________________ : नरभवदिटुंतोवनयमाला मलता बावीस भेद थया / / 18 // बित्तिचरिदितिविगला-पज्जापज्जत्तजुत्तछन्भेया / जलथलखयरोरग भुवगा य पणिदि य तिरक्खा // 19 / / सण्णिअसण्णिपज्जा-पज्जयभेऐहि वीसपेचिदी / कम्माकम्मगंतर-मणुया दुय समुच्छिमा सत्त // 20 // नारयपज्जापज्जापरमा पणदस य वंतरा सोल / . जोइस पण दस भवणा किविसा तिणि विमाणा // 21 // अट्टोतरसय जीवाण खाणी एसि च अस्सि. णायन्या / कम्मट्ठपयडिमिच्छत्त-इंदियणोइंदियसरूवा / / 22 / / भावार्थ:-बेइंद्रिय, तेइंद्रिय, चतुरिंद्रिय ए त्रण विकलेंद्रियना पर्याप्ता अपर्याप्ता मली छ भेद, जलचर, स्थलचर, उरपरि, भुजपरि, खेचर ए पांचना संज्ञी असंज्ञी, पर्याप्ता ने अपर्याप्ता. एम चार प्रकारे गणता वीस भेद पंचेन्द्रिय तिर्यंचना थया, कर्मभूमि, अकर्मभूमि ने अंतरद्वीपना मनुष्योना बबे भेद गणतां अने समूछिम मनुष्य मली सात भेद थया, नारकीना पर्याप्ता ने अपर्याप्ता, परमाधामी पंदर, व्यंतर सोल, ज्योतिष पांच, भवनपति दश, किल्बिष त्रण अने वैमानिकना बे भेद मली कुले एकसोआठ जीवनी खाणीओ जाणवी, आठ कर्मनी प्रकृति मिथ्यात्व, इन्द्रिय अने नोइंद्रियरूप हास्या (खूणा)ओ जाणवा // 19-20-21- 22 //