________________ 50 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला हुं जीतुं तो सत्यवचनमां स्थिर रही मात्र हारनार पासेथी एकज सोनामहोर लइश // 37 // एयारिसं तं पडहं सुणेता समागया तत्थ बहुमहेन्मा। घणत्थिणो लोहवसा परुप्परं / कोलंति अक्खेहि चणिक्कसिद्धि // 38 // भावार्थ:-ए प्रकारना ते ढंढेराने सांभलीने धनना लालचु मोटामोटा धनाढ्यो लोभवश थइ त्यां आव्या ने चाणाक्यनी साथै पासाओथी रमवा लाग्या / 38 // पयट्टइ जूयमहं निरग्गलं मिगाइ गो को वि अमच्चदक्खं / माणाइगालच्छि समज्जिया , तहिं अक्खप्पसाएण य कित्तिजुत्ता // 39 / / भावार्थ:- मोटु निरर्गल (रोकावटविनानुं) जूवटुं प्रवत्यु परंतु कोइपण चाणाक्यमंत्रिने जिती शक्तुं नथी, आ जूवटामा इजतसाथे बेहदलक्ष्मी ते चाणाक्ये मेलवी // 39 // सन्वेहिं लोएहि विजेउं दुक्करो * अक्खेहि दहि जहा चणिक्को / सम्मत्तजुत्ते मणुयत्तलंभे तहा नराणं खु भवण्णवंमि // 40 // भावार्थ:-जेम सघला मनुष्योथी पण दीव्य अनुकूल पासाओ साथे चाणाक्य जीतावो दुष्कर छे