________________ 7 राधावेध दृष्टांत: : : 121 अह महुराए नयरीए पव्वयनराहिवो निययधूयं / पुच्छेइ पुत्ति ! तुह वरो जो रोयइ तं पयासेइ / / 22 / / भावार्थ:-एटलामां मथुरा नामनी नगरीमा पर्वत नामना राजाए लग्नने योग्य थयेली पोतानी पुत्रीने पुछयु के-हे पुत्रि! जे वर तने इष्ट होय ते तुं खुशीथी तेने प्रकाशकरी आप // 22 // तीए पयंपियं ताय ! इंददत्तस्स संति या पुत्ता / सुच्चंति कलाकुसला सूरा धीरा सुरूवा य / / 23 / / भावार्थ:-पूत्रीए उत्तरमा कह्य के-हे तात ! इंद्रदत्तनरेशने जे पुत्रो छे, ते सघला कलाकुशल, शूरवीर, धैर्यवान् (हिंमतवाला) अने सर्वोत्कृष्टरूपवाला संभलाय छे / / 23 // तेसि एक्कं सुपरि-क्खिऊण राहावेहाइविहिणाहं / जइ भणसि ताय ! से चिय पाणिग्गहणं करेमि तओ // 24 // भावार्थ:-तेओमांथी एकनी राधावेधनी विधिवडे करीने परीक्षा कर्या पछी जो आपश्री कहेशो तो हुं ते राजकुंवरनुं पाणिग्रहण करीश / / 4 / / पड़िवष्णं नरवइणा ताहे पउराए रायरिद्धीए / सा परिगया पयट्टा गतुं नयरंमि इंदपुरे / / 25 / / भावार्थ:-राजाने आ वात गमवाथी तेणे स्वीकार्यु