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________________ 7 राधावेध दृष्टांत: : : 129 सुणगाणं सीहाणं कज्जे पडिए अ अंतरं लहए / भिदइ गयवरकुंभाइ मुत्ताहलपूरियकरग्गो 1 // 50 // भावार्थ:-श्वान (कुतरा) अने सिंहोनें अंतर कार्य पडे ज जणाय छ, सिंह पोताना पंजावडे गजमुक्ताथी भूषित करता हस्तिओना कुंभस्थलोने विदारे (फाडे) छे // 50 // इयरो भिदइ निययं मयजंबूयाणमट्टिसंघायं / दीवस्स य धूमस्स एगुप्पत्ते वि जह पइच्छो // 51 / / भावार्थ:-बीजा जे कुतराओ होय छे ते तो पोताना के मृग (हरिण) शियालीआओना हाडपिंजरो चुंथे छे, तेमज एकज पात्रमा छतां दीवाने धूमाडानो भेद अति स्पष्ट छे / / 51 / / एगा रयइ पयासं अण्णो लोयाण दिद्विमुद्धइ / तह पिच्छह नरचंदा ! सुयदुस्सुयनाणववहाणं / / 52 / / भावार्थ:-ज्यारे एक दीपक प्रकाशनी खामीने दूर करे छे त्यारे धूमाडो लोकानी आंखोने आंजी दइ मुंझावी दे छे, तेटलामाटे हे राजाओ! तमो सारा पुत्रोनुं अने कुपुत्रोनुं सारा अने नरसा शिक्षणनुं अंतर ध्यानपूर्वक जुओ / / 52 / / रण्णा भणियं को? पुण समप्पियं मंतिणा तओ पत्तं / तं बाईऊग रण्णा पियं पियं होऊ तेणावि // 53 //
SR No.004393
Book TitleNarbhavdrushtantopnaymala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1996
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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