बीजार्नु बाण भांगी गयुं अने त्रीजाना चित्तमां विक्षेप थयो अने दिङ्मूढ बनी गयो, अने चोथो भ्रमितदृष्टि थयो, आथी राधावेध जोवाने आवेला बीजा तमाम राजाओ इंद्रदत्तनरेशन. उपहास ( मश्करी ) करवा लाग्या // 45-46-47 / / , तं पासिऊण राया विसायचित्तो विउत्तमूढमई / लज्जाए धरणियलं पविसिज्जमाणो पलोइ अहं // 48 / / भावार्थ:-आवो बनाव जोइ राजा विषण्ण (खेदयुक्त) चित्तवालो थइ अने कर्त्तव्यमूढ थइ जवाथी शरमाइ पृथ्वी तरफ (नीचे) जोवा लाग्यो // 48: / भणिओ य अमच्चेण देव ! विमुंचह विसायमण्णोवि / अत्थि सुओ तुम्हाणं ता तंपि परिक्खण इयाणि / / 49 / / भावार्थः-अत्यंत खेदथी पृथ्वीउपर नीचु जोता राजाने जोइ मंत्रिए कह्य हे देव ! विषाद (खेदने) छोडीदो, हजी बीजो पण एक पुत्र तम्हारो बाकी छे, तेनी परिक्षा करो, हवे वखत नजीक आवी लाग्यो छे // 49 / / Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7 राधावेध दृष्टांत: : : 129 सुणगाणं सीहाणं कज्जे पडिए अ अंतरं लहए / भिदइ गयवरकुंभाइ मुत्ताहलपूरियकरग्गो 1 // 50 // भावार्थ:-श्वान (कुतरा) अने सिंहोनें अंतर कार्य पडे ज जणाय छ, सिंह पोताना पंजावडे गजमुक्ताथी भूषित करता हस्तिओना कुंभस्थलोने विदारे (फाडे) छे // 50 // इयरो भिदइ निययं मयजंबूयाणमट्टिसंघायं / दीवस्स य धूमस्स एगुप्पत्ते वि जह पइच्छो // 51 / / भावार्थ:-बीजा जे कुतराओ होय छे ते तो पोताना के मृग (हरिण) शियालीआओना हाडपिंजरो चुंथे छे, तेमज एकज पात्रमा छतां दीवाने धूमाडानो भेद अति स्पष्ट छे / / 51 / / एगा रयइ पयासं अण्णो लोयाण दिद्विमुद्धइ / तह पिच्छह नरचंदा ! सुयदुस्सुयनाणववहाणं / / 52 / / भावार्थ:-ज्यारे एक दीपक प्रकाशनी खामीने दूर करे छे त्यारे धूमाडो लोकानी आंखोने आंजी दइ मुंझावी दे छे, तेटलामाटे हे राजाओ! तमो सारा पुत्रोनुं अने कुपुत्रोनुं सारा अने नरसा शिक्षणनुं अंतर ध्यानपूर्वक जुओ / / 52 / / रण्णा भणियं को? पुण समप्पियं मंतिणा तओ पत्तं / तं बाईऊग रण्णा पियं पियं होऊ तेणावि // 53 // Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 130 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला भावार्थ:-त्यारबाद राजाए कह्य हे प्रधान ! मारे तेवो हंशीयार पुत्र ते कोण छे? मंत्रीए पोतानो लखेलो पत्र आप्यो के तुरत ज राजाए वांची कह्य के 'अस्तु' तेनाथी पण जो आपणी लाज रहे तो ठीक ! // 53 // अच्चंतपाढिएहि वि इमेहि पावेहिं जं समायरियं / सोवि हु तमायरिस्सइ धीद्धी! एवंविहसुएहिं / / 54 // __भावार्थः-परंतु विशेष अभ्यास कराव्या छतां पण आ पापी पुत्रोए जे कर्यु छे, तेवू ज कदाचित् ते पण करे तो आवा प्रकारना पुत्रो केवल तिरस्कारने ज पात्र छ / // 54 // जइ पुण तुह निबंधो विण्णाणमणुन्भुओ तहा सोवि / तो मंतिणोवणिओ सुरिददत्तो स 'उवज्झाओ // 55 / / ___भावार्थ:-तेम छतां हे मंत्रि! तारो आग्रह होय अने तेनु कलाकौशल्य बराबर जाणीतुं होय तो भले ते प्रस्तुतकार्य करे, राजाना आदेशथी मंत्रिए तेना गुरुसाथे सुरेंद्रदत्तने सावधान रहेवा माटे का // 55 // अह तं भूमिवइणा विचित्तपहरणपरिस्समं किणगं / . उच्छो विणिवेसिय पियं पियं जायतोसेण // 56 / / 1 सउज्झाओ इत्यपि पाठः / Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7 राधावेध दृष्टांतः : : 131 पूरेसु तुम मम वच्छ ! वंछियं विहिऊण राहं च / परिणेसु णिव्वुइराय-कणयं अज्जसु सुरज्जं // 57 / / भावार्थ:-त्यारबाद विचित्रशस्त्रने धारण करनार ते सुरेंद्रदत्तने खोलामां लइ राजाए खुश थइ कह्य के-हे वत्स ! राधावेध करी मारा अभिलाषने पूरो कर, तेमज शान्तराजकन्याने परणीने आ श्रेष्ठराज्यने आज प्राप्त करी ले // 56-57 / / ताहे सुरिंददत्तो नरनाहं नियगुरुं च नमिऊण / आलीढट्ठाणढिओ धीरो घणुदंडमादाय / / 58 // निम्मलतेल्लाऊरिय-कुंडयसंकंतचक्कमणछिदं / पेहितो अवरेहि होलिज्जंतोवि कुमरेहिं // 59 / / अग्गियपव्ययप्पमुहेहि रोडिज्जतोवि तेहि चेडेहि / गुरुणा निरूविएहिं पासट्ठिएहिं च पुरिसेहिं // 60 // आकड्ढियखग्गेहिं जइ चक्कसि तावयं हणिस्सामो / इइ जंपिरेहि तेहि तरिजज्जतोवि पुणरूतं // 61 // लहुहत्थो उड्ढमुहो एगग्गमणो महामुणिदोव्व / उवलद्धचक्कविवरो राहं विधइ सरेण लहुं // 62 / / ___ भावार्थः-त्यारबाद पोताना पिताने अने गुरुने प्रणाम करी अश्लिष्टस्थाने स्थित थइ धनुदंड हाथमां लइ धैर्यपूर्वक सुरेंद्रदत्त उभो रह्यो, निर्मलतेलथी भरेल कुण्डामा प्रतिबिंबित थयेल राधावेधना चक्रगणना छिद्रने जोता अने बीजा कुमारोथी हलावता, Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 132 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला तेमज आग्निक, पर्वत विगेरे ते दासीपुत्रोवडे करीने विशेष प्रकारे फेरवाता, तेमज गुरुनी भाल (खबर) नीचे रहेल पङखाना बीजा पुरुषोवडे करीने आक्रोश कराता, तेमज उघाडी तरवार लइ उभा रहेल 'जो तुं भूलीश तो अमो तने हणीशुं' ए प्रमाणे बकबाद करनारा पुरुषोवडे वारंवार तर्जना कराता लघुहस्त (हाथ) ने उर्ध्व (उंचा) मुखवाला तेम महानींद्रनी पेठे एकाग्रमनवाला सुरेंद्रदत्ते चक्र छिद्र बराबर जोइ जलदीज राधानामनी पुतलीने बाणथी विधी नाखी अने राधावेधनी क्रिया बराबर करी // 58-59-60-61-62 // , विद्धाए तीए खित्ता वरमाला निव्वुइए से कंठे / आणंदिओ नरिंदो जयजयसद्दो समुच्छलिओ // 63 / / भावार्थः-राधावेध थयेलो जोइ ते राजकुमारीए सुरेन्द्रदतना गलामां घणा आनंदपूर्वक वरमाला नाखी, तेथी राजा पण प्रमुदित (हर्षवान्) थयो अने लोकोनी अंदर 'जयजय' शब्द थवा लाग्यो / 63 / विहिओ वीवाहमहो दिण्णं रज्ज पि से महोवइणा / जह तेण चक्कच्छिदं लद्धं न उ सेसकुमरेहि // 64 // भावार्थ:-अनुक्रमे जलदीज ते कुंवरीना विवाह Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7 राधावेध दृष्टांतः : : 133 महोत्सवनी क्रिया संपूर्ण थइ अने राजाए पोते करेला पण (शरत) प्रमाणे ते सुरेंद्रदत्तने राज्य आप्यु, जेम सुरेंद्रदत्ते राधावेधनाचक्रनुं छिद्र जोइ बराबर बाण मारी राधावेध कर्यो, परंतु बीजा कुमारोवडे राधावेध नहि थइ शकवाथी हताशज (नाराज) थया एटले तेओने काइपण कला न आवडवाथी महामूर्ख होवाथी राधावेध साध्या विना राजकन्याने तथा राज्यादिकने कांइपण प्राप्त करी शक्या नहि / 64 / कहमवि देवबलेण य अब्भासवसेण साहिउ सक्को / राहावेहोवि पुणा न लहिज्जा नरभवं एवं // 65 // भावार्थ:-जो के देवताना बलवडे करीने अने अभ्यासबलवडे करीने कालांतरे पण राधावेध साधी शके, केमके राधावेध साधवो ते काइ शक्तिनी बहार नथी परंतु फरी मनुष्यजन्मनुं मलq तो विशेष दुर्लभ छे / / 65 / / तह कोइ पुण्णपन्भार-भारिओ माणुसत्तमं लहइ / एवं अणोरपारं भवकतारं परियडतो // 66 / / भावार्थ:-आ घणी अपार एहवी संसाररूप अटवीमा भमतो. जीव पुण्यराशीने लीधेज कदाचित् अने कथञ्चित् मनुष्यजन्म मेलवी शके छे // 66 / / Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 134 : : नरभवट्टितोवनयमाला अत्रोपनययोजना, यथा हवे दृष्टान्त घटावे छे, जेमजह इंददत्तनरवई भवप्पवंचप्पयारपुरसामी / तह कम्मपरिणामनिवो अविरई तस्सम्गम हिसी य // 67 // भावार्थ:-जे इंद्रदत्तराजा हतो ते संसारप्रंपचना भेदरूप नगरनो स्वामी कर्मपरिणतिरूप राजा अने तेनी अविरति रूप पटराणी जाणवी // 67 / / बावीसा जह पुत्ता तह बावीसं परीसहा जाण / तिण्हाचेडी तस्स य पुत्ता चत्तारि य कसाया // 68 / / भावार्थः-बावीस पुत्रोना ,स्थानमां (ठेकाणे) अहिं बावीसपरिषह जाणवा अने दासीना चार पुत्रोने ठेकाणे तृष्णा रूप दासीना क्रोध, मान, माया अने लोभरूप चार पुत्रो जाणवा / / 68 / / जह अमच्चस्स य धूया दंसणमच्चस्स तह धुआ विरई / तद्दिट्टण य राया संजाओ रागपरतंतो / / 69 // भावार्थ:-प्रधाननी पुत्रीने ठेकाणे दर्शन[सम्यक्त्व] रूप प्रधाननो विरतिरूप पुत्रीने जोवाथी राजा रागपरतंत्र (रागवश) थयो // 69 / / पुण्णसिणेहेण तो विलासमाणस्स संभूओ गन्भो / अविरइसवित्तोहिं तओ राओ मंदीकओ तोसे / / 70 // Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7 राधावेध दृष्टांतः : भावार्थ:-पूर्णस्नेहथी विरति साथे विलास (कामक्रोडा) करता तेने संयम पुत्र थवा माटे (विरतिने) गर्भ रह्यो, परंतु अविरतिरूप सपत्नीओए (शोक्योए) तेणोमां तेनो (राजानो) राग मंद को // 70 / / संजमनामा पुत्तो जणयगिहे तोए समयए जणिओ। सुविवेउवज्झायाण अंतिए पाढिओ सम्म // 71 / / भावार्थ:-विरतिरूप प्रधानपुत्रीए निजजनकने एटले सम्यक्त्वरूप पोताना प्रधानपिताना घरमा संयमनामा पुत्रने समय आवे जन्म आप्यो अने सुविवेकरूप उपाध्यायं पासे सारी रीते भणाव्यो / 71 / अह जह जियसत्तुनिषो विष्णेओ तह जिणंदनरदेवो / 'निटबई तस्स कण्णा पाणिग्गहणट्ठमुभविओ // 72 // भावार्थ:-जितशत्रु नरपतिना ठेकाणे जिनेंद्रदेव अने तेमनी निर्वृतिरूप कन्याना पाणिग्रहण माटे तैयारो जाणवी // 72 // सुहसामग्गीमंडव-जिणआणापीढतेल्लकंडयं तत्थ / सुयधम्मकम्मथंभो-वरि मंडियमट्टधरचक्कं / / 7 / / भावार्थ:-शुभ सामग्रीरूप मंडप (मांडवो) अने जिनाज्ञारूप बाजोठ उपर रहेल तेल- कुंडं जाणवू, 1 निविइ इत्यपि Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : नरभवदिळूतोवनयमाला श्रुतधर्मरूपस्तंभ उपर आठ कर्मरूप . आठ चक्रो जाणवा // 73 // चत्तारि घाइकम्माइं अघाइकम्माइं तह य चत्तारि / मोहणीयट्टिइ राहा पंचाली सा मुणेयव्वा // 74 / / भावार्थ:-तेमां चार घाति (ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी, मोहनीय, अंतराय) अने चार अधाति (वेदनीय, नाम, गोत्र अने आयुष्य) कर्मो छे, अने मोहनीयकर्मनी स्थितिरूप राधा नामनी पूतली जाणव // 74 // तव्वेहसाहणकए दुगवीससुया समागया तत्थ / चत्तारि चेडरूवा रागद्दोसा दुवे सुहडा / / 75 / / भावार्थ:-तेणीनो एटले. राधानामनी पूतलीनो वेध करवा माटे बावीस परीषहरूप बावीश पुत्रो हाजर थया तेमज चार कषायरूप चार दासीपुत्रो अने रागद्वेषरूप बे सुभटो पण राधावेध साधवा माटे बहु मथ्या // 75 / / तत्थ न पत्तं केहि वि कण्णालाहं तहा य जयवायं / निव्वीरं धरणियलं दळूणं विसाइया सवे / / 76 / / भावार्थ:-परंतु ते स्थले कोइए पण निर्वतिरूप कन्यानो लाभ न मेलव्यो, तेणी थती निंदा अने Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7 राधावेध दृष्टांतः : : 137 पृथ्वीने निर्वीर जीइ तमाम लोको विषाद (खेद) पाम्या / / 76 // अह सो संजमपुत्तो भूमिवइणो पहाणदोहिच्चो / आगम्म थंभपासे तत्थ य सव्वं पलोइत्ता / / 77 / / भावार्थ:-त्यारबाद राजानो पुत्र अने मंत्रिनो दौहित्र एटले प्रधाननी पुत्रीनो पुत्र संयमनामना कुमार स्तंभ पासे आव्यो ने त्यां जइ तेमां सघलं निहाली // 77 // रोडिज्जतो चेडेहि हसिज्जमाणो देवीसपरिसेहिं / होलिज्जतोवि राग-दोसचेडेहिं छलमत्तं // 78 / / भावार्थ:-कषायरूप दासीपुत्रोथी रोलावा छतां परीषहरूप बावीस भाइओथी हसावा छतां अने रागद्वेषरूप सुभटोथी कंपित थवा छतां / / 78 / / विगहापमायखग्ग-कृतग्गेहि समं भयत्तेहिं / सुहकिरियाउज्जुजीवा संजुज्जा णाणधणुदंडे / / 79 // खाइगसम्मत्तसरो मंडित्तोवसममंडलढाणे / सुठुनिययप्पवीरिय-गुणेहि निस्संसयाउत्तो / / 80 / / ____ भावार्थ:-विकथा अने प्रमादरूप तरवार ने भालानी अणीवडे घोंचावा छतां पण शुभक्रियारूप सीधी दोरीने ज्ञानरूप धनुष्य उपर चडावी उपशम Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 138 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला रूप मंडलाकारस्थान बांधी क्षायिकसम्यक्त्वरूप बाणने सारा आत्मवीर्य ( पराक्रम ) वडे खेंची मुक्यं // 79-80 // मुक्को य तत्थ बाणो राहावेहा कओ तहा तेण / हट्ठाखिलभव्वणिवा जयजयसद्दो समुच्छलिभो // 81 // भावार्थ:-अने तेणे मोहनीयकर्मनी स्थितिरूप राधानो वेध कर्यो, आई आश्चर्य देखी भव्यरूप राजाओ खुश थया अने 'जयजय' शब्द चोमेर प्रसर्यो / / 81 // खित्ता केवललच्छी वरमाला निन्दुइए तस्स गले / भग्गा दिसोदिसं ते सब्वेवि परोसहाइया / / 8 / / .. भावार्थः-तेवार पछी मोहनी स्थितिनो वेध (विनाश) थवाथी निर्वृतिरूप कन्याए केवललक्ष्मी रूप वरमाला तेना गलामां नांखी अने तुरत ज परीषहो जुदीजुदी दिशामां भागी गया / / 82 // संतुट्ठो कम्मनिवो दसणसइवस्स जयवरो दिण्णो / धिक्कारं कारिऊणं कड्ढिया रागदोसभडा / / 83 // भावार्थ:-इंद्रदत्तराजारूप कर्मनृपतीए खुश थइ दर्शनमंत्रिने धन्यवाद तेमज वरदान आप्या * अने रागद्वेषरूप सुभटोने तिरस्कार करी.काढी मूक्या // 83 // Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7 राधावेध दृष्टांत: : : 139 जाओ सलाहणिज्जो सम्वत्थपसंसमाणगुणनिवहो / सिरिजिणवरसुसरेण य विहिओ नियरज्मधोरिज्जो / / 84 / / भावार्थ:-ते संयमपुत्र श्लाघा पाम्यो एटले कांइ पण सलाह लेवाने लायक थयो अने चारे तरफ तेना गुणोनी प्रशंसा थवा लागी अने छेवटे श्री जिनेश्वररूप श्वसुरे (सासरे) पोतानी गादीनो मालीक बनाव्यो / / 84 // जह तेहिं न हु पत्तं राहावेहस्स लाहमणेहि / तह मणुयत्तं पुणरवि न लहिज्जइ होणपुरोहिं / / 5 / / भावार्थ:-जेम. बीजा श्रीमाली प्रमुख बावीश अथवा अग्निदत्त प्रमुख दासीपुत्रोथी राधावेध न करी शकायो तेम पुण्यविनाना प्राणीओने पण मनुष्यजन्म पामवो ते घणो ज दुर्लभ छ / 85 / / इय सत्तमदिट्ट तो चक्कयणामा मए विणि दिट्टो / नरभवलद्धट्ठाए लिहिओ पवयणसमुद्दाओ // 86 // भावार्थ:-आ प्रमाणे मनुष्यभवनी दुर्लभता उपर चक्रनामनो एटले राधावेधनामनो सातमो दृष्टांत शास्त्रसमुद्रमांधी उद्धरी अहिं में लखीने योजेल [रचेल] छे / / 86 // सिरिविजयप्पहसूरि-रज्जे सिरिविणयविमलकविराया। सिरियोरविमलयंडिय-सीसेण णयाइविमलेण / / 87 / / Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 140 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला भावार्थ:-श्रीविजयप्रभसूरीश्वरना राज्यमा श्री . विनयविमलगणि कविराज थया, तेमना शिष्य पंडित श्रीधीरविमलगणि थया तेमना शिष्य नयविमले आ रचना करी छे / / 87 / / // इति श्रीमत्तपागणगगनांगणदिनमणिभट्टारकश्रीमदानन्दविमलसूरीश्वरसुशिष्यपण्डितहर्षविमलगणिशिष्यपण्डितजयविमलगणिविनेयपण्डितकीतिविमलगणिशिष्यपण्डितविनयविमलगणिशिष्यपण्डितधीरविमलगणिसुगुरुपादारविन्दचञ्चरीकायमाणपण्डितनयविमलगणिरचितायां नरभवदृष्टांतोपनयमालायां राधावेधनामा सप्तमो दृष्टान्तः सम्पूर्णः // 7 // Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // 8 // अथ कूर्मनामा अष्टमो दृष्टान्तः // किल कत्थइ वणगहणे अणेगजोयणसहस्सविच्छिण्णो / आसि दहो अइगुहिरो अणेगजलयरकुलाइण्णो // 1 // भावार्थ:-कइएक गहनवनमां अनेकहजारयोजन विस्तीर्ण (विस्तार) अने अत्यंत उंडो तेमज अनेक जलचर (पाणीअंदर चालवावाला मत्स्यादि) प्राणीओथी व्याप्त. एक द्रह हतो // 1 // अइबहलनिविडसेवाल-पडलसंछाइओवरिमभागो / माहिसचम्मेणेव सो अवणद्धो भाइ सम्वत्थो // 2 // भावार्थ:-जे गाढ जाडा सेवालना पडलथी उपरना भागमां ढंकायेलो हतो तेथी जाणे चोमेर पाडाना चामडाथी ढंकायेल न होय ? तेवी रीते जणातो हतो // 2 // केण वि कालवसेण य चटुलग्गीवो दुलो परिभमंता / संपत्तो उवरितले गीवा य पसारिया तेण // 3 // भावार्थ:-कोइ वखते चंचलडोकवालो एक काचबो भमतो भमतो उपरना भागमां तरी आव्यो अने डोक पसारी (फेलावी) // 3 // सेवालपडलच्छिदं अहसमए तंमि तत्थ संजायं / . दिट्ठो तेण मयंको पडिपुण्णो कोमुइ निसाए // 4 // Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 142 : : नरभवदिठूतोवनयमाला भावार्थ:-तेज वखते दैवयोगे सेवालना पडलमां एक काणुं पडी गयुं हतुं ते द्वारा . ते काचबे पूर्णिमानी स्वच्छ रात्रीमां उगेल परिपूर्ण चंद्रने जोयो // 4 // जोइसचक्काणगओ निन्भरगयणस्स मज्झभायंमि / खोरमहोयहिलहरी समजोहाहावियदिसोहो // 5 / / भावार्थ:-जे ज्योतिषचक्रोना वचे. बिराजमान अने विशाल गगनतलना मध्यभागमां स्थित (रहेल) तेमज क्षीरोदधि (क्षीरसमुद्र)नी लहेर जेवी चांदनी वडे संपूर्ण दिशाओने उज्वल करनार हतो / / 5 / / आणंदपूरियत्थो तो चितइ कत्थ ? वा किमेयंति ? / किं नाम एस सग्गो कि ? वा अच्चम्भुयं किमवि ? // 6 // भावार्थ:-आवा चंद्रमंडलने जोइ ते काचबो आनंदपूरित हृदयथी विचारवा लाग्यो के-हुं क्यां आव्यो ? अने आ शुं छे ? अथवा शुं आ स्वर्गज छे ? के कांइ बीजू ज तेवं अतिअद्भुत आश्चर्य छ ? // 6 // किं मम एगस्स पलो-इएण? दंसेमि सयललोयस्स। . इय चितिय निव्वुडो तेसिमण्णेसणनिमित्तं / / 7 / / भावार्थ:-आ चंद्रमंडलने मारा एकना जोवाथी Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 8 कूर्मनामा दृष्टांत : : 143 शुं ? पण तमाम बीजा जीवोने आ नवं कौतुक बतावतुं जोइए, एम विचारी खुशीमांने खुशीमां बीजा जीवोनी शोध माटे नीचे पाणीमां चाल्यो गयो // 7 // आणीय सयलसयणो जाव पलोएइ तं किरपओसं / नो पासइ वाउवसेण पूरियं तत्थ तं छिदं / / 8 / / ___ भावार्थः-ते कूर्म (काचबो) तमाम परिवारने उपर लावी जेटलामां उंचे दृष्टि करे छे के तेटलामां देवयोगे वायुवशथी प्रथमर्नु सेवालमां पडेलं छिद्र पार्छ पूराइ गयु // 8 // पतेवि कोमुइतमि दुल्लहो ससहरो य दहमज्झे / अब्भकओववद्दव-वज्जिओ य दुल्लहं एयं // 9 // भावार्थ:-पूर्णिमानी रात्री प्राप्त थया छतां पण द्रह वच्चे चंद्रनु आवq दुर्लभ छे, कदाचित् द्रह उपर चंद्र आवे तो पण तेना उपर अभ्र (वादला) विगेरे छवाया न होय अर्थात् बहुनिर्मल होय तेवी स्थिति तो दुर्लभ छे // 9 // तह संसारमहद्दह'-मज्झे मग्गाणं सयलजंतूणं / / पुणरवि माणुसजम्मो अइदुल्लहो पुण्णहीणाणं / / 10 // . भावार्थ:-तेवी रीते संसाररूप द्रहनी अंदर डुबेल 1 महद्दव इत्यपि Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 144 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला पुण्यविनाना संसारी प्राणीओने फरी . मनुष्यजन्मनी प्राप्ति थवी ते विशेष दुर्लभ छे // 10 // केणवि कालवसेण य देवबलेण य कत्थवा कइया / पेच्छइ ससहबियं लहिज्ज नो माणुसं खु पुणो // 11 / / भावार्थ:-केटलेककाले कालबलथी के देवबलथी कोइपण स्थानमां चंद्रनुं दर्शन थइ शके तेवो संभव छे, परंतु मनुष्यजन्मनु मलq तो विशेष दुर्लभ छे // 11 // अत्रोपनययोजना यथा अहीया दृष्टान्त घटावे छे, जेमजह अइगहण वि वणं तह संसाराडवी मुणेयव्वा / जहद्दहो अइगुहिरो मणुअगई तत्थ णायव्वा / / 12 / / भावार्थः-अतिगहन (भयंकर) . वनना जेवी संसाररूप अटवी (वन) अने अतिगंभीर द्रहना जेवी मनुष्यगति जाणवी // 12 // जीवो तह संसारी वसइ सया कच्छवुव्व परिजुण्णो / जलयरभावं पत्ता तत्थाणेगे मणुअजीवा // 13 // भावार्थ:-तेमां (द्रहना जेवी मनुष्यगतिनी अंदर) कच्छप (काचबा)नी पेठे संसारीजीवो निरंतर वसे छे, तेवीज रीते त्यां बीजा जलचरप्राणीओनी पेठे Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 8. कूर्मनामा दृष्टान्त: : : 145 अनेक मनुष्य हृद (द्रह) जेवी मनुष्यगतिमा रहेला होय छे / / 13 // जम्मजरामरणाइं-दुहजलकल्लोलपूरिओ सययं / सेवालजालसरिसं निविडं मिच्छत्तमवणद्धं // 14 / / भावार्थ:-जन्म, जरा अने मरण विगेरेना दुःख रूप मोटा मोजाओ (कल्लोलो)थी निरंतर व्याप्त थयेल द्रहरूप मनुष्यगति जाणवी, जेमां शेवालराशि (ढगला)ना जेवू गाढ मिथ्यात्व चोमेर (चारे दिशा ओमां) प्रसरेलुं छे // 14 // कोमुइमुहुव्व सुहसा-मग्गोहिं तत्थ कम्मविवरहि / नाणानिलेहि भिदं छिदं मिच्छत्तसेवालं // 15 // __भावार्थ:-कौमुदीमहोत्सव . जेवी कर्मविवररूप शुभसामग्री अने ज्ञानरूप पवनथी भेदायेल मिथ्यात्वरूप शेवालमां एक छिद्र (काj) पडी जाय छ / 15 / दि8 च तेण ससहर-बिबस रिच्छं सुदंसणं तत्थ / आणंदिओ मणमि चितइ अच्चम्भुयं किमवि ? // 16 // भावार्थ:-चंद्रबिंबनी पेठे संसारी जीव मिथ्यात्वकर्मना क्षय, उपशम के क्षयोपशमरूप छिद्रने लीधे सुदर्शन (सम्यक्त्व)नो लाभ करे छे अने अपूर्व आनन्दने पामतो विचारे छे के आ अत्यंत आश्चर्यरूप शुं छे ? // 16 // Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 146 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला तो अण्णेसि सण-मिह जइ हवइज्ज चितिर पवत्तो। एवं वियक्कइत्ता अह पत्तो मोहपरतंतो // 17 / / . .. आगच्छइ जावया सो आकारिऊण परियणं निययं / ताव य ससहरबिंबं संजायं पडलसंछण्णं // 18 / / भावार्थ:-जेम चंद्रदर्शन -मने थयु तेम बीजा मारा कुटुंबीओने थाय तो ठीक ! एवा विचारमा पज्यो, छेवटे तर्क वितर्क करी मोहपरतंत्र थइ जेटलामां पोताना कुटुंबी बीजा काचबाओने चंद्रमंडलना दर्शन माटे बोलावीने उपर आवे छे एटलामां तो चंद्रमंडल शेवालनुं छिद्र पूराइ जवाथी सर्वथा अदृश्यज थइ गयु // 17-18 / / एवं मोहवसेण य सम्मत्तं पाविऊण निग्गमियं / संकाइदोसदुट्ठो णो अण्णेसि य दंसेइ // 19 // भावार्थ:-तेवी रीते प्राप्त थयेल सम्यग्दर्शनने संसारी जीव मोहना वशथी गुमावी दे छे, अने शंकाकाक्षां विगेरे दोषोथी लेपातो ते बीजाओने सम्यग्दर्शननी प्राप्ति करावी शकतो नथी // 19 / / जह कुम्मो अहपत्तो चंदं ठूण उड्ढमागम्म / तह सम्मत्तं हिच्चा निगोयनरइं गई जाइ // 20 // Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 8 कूर्मनामा दृष्टांतः : : 147 . भावार्थ:-जेम काचबो उपर आव्यो अने चंद्रमंडल देखीने नीचे चाल्यो गयो, तेम सम्यक्त्वने तजी संसारी जीव निगोद नरक आदि दुर्गतिमां जाय छे // 20 // तह कहमवि सो कुम्मो पाविज्जइ सोमदसणं कइया / तह कम्मविवरेहि वि हविज्ज सम्मत्तचंदपि // 21 // भावार्थ:-तेमज जेवी रीते कालांतरे (कोइपण वखते) मुश्केलीथी काचवो फरी चंद्रमंडलने जोवा पामे, तेवीज रीते. कर्मविवरनो बोजो (भार) घटवाथी फरी सम्यग्दर्शनरूप चंद्र प्राप्त थइ शके छे // 21 // इय अट्ठमदिट्ठतो कुम्मगनामा मए विणिद्दिट्टो / नरभवलद्धट्ठाए लिहिओ पवयणसमुद्दाओ // 22 // ___ भावार्थः-आ कूर्मक ( काचबासंबंधी ) नामा आठमो दृष्टांत मनुष्यजन्मनी दुर्लभता उपर शास्त्रसमुद्रमांथी लइ में ( नयविमले ) अहिं निर्देशेल देखाडेल छे // 22 // सिरिविजयप्पहसूरि-रज्जे सिरिविणयविमलकविराया / सिरिधीरविमलपंडिय-सीसेण णयाइविमलेण // 23 // भावार्थः-श्री विजयप्रभसूरिना राज्यमां श्री Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 148 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला विनयविमलगणि कविराज थया ने तेओना शिष्य श्रीधीरविमलगणि पंडित थया तेओना शिष्य में (नयविमले) आ (आठमा दृष्टांतनी) योजना करेल छ // 23 // // इति श्रीमत्तपागणगगनांगणदिनमणिभट्टारकश्रीमदानन्दविमलसूरीश्वरसुशिष्यपण्डितहर्षविमलगणिशिष्यपण्डितजयविमलगणिविनेयपण्डितकीतिविमलगणिशिष्यपण्डित. विनयविमलगणिशिष्यपण्डितधीरविमलगणिसुगुरुपादारविन्दचञ्चरीकायमाणपण्डितनय विमलगणिरचितायां नरभवदृष्टांतोपनयमालायां कूर्मनामाऽष्टमो दृष्टान्तः सम्पूर्णः // 8 // Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // 9 / / अथ युगशमिलानामा नवमो दृष्टान्तः // पढमो लवणसमुद्दो जोयणदुगसयसहस्सविच्छिण्णो / मित्तुव्व जंबूदीवं बाढमालिंगसंठियो सययं // 1 // भावार्थः-आ तिछीलोकमां बे लाख योजननो लवणनामनो प्रथम समुद्र छे, जे मित्रनी पेठे जंबूद्वीपने आलिंगी निरंतर रहेलो छे / / 1 / / परिही तिलक्खसोलस-सहस्स सगबीसवुसयजोयणयं / 'तिगउअडवीसधणुसय-साहियमखंगुलं चऊद // 2 // __ भावार्थ:-तेनी. प्रारंभमां त्रणलाख सोलहजार बसो सत्ताबीस (316227) योजन अने त्रण गाउ, एकसो अट्ठावीस (128) धनुष्य अने साडातेर अंगुल प्रमाण परीधि छे // 24 // नवलक्खा अडयाला सहस्स छसयाई गोयणाई तहा / तेसीइ उवरि जोयण पमाणपरिही तहा मज्झे // 3 // . ___ भावार्थ:-तेमज नवलाख, अडतालीसहजार छसोने त्यासी ( 948683 ) योजन प्रमाण लवणसमुद्रना मध्यभागमा परिधी छे // 3 // - 1. अडवीसाहियधणुसय इत्यपि पाठः कचित् प्रत्यन्तरे दृश्यते स चायुक्तत्वात् त्रिक्रोशसबंधिपाठस्याऽनुपलम्भान्न गृहीत इति Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 150 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला पणदसलक्खेगासी-सहस्सगुणिआल अहियसयमेग।. .. एसो बज्झो परिही पण्णत्तो सम्वदंसीहि // 4 // भावार्थ:-पंदरलाख एक्याशीहजार एकसोओगणचालीश (1581139) योजन प्रमाणनी लवणसमुद्रनी बाह्यपरिधी सर्वदशिओए (तीर्थंकरोए) कहेल छे // 4 // तत्थत्थिगवरि तित्थं जोयणदससहस्सपमाणयं मझे / पणनउइजोयणसहस्सा-तिक्कमे उभयपासंमि. // 5 // भावार्थ:-तेमा बन्ने तरफ पंचाणुं हजार योजन जइए एटले दशहजार योजन- एक तीर्थ आवे छे / 5 / तम्मन्झ देसभाए पायालनिवा य वज्जरयणमया / वडवामुह 1 केऊरा२ जूव३ ईसर४ णामया चउरो // 6 // भावार्थः तेना मध्यभागमा वज्ररत्नमय वडवामुख 1, केयूर 2, यूप 3 अने ईश्वर 4 नामना चार पाताल कलशा छे // 6 // जोयणलवरखपमाणा मज्झे जोयणसहस्सदस य मुहे / मूले तम्मि पमाणा तह जोयणसहस्सबाहल्ला / / 7 / / ___भावार्थ:-जेओ वच्चे लाख योजनना अने मोढे तथा तलीये दश, दश हजार योजनना प्रमाणवाला छे तेमज एक हजार योजनना जाडा छे // 7 // Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 9 युगशमिला दृष्टांतः : : 151 जत्थ य जोयणसोलस-सहस्समाणा सिहा जलस्सावि। . तम्मज्झे हु निलीणा सूरावि हवंति सीयत्ता // 8 // भावार्थ:-जेमां सोलहजार योजनना प्रमाणवाली एक जलशिखा छे तेनी अंदर सूर्यो रहे छे तेओ पण शीतात एटले टाढथी पीडा पामेला थाय छ केमके ज्योतिश्चक्र 900 योजनमा छे // 8 // जत्थ महमच्छकच्छव-पीठपाठीननक्कचक्कोहो / जलकल्लोलक्खुभिय-दिसिचक्को जलयराइण्णो // 9 / / भावार्थ:-जेमां मोटामत्स्य (मांछलां) कच्छव (काचबा) पीठ, पाठीन (1000 दाढाना मत्स्यो), नक्र अने चक्रनो ओघ (समूह) के जे बीजा जलचरप्राणीओथी व्याप्त छ, तेमज पाणीना तरंगोथी दिशाओमां क्षोभ उत्पन्न करी रहेल छे // 9 // तइ केइ दुण्णि देवा अच्चन्भुयचरियकोउहल्लेण / जुगछिड्डाओ समिल विजोजइत्ता लहुं चेव / / 10 / / कह एसा जुगछिड्ड पुणोवि पाविज्ज इय मणे धरि। पत्ता सुमेरुसिहरे दोवि दोण्हं करे काउं // 11 // भावार्थ:-तेमां कोइ बे देवो आश्चर्यजनक कुतूहलथी प्रेराइ झोंसराना काणामांथी समिल [झोंसरामां नाखवानी. खोली] ने काढी 'आ समिल पाछी झोंसराना छिद्रमां केम पेशी जाय ?' एवा विचारथी Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 152 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला झोंसरु अने समिल बन्नेने हाथमां लइ सुमेरुपर्वतना शिखर उपर चाल्या गया // 10-11 / / अवरोउं समिलजुगं पवाहियं पुवअवरजलहीसुं। तत्थ जुगसमिलमेलं पेच्छिउं ते तओ लग्गा // 12 / / . भावार्थ:-अने पूर्व तेमज पश्चिम समुद्रमा समिल तेमज झोंसराने जुदा पाडी फेंकीने पाछो बन्नेनो परस्पर मेल क्यारे थाय छे ते जोवानी उत्सुकताथी बन्ने देवो ते पाछलज लाग्या // 12 // सागरजले अवारे सा समिला तं च जुगमहो गाढं / अइचहुलचंडपवण-प्पणा ल्लयाई भमंताई / / 13 // भावार्थ:-अमर्याद लवणसमुद्रना जलमां झोंसरु अने समिला (खीली) बन्ने प्रचंड पवनना झपाटाथी आडाअवला भमवा लाग्या // 13 // तत्थ गओ बहुकालो देवा परसंति मेरुचूलाए / संजोगोवि न जाओ छिद्दप्पवेसो कहं हुन्ना? // 14 // __ भावार्थ -तेवीज स्थितिमां घणोज वखत व्यतीत थइ गयो, अने बन्ने देवो पण सुमेरुना शिखर उपर छिद्रप्रवेशनी राहजोता रह्या, परंतु झोंसरुं ने समिला ए बन्नेनो संयोग पण घणे काले न’ थयो तो झोंसराना काणामां समिल (खीली) ने दाखल Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 9 युगशमिला दृष्टांतः : : 153 थवानी वातज शी? // 14 // जह तोए समिलाए छिद्दप्पवेसो अईवदुल्लभो / तह मोहमूढचित्ताणं माणुसत्तंमि मणुआणं // 15 // भावार्थ:-जेम ते समिला (खीली)नो झोंसराना छिद्रमा प्रवेश थवो घणोज अशक्य छे तेवी रीते मोहथी विह्वल थयेल मनुष्योने फरी मनुष्यजन्मनी प्राप्ति थवी पण अतिदुर्लभ छे / / 15 // कहमवि देवबलेण य छिद्दप्पवेसो हविज्ज समिलाए / लहइ नरत्तं न पुणो दंसणभट्ठो तहा मच्चो / / 16 / / ___ भावार्थ:-कदाचित् दैविक प्रेरणाथी समिल (खीली)नो झोंसराना छिद्रमा प्रवेश थवो शक्य छ, परंतु सम्यग्दर्शनथी भ्रष्ट थयेला जोवोने फरी मनुष्यपणानी प्राप्तितो विशेषज अशक्य छ // 16 // अत्रोपनययोजना यथा हवे द्रष्टांत घटावे छे, जेमजह सो लवणसमुद्दो तह संसारोयही मुणेयव्यो / तह जलयरसारिच्छा अणेगसंसारिजीवा य // 17 // भावार्थ:-लवणसमुद्र जेवो अहीं अपारसंसारसमुद्र जाणवो अने तेमां अनेक जलचरो जेवा संसारी . जाणवा // 17 // Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 154 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला जम्मजरामरणाइदुहजलकल्लोलक्खुभियसव्वजणो / चत्तारि धरणीकलसा कसायकुंभा तहा जाण / / 18 / / भावार्थ:-तेमज जलचरजीवोनी माफक समस्तजीवो जन्मजरामरणादिना दुःखरूप जलतरंगोथी क्षोभ पामेला जाणवा अने चार पाताल कलशा जेवा क्रोधादि चार कषायरूप कलशो जाणवा / / 18 // सुहकम्मविवरपरिणाम-देवो दंसेइ उज्जुमइजुत्तो। जह समिला तह सद्धा जुगमिव सुद्धप्पवीरिययं / / 19 / / भावार्थ:-ऋजुमतिथी युक्त शुभकर्मविवर (काj) परिणामरूप देव जुए छ, समिला जेवी श्रद्धा अने झोंसरा जेवं प्रकृष्ट आत्मवीर्य (आत्मबल) जाणवू // 19 // जहमंदरगिरिचूला तह नियई पुवकम्ममम्मजुआ। कालाइकारणेहि पवाहिआ भवसमुइंमि // 20 // भावार्थ:-सुमेरुनी चूलिका ( शिखा ) जेवी पूर्वकर्ममर्मयुक्त नियति जाणवी अने संसारसमुद्रमां कालादि एटले काल 1 स्वभाव 2 नियति 3 कर्म 4 ने उद्यम 5 ए पांच कारणोवडे प्रवाहित करेल छ / // 20 // जह समिला जुगजोगो लवणसमुदंमि दुक्करो भणिओ / तह सद्धासमिलाए संजोगो वीरियजुगस्स // 21 // Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 9 युगशमिला दृष्टांत : : 155 ___ भावार्थ:-जेम समिला (खीली) ने युग [झोंसरा] नो संयोग लवणसमुद्रमां दुष्कर कहेल छ तेवी रीते श्रद्धारूप समिला अने वीर्य ( आत्मबल ) रूप झोंसरानो संयोग थवो पण अतिदुष्कर छे // 21 / / निद्दापमायचंडा-निलप्प'हावओ धम्मसंजोगो / भवसायरंमि तहा दुक्करभावेण तज्जोगो // 22 // ____ भावार्थ:-निद्रा अने प्रमादरूप प्रचंडपवनना प्रभावथी संसारसमुद्रमा धर्मनी साथे योग थवो अतिदुष्कर छे // 22 // इय णवमो दिढतो जुगसमिलाए मए विणिहिट्ठो / नरभवलट्ठाए लिहिओ पवंयणसमुद्दाओ // 23 // _ भावार्थ:-आ प्रमाणे मनुष्यभवनी दुर्लभता उपर जुगशमिला नामनो नवमो दृष्टांत शास्त्रसमुद्रमांथी उद्धरी अहिं में (नयविमले) लखीने योजेल (रचेल) छे / / 23 // 2 // सिरिविजयप्पहसूरि-रज्जे सिरिविणयविमलकविराया। . सिरिधीरविमलपंडिय-सीसेण णयाइविमलेण // 24 / / भावार्थ:- श्रीविजयप्रभसूरीश्वरना राज्यमां श्री विनयविमलगणि कविराज थया, तेमना शिष्य पंडित . 1 पहाव ओ इत्यपि Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 156 : : नरभवदिठूतोवनयमाला श्रीधीरविमलगणि थया तेमना शिष्य नंयविमले आ रचना करी छे / / 24 // // इति श्रीमत्तपागणगगनांगणदिनमणिभट्टारकश्रीमदानन्दविमलसूरीश्वरसुशिष्यपण्डितहर्षविमलगणिशिष्य पण्डितजयविमलगणिविनेयपण्डितकीतिविमलगणिशिष्यपण्डितविनयविमलगणिशिष्यपण्डितधीरविमलगणिसुगुरुपादारविन्दचञ्चरीकायमाणपण्डितनयविमलगणिरचितायां नरभवदृष्टांतोपनयमालायां युगश मिलानामा __ नवमो दृष्टान्तः सम्पूर्णः // 7 // Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // 10 // अथ परमाणुनामा दशमो रष्टान्तः / पढमो. जंबूद्दीवो सव्वद्दीवाण मन्मओ वट्टो / जोयणलक्खप्पमाणो विवखंभायामभागेण // 1 // भावार्थः-सघला द्वीपोनी बच्चे लंबाई अने पहोलाइमां लाख योजननो प्रथम जंबुद्वीप छे // 1 // . पणसयछवीसजोयणछच्चेव कलापमाणमिह भरहं / तदुगुणो हिमवंतो वासहरो पव्वओ तत्थ // 2 // भावार्थ:-तेमां पांचसोछवीस (526) योजन अने छ कला प्रमाण- भरतक्षेत्र छे ते पछी भरतक्षेत्रने मर्यादाकारि भरतक्षेत्रथी बमणा प्रमाणनो हिमवंत नामनो वर्षधरपर्वत छ / / 2 / / तत्तो दुगुणं हिमवंत-खित्तं जुयलाण दुगुणमहहिमवो। . तसो हरिवासखेत्तं तओ दुगुणो निसढवासहरो // 3 // ___ भावार्थ:-तेथी आगल 'तेना करतां बमणा प्रमाण- हिमवंतनामनुं क्षेत्र छे, जे जुगलीआओर्नु छ, तेथी बमणा प्रमाणनेो महाहिमवानपर्वत छे, तेथी बमणुं हरिवासक्षेत्र अने तेथी बमणो निषधनामना वर्षधरपर्वत छे // 3 // एवं दाहिणपासे तेतीससहस्सजोयणाई तहा / छावण्णाहियइगसय-उत्तरपासंमि एमेव // 4 // Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 158 : : नरभवलुितोवनयमाला भावार्थ:-ए प्रमाणे दक्षिणभागमा. . तेत्रीसहजार एकसो ने छप्पन (33156) योजनप्रमाण- अने उत्तरभागमां पण तेटलाज प्रमाण, क्षेत्रमान जाणवू // 4 // एरवयखेत्तसिहरी एरण्णयवासरुप्पिवासहरो। . . रम्मगखेत्तं नीली-वासहरो दुगुणदुगुण कमा // 5 / / भावार्थ:-ऐरवत क्षेत्र, शिखरीपर्वत, ऐरण्यवंतक्षेत्र, रूपीपर्वत, रम्यकक्षेत्र अने नीलपर्वत ते तमाम अनुक्रमे उत्तरोत्तर बमणा बमणा प्रमाणवाला जाणवा / / 5 // मज्झे विदेहखेत्तं तेत्त ससहस्सछसयचलसीयं / जोयणपमाणमेयं कलाचउक्कं च तस्सुवरि // 6 // भावार्थ:-तेत्रीसहजार छसो चोरासी (33684) योजन अने चार (4) कला प्रमाण- मध्यमां विदेहक्षेत्र छे // 6 // सोलससहस्सअडसय-जोयणवायालदुगकलामाणं / पत्तेयं पत्तेयं आयामो सव्वविजयांणं // 7 // भावार्थ:-दरेक विजयनी लंबाइनुं मान सोल हजार आठसो बैंतालीस (16842) योजन अने वे कलानुं छे / / 7 // Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 परमाणु दृष्टांतः : : 159 दुगसयतेरसज़ोयण-वित्थारो गाउअद्धपरिमाणो / ... सोलस सेोलस विजया मंदरओ पुव्वपच्छिमओ // 8 // भावार्थ:-तेमज बसो तेर (213) योजन अने अर्द्ध गाउ प्रमाणनी पहोलाइ छे आवी सोल सोल विजयो सुमेरुगिरिथी पूर्व अने पश्चिममा छे / / 8 / / एगारसहस्सअडसय-जोयणबायालदुगकलामाणं / देवकुरुतरखेत्तं उभयपासद्धचंदसमं // 9 // ___भावार्थः-बन्ने तरफनी बाजुए अर्द्धचंद्राकार अगीयारहजार आठसें बेंतालीस योजन अने बे कलाना (११८४क० 2) प्रमाणे देवकुरु अने उत्तरकुरु क्षेत्रो छे // 9 // तत्थ तिपल्लाउया जुअला मणुआ तिगाउउच्चघणा / अट्ठमभत्ताहारा वसंति कप्पदुपरिभोया // 10 // भावार्थ:-तेओमां त्रण. पल्योपमना आयुष्यवाला, त्रण गाऊनी उंचाइना शरीरवाला अने अष्टमभक्ताहार एटले त्रण दिवसने आंतरे आहार लेनारा अचे कल्पद्रुमथी उपभोगपरिभोग करनारा युगलीपालोको रहे छे // 10 // .तत्थ य गयदंताणं वक्खारगिरीण जमलसेलाणं / / जंबूदीवुवगाओ णायव्वा सव्ववित्थारो // 11 // Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : नरभवतोदिटुंवनयमाला भावार्थ:-त्यां गजदन्तपर्वतनो, वक्षस्कारगिरिपर्वतनो अने यमक अने समकपर्वतनो बधो विस्तार जंबुद्वीपना प्रमाणना पेठे जाणवो // 11 // देवकुराओ उत्तर-दिसंमि उत्तरकुराओ दाहिणओ। पुव्वविदेहाओ पच्छिम पुवो पच्छिमविदेहाओ // 12 // भावार्थ:-देवकुरुथी उत्तरदिशामां अने उत्तरकुरुथी दक्षिणदिशामां, पूर्व विदेहथी पश्चिममां अने पश्चिमविदेहथी पूर्वमांतम्मज्झ देसभाए नवनउइसहस्सजोयणुस्सेहो / जोयणसहस्सगाढो धरणियले मंदरो अस्थि / / 13 / / __ भावार्थ:-ते जंबूद्वीपना बरोबर मध्यभागमां नवाणुहजार (99000) योजननी उंचाइवालो अने पृथ्वीमां हजार (1000) योजन प्रमाणना मूलवालो एकंदर लाख योजननो मंदर (सुमेरु) नामनो पर्वत छे // 13 // तस्सग्गदेसभाए चूला चालीसजोयणपमाणा। सासयचेइयजुत्ता अथित्ति विबुहमहणिज्जा // 14 // भावार्थ:-तेना अग्रभागमां देवपूज्य शाश्वतचैत्ययुक्त चालीस योजनना प्रमाणवाली एक चूला छ // 14 // Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 परमाणुदृष्टांतः : : 161 जोयणसहस्सदसयं नवनउइजोयणाहियं मूले / दसभागेक्कारसभइया तह भासिओ परिही // 15 / / भावार्थ:-अने ते मेरुपर्वतना मूलनो परिधि दशहजार अने नवाणु (10099) योजन अने एक योजनना अग्यार भाम करीये तेमानां दशभाग जेटला प्रमाणवालो छे // 15 // एगतोससहस्सनवसयदसजोयणाइपरिमाणो। तिन्निक्कारसभागा उवरिमभागे परिही एसो / / 16 / भावार्थः-अने एकत्रीसहजार नवसो दश (31910) योजन तेमज एक योजनना अगीयार भागमा रहेला त्रण भाग जेटला प्रमाणनो ते मेरुपर्वतना उपरना भागमां परिधि छे / / 16 / / तस्सात्थि पढमकडं सहस्राजोअणमट्टिसक्करारूवं / अंक फालियकंचण-रययमयं कंडयं बीयं / / 17 // भावार्थ:-तेनुं एकहजार [ 1000 ] योजन प्रमाण- अने माटी शर्करारूप प्रथम कंडक छे अने अंक रत्न, स्फटिकरत्न अने कांचन [सुवर्ण] रजत [रूपा] मय मध्यमां रहेल बीजं कंडक छे / / 17 / / तेवद्विसहस्सजोयण-परिमाणं होइ बीयकंडस्स / तइयं छत्तीससहस्स-जोयणमाणं सुवण्णमयं / / 18 / / Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 162 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला __ भावार्थ:-जेनुं परिमाण तेसठ्ठहजार (63000.) योजननुं छे ते बीजुं कंडक अने त्रीजु कंडक सोनानुं छ तेनुं मान छत्रीसहजार (36000) योजन- छे / / 18 // तत्थ केण वि तियसेण एगो खंभो अणेगखंडाइं / काऊण चुण्णिओ ताव जाव अविभागिमो जाओ / / 19 / / / भावार्थ:-हवे ते मेरुपर्वतना क्रीजा कंडक उपर कोइ देवताए एक थांभलाना अनेकखण्डो करी एवं बारीक चूर्ण कयुं के जेना रजकणना बीजो भाग थइ शके तेवू रह्य नहि // 19 // , भरिमा 'महप्पमाणा निलया कलिया करेण सा तेण / पत्तो सुमेरुचूला-सिहरे सा फुसिआ तत्तो // 20 // भावार्थ:-त्यारबाद पृथ्वी जेवडी महाप्रमाणवाली नालिका (नली) मां ते चूर्ण भरी हाथमां लइ सुमेरुनी चूलिका उपर जइ त्यांथी ते देवे तेने फुकवडे करीने फुकी मूकयुं // 20 // उदंडपवणवसओ महापयासत्तओ य तिअस्स / अविभागमेत्तणेण य दिसोदिसं ते गया अणुया // 21 // भावार्थ:-उदंड (प्रचंड) पवनना झपाटाथी अने 1 महीप्पमाणा इत्यपि Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 परमाणुदृष्टांतः : देवना असाधारण पराक्रमीथी फेंकायेल ते अणुका (चूर्णना परमाणुओ) रूग कणियाओ जुदीजुदी दिशाओमां प्रसरी (फेलाइ) गया // 21 // पट्ठामि कयावि पुणो मिलिज्ज तेणू हविज्ज सो थंभो / इय पेच्छंतस्सवि से वाससहस्साइ गाई // 22 // भावार्थ:-ते अणुओ (परमाणुओ) पाछा माहोमाहे मलीने क्यारे स्तंभरूप थइ जशे एम जोतां देवने अनेक हजार वर्षो चाल्यां गयां // 22 // वोलोणाणं तेसि अणूण जोगो णयावि से थंभो / संजाओ तह एसा मणुआण चुओ मणुयभावो // 23 / / . भावार्थ:-आडाअवला चाल्या गयेला ते परमाणु ओनो परस्पर संयोग थइ फरीथी कोइपण रीते स्तंभ थवा न पाम्यो, तेवीज रीते गयेल मनुष्यभव फरी मनुष्योने प्राप्त थतो नंथी // 23 // परमाणुखंभपीसण-सुरनलियामेरुखेवदिता / तग्घडणा वाऽणुचया मणुअत्तं भवसमुहंमी // 24 // ___भावार्थ:-परमाणुरूपे स्तंभने पीशी नांखी नलि. कामां भरी मेरुपर्वत उपरथी कोइ देवे फेंक्यो, परंतु . फरी तेवी थांभलानी घटना थइ न शकी, आवा भाववालो' उपरनो दशमो दृष्टांत संसारसमुद्रमां . Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 164 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला मनुष्यपणानी दुर्लभता उपर बस छे // 24 // अत्रोपनययोजना यथा अहीया दृष्टान्त घटावे छे, जेमजह सेा जंबूढ़ीवो तह जिणपण्णत्तधम्मसासणओ। जह मंदरगिरिचूला तह धम्मासेवणा जाण // 25 // भावार्थ:-जंबूद्वीपसमान जिनप्रणीतधर्म अने मेरुपर्वतनी चूलिका समान धर्मसेवना जाणवी // 25 // जह देवो तह भव्वत्त-परिणामो सुंदरो मुणेअव्वो / थंभुव सुसम्मत्तं अणेगगुणाणूहिं पडिपुण्णं // 26 // भावार्थ:-देव समान सुंदर भव्यत्वपरिणाम जाणवू अने स्तंभ जेवं सम्यक्त्व. ते अनेक गुणरूपं परमाणुओथी परिपूर्ण भरेलं जाणवू // 26 // उम्मग्गवयणघरट्ट-पट्टेहिं पोसिओ तहा थंभो / संका नलिया जं तंमि जोइज्जा तत्थ कइयावि // 27 // विगहाकसायअइखर -पवणपयारेहि सणक्खंभो / पइअणुयं तह पिट्ठो जहा पुणो होउं दुस्सक्का / / 28 / / भावार्थः-उन्मार्गवचनरूप घरट्टपाषाणथी ते थांभलाने पीशी नांख्यो, अने शंकारूप नलीमां भरी फेंकेला क्यारेक विकथाप्रमादरूप अतिप्रचंड पवनना झपाटाथी विखराइ गयेला दर्शनस्तंभना परमाणुओ Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 परमाणुदृष्टांतः : : 165 फरी मली स्तंभरूपे थाय ते घणुं अशक्य छे / 28 / एवं मणुअभबंमि सम्मत्तं पाविऊण निग्गमियं / खंभस्साणुयपीसण-ट्टितेणेव तं दुलहं / / 29 / / भावार्थ:-आ प्रमाणे मनुष्यभवमां प्राप्त थयेल सम्यक्त्व चाल्युं गयँ तो उपर कहेल थांभलाना जुदा पडेल परमाणुओ फरी पाछा मली थांभलारूप थवाना दृष्टांतथी फरी मलq अति अशक्य छ / 29 / इय दसमो दिदुतो परमाणुअणामओ मए विणिद्दिद्यो / नरभवलद्धट्टाए लिहिओ पवयणसमुद्दाओ / / 30 // भावार्थ:-आ परमाणु नामनो दशमो दृष्टांत मनुष्यजन्मनी दुर्लभता उपर शास्त्रसमुद्रमांथी लइ में (नयविमले) अहिं निर्देशेल (देखाडेल) छे // 30 // सिरिविजयप्पहसूरि-रज्जे सिरिविणयविमलकविराया। सिरिधीरविमलमंडिय-सीसेण गयाइविमलेण // 31 // भावार्थ:-श्रीविजयप्रभसूरीना राज्यमां श्रीविनयविमलगणि कविराज थया ने तेओना शिष्य श्री धीरविमलगणि पंडित थया, तेओना शिष्य में (नयविमले) आ (दशमा दृष्टांतनी) योजना करेल छे // 31 // Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 166 : : नरभवदितोवनयमाला // इति श्रीमत्तपागणगगनाङ्गणदिनमणिभट्टारकश्रीमदालन्दविमलसूरीश्वरसुशिष्यपण्डितहर्षविमलगणिशिष्यपण्डितजयविमलगणिविनेयपण्डितकीतिविमलगणिशिष्यपण्डितविनय- . विमलगणिशिष्यपण्डितधीरविमलगणिसुगुरुपादारविन्दपञ्चरीकायमाणपण्डितनयविमलगणिरचितायां नरभवदृष्टान्तोपनयमालायां परमाणुनामा प्रधमदशमो दृष्टान्त-सम्पूर्णः // 10 // Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / / अथ परमाणुनामा द्वितीयदशमो दृष्टांत: // आवश्यकचूर्णे त्वन्यथा ब्यख्यातोऽस्ति, तथा हि भावार्थ:-श्री आवश्यकसूत्रनी चूर्णीमां दशमा दृष्टांतनी व्याख्या जुदी रीते देखाडेल छे, ते आ प्रमाणेइह काइ सहा महई अणेगखंभसयसनिवेसिल्ला / कालेण जलणजाला-करालिया पाविया पलयं // 1 // भावार्थ:-आ जगतमा कोइएक विशाल तेमज अनेक हजार स्तंभोनी रचनावाली सभा हती, ते सभा कोइवखते लाय ( अग्निवडे करीने घरबलवू ) थवाथी सर्वथा नाश पामी // 1 // कि सा होज्ज कयाइवि इंदो चंदोऽहवा मणुस्सिदो। जो तं तेहिं अहिं पुणोवि अहदुग्घडं घडिही / / 2 / / भावार्थ:-जो इंद्र, चन्द्र के मनुष्येन्द्र ते परमाणुओथीज ते सभाने बनाववानो यत्न करे तोपण शुं तेवी ? अने ते सभा बनी शके खरी, पण तेवी सभा तो बनवी अशक्य छे // 2 // जह तेहिं चिय. अणुएहि सा सभा दुक्करा इह घडेउं / तह जीवाणं विहडिय-मित्तो मणुयत्तणं जाण // 3 // Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 168 : : नरभवदिलुतोवनयमाला भावार्थ:-जेम जुदा पडेला ते परमाणुओथौ सभानुं निर्माण (बनवू) फरी अशक्य छ, तेम हस्तथी चाल्युं गयेलं मनुष्यपणुं जीवोने फरी मलवं असंभव नहि तो अशक्य अवश्य छ / / 3 / / जह सूद्धधम्मसाला अणेगसम्मत्ततत्तगणखंभा / विसयकसायमहाणलजालेहिं जालिया सा वि // 4 // भावार्थ:-अनेक सम्यक्त्वादि गुणरूप स्तंभोथी सुशोभित शुद्ध धर्मरूप शाला छे, ते . पण विषयकषायरूप अग्निनी ज्वालाथीं बली नाश पामी गइ // 4 // सा होउं पुण दुलहा नरिंदवंदेहिं पुण्णहीहिं / पावेअव्वा दुक्कर-दसदिट्ट तेहि भासिल्ला / / 5 / / . // इत्यपि दृष्टान्तोऽस्ति // भावार्थ:-तो पछी पुण्यहीन प्राणीओथी फरी तेवी शुद्ध धर्मशाला थवी अशक्य छ, तात्पर्य ए छे के उपरना दश दृष्टांतोथी स्पष्ट जणाय छे के प्रकाश आपनारी शुद्ध धर्मशाला फरी पामवी कठीन छ / 5 / भावार्थ:-आ जुदी रीतनुं दशमुं दृष्टांत श्री भावश्यक सूत्रनी चूर्णीमां कहेल छ / Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दृष्टांतोपसंहारोपदेशः : // दृष्टान्तोपसंहारोपदेशः / / दिट्ठतभावपत्ता दसावि दिढ़तया अवितहत्था / उवयणगुणसंजुत्ता एए वुत्ता नरभवंमि // 1 // भावार्थ:-मनुष्यजन्मनी दुर्लभता उपर उपनयसहित खरा अर्थवाला उपरना दश दृष्टांतो कह्या, जेओ बराबर दृष्टान्तपणाने धारण करनारा छे / / इय दुल्लहलभं माणुसत्तण पाविऊण जो जीवो / न कुणइ पारत्तहियं सेा सायइ संकमणकाले // 2 // भावार्थ:-आ जगतमां जे मनुष्य महामहेनते पामी शकाय तेवा मनुष्यपणाने प्राप्त करो पारलौकिक हित एटले परलोकमां हितकारी धर्म नथी करतो ते छेवटने वखते पश्चात्तापने करनार थाय छे // 2 // जह वारिमज्जबूडोव्व गयवरो मच्छउव्व गलगहिओ / वग्गुरपडिउव्व मओ वाइग्गहिओ जहा मणुओ // 3 // सो सायइ 'मच्चुजरा समच्छओ तुरियनिद्दए खित्तो / नायारविदंतो कम्मभरपर्णोल्लिओ जीवो // 4 // ____भावार्थ:-कादवमां खुंची गयेल हाथी अने जालमां सपडायेल माछलं तेम जालमा फसायेल हरिणीयानी पेठे व्याधिथी ग्रस्त [घेरायेल] थयेल तेमज घडपण, मृत्यु अने छेवटनी निद्राथी दबायेलो, . 1 मच्छु इत्यपि / Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 170 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला कर्तव्यने नही जाणतो अने कर्मना परिणामथी प्रेरायेलो मनुष्य पण शोक करे छे / / 3-4 // काऊणमणेगाई जम्मणमरणपरियट्टणसयाई / . दुक्खेण माणुसत्तं जह लहइ जहिच्छियं जीवो // 5 // भावार्थः-जन्म, जरा, मरण अने पर्यटनोना अनेक फेराओ करी जेम घणी मुश्केलीथी इच्छामुजब मनुष्यपणुं मेलवाय छे // 5 // तं तह दुल्लहलंभं विज्जुलयाचंचलं च मणअत्तं / लद्धण जो पमायइ सो काउरिसो न सप्पुरिसो // 6 // ____ भावार्थः-तेम विजलीना स्फुरणो (झबकारा) जेवं चंचल अने दुर्लभ मनुष्यपणुं पाम्याबाद जो तेने व्यर्थ गमावी देवामां आवे तो खरेखर ते प्राणी सत्पुरुष नथी किंतु कापुरुष (नीच) छे // 6 / / जिणवरजिणगणिगणहर-हरिचक्किबलाइपुरिसनामाणं / लाहो मणुअगइंमि तेणं चिय उत्तमा मणुआ // 7 // . भावार्थ:-तीर्थंकर, सामान्यकेवली, गणि, गणधर, इंद्र, चक्रवत्ति, बलदेव, वासुदेव विगेरे पदवीओनो लाभ मनुष्यगतिमांज थतो होवाथी मनुष्यगति उत्तमोत्तम कहेल छे / / 7 / / मणपज्जवनाणकेवल-दसणणाणं तहा अहक्खायं / .. आहारगाइलाहो तेणं चिअ उत्तमा मणुआ // 8 // . Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दृष्टांतोपसंहारोपदेश: : : 171 भावार्थ:-मनःपर्यव, केवलज्ञान अने केवलदर्शन, यथाख्यातचारित्र अने आहारकशरीर ए मनुष्यगति शिवाय अन्य गतिमां न मली शकतां होवाथी मनुष्यगति अत्यंत श्रेष्ठ छे / / 8 / / जंघाविज्जाचारण-लद्धीविण्णाणसिज्झणाइया / लाहा मणु अभवंमि तेणं चिय उत्तमा मणुआ / / 9 / / भावार्थ:-जंघाचारण अने विद्याचारणनी लब्धी, विज्ञान, मुक्ति (मोक्षगमन) विगेरेना लाभो मनुष्यगति शिवाय अन्यगतिमां प्राप्त न थतां होवाथी अने मनुष्यगतिमां मलतां होवाथी मनुष्यगति उत्तमपणुं स्पष्ट छे // 9 // .. उत्तमसुपत्तदाणं चउरंगिजं च तहय धम्माणं / तह सव्वविरइलाही तेणं इह माणवा सिट्ठा // 10 // भावार्थः-उत्तमसुपात्रमा दान तेमज धर्मना चार अंगो (दान, शील, तप, भावना) तथा सर्वविरतिनो लाभ. मनुष्य गतिमांज थतो होवाथी मनुष्यगति अवश्य आदर्शरूप छे अर्थात् श्रेष्ठ छे // 10 // खेत्तकुलजाइभासा-दसणचारित्तणाणकम्माणं / अज्माण जत्थ लाहो तेणं चिअ उत्तमा मणुआ // 11 // भावार्थ:-उत्तमक्षेत्र, कुल, जाति, भाषा, दर्शन, Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 172 : : नरभवटुिंतोवनयमाला चारित्र, ज्ञानप्रमुख कार्योनो अने आर्यपुरुषोना मनुष्यपणासाथे संबंध होवाथी मनुष्यपणानी उत्तमता नि:संदेह सिद्धज छे / / 11 / / इच्चाइ जत्थ लाहा हवंति भव्वाण सव्वसुपसत्था / सुरगइविसेसरूवा तेणं चिअ उत्तमा मणुआ / / 12 / / . भावार्थ:-इत्यादि जेने विर्षे देवगतिथी पण विशेष प्रकारना उपर बतावेल सर्व सुप्रशस्तलाभोनो संभव होवाथी मनुष्यपणानी उत्तमता निःसंदेह सिद्धज छे, केमके देवगतिमां पण उपर कहेला प्रशस्तलाभो मली शकता नथी / / 12 / / लघृण माणुसत्तं धम्मेसु पमाययंति जे जीवा / लहिऊण कप्परुक्खं ते दुत्था जायणाहीणा / / 13 / / भावार्थ:-जे जीवो महामूल्यवान् मनुष्यभव पामीने प्रमादकरी खरा धर्मना लाभथी वंचित रही जाय छे तेओ कल्पवृक्ष पामीने पण माग्या विना दरिद्र रहेनार मनुष्यो जेवाज छे / / 13 / / अहवा अणोरपारे जलनिहिकल्लोलए सुनिम्मग्गा / बोहित्थं लक्ष्णवि अणिस्सिया ते जणा लोए / / 14 / / भावार्थ:-अथवा अपारजलथी भरेला समुद्रमां. डुबनाराओने नावडु मल्या छतां पण नहि नीकली शकनारा मनुष्य जेवा सम्यक्त्वने प्राप्त करीने Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दृष्टांतोपसंहारोपदेशः : : 173 गुमावनारा मनुष्यो आलोकमां प्रमादथी मनुष्यपणं गुमावनारा छे / / 14 / / अहवा विविहायंक-गत्था दुत्था नरा पमायपरा / लहिऊण सुहाकुंड मुहाकयं तेहिं धम्मविणं / / 15 / / ___ भावार्थ:-अथवा जे माणसो अनेक व्याधिओथी ग्रस्त (घेरायेल), विह्वल अने प्रमादने विषे तत्पर छ तेओए धर्म विना अमृतकुंड प्राप्त करी व्यर्थ गुमाव्या जेवू कयुं छे // 15 // जिणपवयणवरणंदण-वणाओ सरसाणि वयणकुसुमाणि / चिणिऊण कुसुममाला वण्णड्ढा गुंफिया एसा // 16 // भावार्थ:-जिनवरना प्रवचनरूप श्रेष्ठ नंदनवनमांथी सरसवचनरूप . पुष्पो चुंटो काढी वर्णसंपन्न आ पुष्पमाला गुंथेल * छे / / 16 / / जे सुद्धमग्गकहगा पसण्णचित्ता बहुस्सुया संता / गीयत्था गुणजुत्ता दायव्वा मालिया तेसि / / 17 / / भावार्थ:-जेओ शुद्धमार्गना उपदेशक (बतावनारा) प्रसन्नचित्तवाला, बहुश्रुत, गीतार्थ अने गुणी संतो छे तेओने आ माला आपवी // 17 // उवएसपऊवमिइ-भवप्पवंचाइपयरणसुखेत्ताओ। उच्छुव्व मए लिहिया गाहाहिमुवणया सव्वे // 18 // . भावार्थ:-उपदेशपद, उपमितिभवप्रपंचादि' Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 174 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला प्रकरणरूप श्रेष्ठ क्षेत्रमाथी उच्छु (सेलडो) नी वृत्तिनी पेठे शोधनबुद्धिथी मेलवी में ( नयविमलगणिए ) अहिं लख्युं छे // 18 // जं किंचि दोसदुटु हुज्जा इह बालविलसियं जम्हा / .. गुरुजणगीयत्थेहिं विसोहियध्वं खु तं सव्वं // 19 // भावार्थ:-बालचेष्टा होवाथी जे कांइपण दूषण आववा पाम्युं होय ते संघलं गुरुजन अने गीतार्थोए शोधी लेवें // 19 // गोयत्थपरिग्गहियं पयासमायाइ दुट्ठमविसिट्ठ / संपुण्णचंदगहिी ससओवि जणे पयासकरो / / 20 // भावार्थ:-गमे तेवू दोषयुक्त ने नालायक होय पण जो ते प्रकरण गीतार्थोवडे स्वीकाराय तो अवश्य विशेष प्रकाश पामे छे, केमके पूर्णचंद्रथी स्वीकारायेल ससलो पण लोकोने प्रकाश आपनारो थाय छे / 20 / एए दस दिट्ठता उवणयजुत्ता मए विणिद्दिट्ठा / . नरभवलट्ठाए लिहिया पवयणसमुद्दाओ // 21 // भावार्थ:-आ उपनययुक्त दश दृष्टान्तो प्रवचनसमुद्रमांथी लइ मनुष्यभवनी प्राप्तिनी दुर्लभता बतावी तेने प्राप्त करवानी समज आपवा अर्थे अहिं में (नयविमलगणिए) निर्देशेल [देखाडेल] छ / 21 / सिरितवगणरयणाकर-तरंगसंपुण्णचंदसारिच्छो / सुविहियमुणिजणचूडा-मणिभूओ भुवणजणपणओ // 22 // Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दृष्टांतोपसंहारोपदेशः : संजमगुणमणिमुगणा-मसमत्थो जत्थ विहारिओ / जस्स य कित्तिपडाया बिलसइ सद्धम्मोहुवरि / / 23 / / सिरिविजयप्पहसूरि-रज्जे सिरिविणयविमलकविराया / सिरिधीरविमलपडिय-सीसेण गएण गिट्टिा // 24 / / भावार्थ:-श्री तपागच्छरूप रत्नाकरना तरंगो वधारवा माटे संपूर्णचंद्रना जेवा सुविहितमुनिचडा. मणिभूत अने जगतना लोकथी प्रणमायेला अने जेमना संयमगुणरूप मणिरत्ननी परीक्षा जाणवा माटे विबुधनो [देवोनो] आचार्य बृहस्पति पण असमर्थ छ, वली जेनी कीर्तिरूप पताका (ध्वजा) सारा धर्मरूप घर उपर विलास करे छे (लहेकी रही छे) तेवा श्रीविजयप्रभसूरीश्वरना राज्यमा श्री विनयविमलगणि कविराज थया अने तेमना शिष्य पंडितश्रीधीरविमलगणि थया अने तेमना शिष्य पंडितन्यविमलगणिवंडे आ नरभवदृष्टान्तोपनयमाला निर्देशायेल (देखाडेल) छे / / 22-23-24 / / जाव य जंबद्दीवो जाव य गहगणविभूसिओ मेरु / ताव य उवणयमाला कुसलेहिं बाइया चिरं जयउ / / 25 / / भावार्थ:-ज्यांसुधी जंबुद्वीप रहे अने ज्यांसुधी ग्रहगण (समूह)थी विभूषित मेरुपर्वत रहे त्यांसुधी पडितोथी वंचायेल आ 'नरभवदृष्टान्तोपनयमाला' सदाकाल (यावञ्चंद्रदिवाकरौ) जयवंती वर्तो // 25 / / Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 176 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला पंचसया सगवण्णा [557] गाहापरिमाणमित्थ गिट्टि / सिरिपासणाहणाम-प्पहावओ मंगलं णिच्चं // 26 // भावार्थ:-आ प्रकरणमां पांचसे सत्तावन (557) गाथान प्रमाण निर्दिष्ट (देखाडेल) छे अने जे भव्य आ ग्रंथने भणशे, गुणशे अने अन्य भव्योने संभला ते भव्योने 'श्रीपार्श्वनाथस्वामि मा नौमना प्रभाथी हमेशा मंगल (कल्याण) रहे // 26 // // इति श्रीमत्तपागणगगनांगण दिनमणिभट्टारकश्रीमदभन्दविमलसूरीश्वरसुशिष्यपण्डितहर्षविमलगणिशिष्यपण्डितजयविमलगणिविनेयपण्डितकीर्तिविमलगणिशिष्यपण्डितविनयविमलगणिशिष्यपण्डितधीरविमलगणिसुगुरुपादारविन्दचञ्चरीकायमाणपण्डितनय विमल___ गणिरचिता नरभवदृष्टांतोपनयमाला, सम्पूर्णः // RAND ROOD HD // इति सिरिनरभवदिटुंतोवनयमाला सम्मत्ता / / HEN PORNHARHAARENA Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - भंडार उपयोगी संस्कृत ग्रंथो - 1 छन्दामृतरसः 2 धनञ्जय नाममाला 3 अनेकार्थसंग्रहः सटीक भाग-१ 4 , भाग-२ 5 उपासकदशा टीका 6 अंतकृत अनुत्तरोपातिक टीका 7 आचारांग टीका भाग-१ भाग--२ 9 शांतिस्नात्रादिविधि समुच्चय 10 अनेकार्थ संग्रहः भाषांतर 11 रघुवंश मूल सर्ग टीका ' 12 कुमार संग्रह मूल (2 सर्ग टीका) 1613 किरातार्जुनीय मूलं (3 सर्ग टीका) 1614 शिशुपालवधं (2 सर्ग टीका) 15 नैषधीयकाव्य मूलं (1 सर्ग टीका) 35-0 16 रघुवंश कुमारसंभव किरातार्जुनीय शिशुपालवध नैषधीय मेघदूत काव्यषटकं [1000 पृष्ठ 150-6 17 मेघदूतमूल (पूर्वमेघटीका) 1018 योगशास्त्र [भाषांतर 25-0 19 वैराग्यशतकादि शतकत्रय टीका 20-0