________________ 120 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला इयताहि फरुसवयहि तज्जिएणं उवेहिया गुरुणा / . मच्चतमहामुक्खा ताहे जाया नरिंदसुया / / 19 / / - भावार्थः-आ प्रमाणे ते राणीओना कठोर वाक्योथी उपाध्याये पण तेणीओना पुत्रो प्रत्ये उपेक्षा करी, अंते तपासतां परिणाम ए आव्युं के तमाम राजाना पुत्रो शिक्षणविनाना होइ अत्यंत महामूर्ख थया // 19 // राया वि वयमित्तं अयाणमाणो मणमि चितेइ / अच्चंतकलाकुसला मम चेव सुया परं एत्थ // 20 // भावार्थ:-परंतु राजां आ हकीकतने जाणतो न होवाथी एम धारतो हतो के आ जगत्मां म्हाराज पुत्रो कलाकुशलने विषे अत्यंत हुंशियार छे // 20 // सो पुण सुरिददत्तो कलाकलावं अहिस्जिओ सयलं / अगणतो विहु समवय-चेडरूवंपि 'पत्थहं // 21 // भावार्थ:-आ तरफ सुरेंद्रदत्त समस्त प्रकारनी कलाकौशल्यताने जाणो अभिज्ञ (विशेष रुचिवालो) थयो, ते एवो तो बुद्धिमान अने चतुर हतो के समान वयना अने साथे अध्ययन करनारा चार दासीपुत्र [अग्निदत्तादि] ने बिलकुल गणंतो नहि // 21 // 1 पच्छ्रह मित्यपि पाठः