________________ 94 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला भावार्थः-अचलसार्थवाहे गणिकाने का केमारे आ ठेकाणेज स्नान कर छे, तेना उत्तरमा गणिकाए कह्य के-शय्यामां स्नान करी नकामो शय्यानो बगाड शामाटे करो छो? // 34 // मझं चेव विणस्सइ न उणो तुह किंचि किवि सुरेसि / पारदो ण्हाणविही अभंगुब्वट्टणाइओ // 35 / / . भावार्थ:-अचले प्रत्युत्तरमां जणाव्युं के तने खेद करवानुं कशं पण कारण नथी, जे बगडे ते मारुंज छे, त्यारबाद अभ्यंग विगेरे स्नानविधि प्रारंभ्यो / 35 / कलसपलोट्टणसमये पारद्धो चितिउं तओ इयरो। ही! ही ! वसणाण वसो वसणाई जउभवंतेवं / / 36 // . भावार्थः-अने पापोनो लोटो डोलवानो वखत आव्यो के मूलदेवने विचार थयो के धिक्कार छ ! व्यसनी मनुष्योने! जेओ बुरी आदतोने ताबे थई तरेह तरेहना दुःखो भोगवे छे / / 36 / / विडउव्व सलिलभिण्णो निग्गच्छइ जाव ताव अयलेण / अयलग्गकरेण सिरे गिहियकेसेसु भणिओ सा // 37 / / भावार्थः-वृक्षनी पेठे पाणीथी भीनो थयों के तुरत ज गभराइ पलंग नीचेथी मूलदेव बहार नीकली आव्यो, परंतु सार्थवाहे मजबुत हाथथी केशो पकडी तेने का के