________________ 7 राधावेध दृष्टांत : : 119 ते वि सिरिमालीपमुहा रण्णो पुत्ता न किंचि वि पढंति / थेवंपि कलायरियेण ताडिया निययजणणोण / / 15 / / साहिति रोयमाणा एवं एवं च तेण भणियम्हे / अह कुवियाहिं भणिज्जइ ओझाओ रायमहिलाहिं // 16 // हे कवडपंडिय ! सुए अम्हाणं कीस हणइ निलज्जं / पुत्तरयणाई जह तह न होंति एवं पि नो मुणसि / / 17 / / भावार्थ:-श्रीमालीप्रमुख ते राजाना पुत्रो काइ पण अभ्यास करता न हता, तेथी अध्यापके थोडीएक ताडना तर्जना करी तेथी ते राजपुत्रोए पोतपोतानी माताओ पासे आ बाबतनी फरीयाद करी अने का के-हे पूज्यमाता ! आ अध्यापक अमोने ताडना तर्जना आदि करे छे आ वात सांभली अज्ञान माताओए गुस्से थइ अध्यापकने का के-हे कपटपंडित! अमारा .पुत्रोने बेशरम थइ शामाटे हणे छ ? शुतु ए वात नथी जाणतो ? के पुत्ररत्नो ज्यां त्यां मली शकता नथी / / 15-16-17 // पज्जत्तं तुज्झ पाढण-विहीए अच्चतमूल विहलाए / जो न सुए थेबंपि हु ताडतो वहसि अणुऊपं // 18 // भावार्थ:-अत्यंत ढीला मूलवाली आ तारी भणाववानी रीति नकामी छे. कारण के तुं पुत्रोने ताडनातर्जनादि करता थोडी पण अनुकंपा (दया) राखतो नथी / / 18 //