________________ 122 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला अने प्रचुर (अत्यंत) समृद्धि साथे ते राजकुंवरी इंद्रपुर नगर तरफ जवा माटे नीकली पड़ी / / 25 / / तन्वयणं सोऊणं पिऊणा तुट्ठण कण्णगट्टाए / कारविया नियनयरी उन्भवियविचित्तधयनिवहा / / 26 / / ____ भावार्थ:-आ वातनी जाण थवाथी इंद्रदत्तनरेशे खुश थइ राजकन्या . पोतानी मेले माहरा पुत्रोने परणवाने आवे छे तेटला माटे पोतानी नगरीने अनेक प्रकारनी ध्वजापताकाओथी शणगारी सुशोभित करावी / / 26 / / अह आगयाए तीए दवाविओ सोहणो य आवासो / भोयणदाणप्पमुहा विहिया गुरुउचियपडिवत्ती / / 27 / / ___ भावार्थ:-तेटलामां ते राजकुंवरी पण आवी पहोंची, राजाए तेणीने रहेवा माटे एक भव्य अने सारो प्रासाद (महेल) सोंप्यो, अने भोजन विगेरेथी समयने योग्य सत्कार करवामां कृपणता न करी / 27 / विण्णत्तो तीए निव्रो राहं जो विधिहि सुओ तुज्झ / सो च्चियं में परिणेही इइ पइण्णा ममं अत्थि // 28 // भावार्थ:-राजपुत्रीए नरेशने निवेदन कर्यु. केहे राजन् ! तमारा पुत्रोमांथी जे राधावेध करे तेने हुं परणीश, आ प्रमाणे मारी प्रतिज्ञा छे / / 28 / /