________________ 4 धुत दृष्टांत : खाइयदंसणचारित्त-अक्खेहि परोप्परं रमति सया / जइ लभइ जयवायं लहइ तया केवलं रज्जं // 23 // भावार्थ:-क्षाषिकसम्यक्त्वने चारित्ररूप पासाओथी अंदरो अंदर हमेशां रमे छे, जो जयनो दाव नाखे छे तो जय पामी केवलज्ञानरूप राज्यने मेलवे छे // 23 // पावेज्जइ नो फहमवि दुट्ठसुएण य जहा जणयरज्जं / तह दुट्ठजोगतणुएहिं न लहिज्जइ अप्पपगइवररज्जं // 24 // भावार्थ:-जेम दुष्टपुत्र पोताना राज्यने कोइपण रीते मेलवी शकतो नथी. तेम दुष्टयोगोथी आत्मान स्वाभाविक रमणरूप श्रेष्ठ राज्य मेलचो शकातुं नथी / / 24 / / विट्ठ तो य चउत्थो जूयगनामा मए विणिहिट्ठो / परभवलद्धट्टाए लिहिओ पवयषसमुहाओ // 25 // भावार्थ:-आ प्रमाणे जूवटानो चोथो दाखलो मनुष्यजन्मनी दुर्लभता उपर शास्त्रसमुद्रमांथो लइ में संक्षेपमा निर्देशेल छे एटले देखाडेल छे / / 25 / / सिरिविजयप्पहसूरि-रज्जे सिरिविणयविमलकविराया। सिरिधीरविमलपंडिय-सीसेण णयाइविमलेण // 26 //