________________ 4 द्युत दृष्टांत : भाषार्थ:-जेम त्यां राजा छे तेम अहिं भव्यजीव जाणवो, ने आस्तिक्यनगर- राज्य जाणवं. शुभमति रूप रमणीमां रक्त (आसक्त) छे, विवेकरूपमंत्री सारा गुण धरावनारो भव्यरूप राजा पासे छे / / 15 / / तस्स य जह दुट्ठसुओ दुट्टा तह कायवयणमणजोगा / दुमणा. नियजणउवरि णिच्चं दुल्झाणसंपुण्णो // 16 // भावार्थ:-दुष्ट पुत्ररूप मनवचनकायाना दुष्ट योगो जाणवा, ते पोताना जनकरूप (पितारूप) भव्यजीव उपर हमेशां दुर्व्यानवाला ज रहे छे / / 16 / / जह चित्तसहुव्व पवयण-साला विमला दुवालसंगी य / अठ्ठत्तरसयमुना उप्पत्तिखणी य जीवाणं // 17 // भावार्थ:-जेम राजाने चित्रसभा हती तेम अहिं प्रवचन (आगम) रूप महेलमां विशाल द्वादशांगरूप शाला जाणवी जेमां एकसोआठ 108 स्तंभरूप भव्य जीवोनी एकसोआठ. 108 उत्पत्ति खाणो कही छे // 17 // भूजलजलणानिलवण-सुहमियरमेय भिण्णदसभेआ / पज्जापज्जपबीसं पत्तेय जुएहिं दुगवीसं / / 18 / / भावार्थ:-पृथ्वी, पाणी, अग्नि, वायु ने वनस्पतिकायना सूक्ष्म अने बादर एम दश भेद, तेना पर्याप्ता ने अपर्याप्ता एम वीस भेद, प्रत्येकवनस्पतिना बे भेद