________________ 142 : : नरभवदिठूतोवनयमाला भावार्थ:-तेज वखते दैवयोगे सेवालना पडलमां एक काणुं पडी गयुं हतुं ते द्वारा . ते काचबे पूर्णिमानी स्वच्छ रात्रीमां उगेल परिपूर्ण चंद्रने जोयो // 4 // जोइसचक्काणगओ निन्भरगयणस्स मज्झभायंमि / खोरमहोयहिलहरी समजोहाहावियदिसोहो // 5 / / भावार्थ:-जे ज्योतिषचक्रोना वचे. बिराजमान अने विशाल गगनतलना मध्यभागमां स्थित (रहेल) तेमज क्षीरोदधि (क्षीरसमुद्र)नी लहेर जेवी चांदनी वडे संपूर्ण दिशाओने उज्वल करनार हतो / / 5 / / आणंदपूरियत्थो तो चितइ कत्थ ? वा किमेयंति ? / किं नाम एस सग्गो कि ? वा अच्चम्भुयं किमवि ? // 6 // भावार्थ:-आवा चंद्रमंडलने जोइ ते काचबो आनंदपूरित हृदयथी विचारवा लाग्यो के-हुं क्यां आव्यो ? अने आ शुं छे ? अथवा शुं आ स्वर्गज छे ? के कांइ बीजू ज तेवं अतिअद्भुत आश्चर्य छ ? // 6 // किं मम एगस्स पलो-इएण? दंसेमि सयललोयस्स। . इय चितिय निव्वुडो तेसिमण्णेसणनिमित्तं / / 7 / / भावार्थ:-आ चंद्रमंडलने मारा एकना जोवाथी