________________ 130 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला भावार्थ:-त्यारबाद राजाए कह्य हे प्रधान ! मारे तेवो हंशीयार पुत्र ते कोण छे? मंत्रीए पोतानो लखेलो पत्र आप्यो के तुरत ज राजाए वांची कह्य के 'अस्तु' तेनाथी पण जो आपणी लाज रहे तो ठीक ! // 53 // अच्चंतपाढिएहि वि इमेहि पावेहिं जं समायरियं / सोवि हु तमायरिस्सइ धीद्धी! एवंविहसुएहिं / / 54 // __भावार्थः-परंतु विशेष अभ्यास कराव्या छतां पण आ पापी पुत्रोए जे कर्यु छे, तेवू ज कदाचित् ते पण करे तो आवा प्रकारना पुत्रो केवल तिरस्कारने ज पात्र छ / // 54 // जइ पुण तुह निबंधो विण्णाणमणुन्भुओ तहा सोवि / तो मंतिणोवणिओ सुरिददत्तो स 'उवज्झाओ // 55 / / ___भावार्थ:-तेम छतां हे मंत्रि! तारो आग्रह होय अने तेनु कलाकौशल्य बराबर जाणीतुं होय तो भले ते प्रस्तुतकार्य करे, राजाना आदेशथी मंत्रिए तेना गुरुसाथे सुरेंद्रदत्तने सावधान रहेवा माटे का // 55 // अह तं भूमिवइणा विचित्तपहरणपरिस्समं किणगं / . उच्छो विणिवेसिय पियं पियं जायतोसेण // 56 / / 1 सउज्झाओ इत्यपि पाठः /