________________ 2 पाशक दृष्टांत : तेवी रीते संसारसमुद्रमां सम्यक्त्वसहित मनुष्यजन्म पण मलवो घणो दुर्लभ छ / // 40 // देवप्पसाएण य कोवि दक्खो जिणाइ जूए मणुओ चणिक्कं / परं नराणं जिणधम्मजुत्तं नरत्ततंभे व न दंसषं तहा // 41 // भावार्थ:-काइ निपुण मनुष्य देवप्रसादथी कदाचित् चाणाक्यने जीते खरो पण जिनधर्मयुक्तमनुष्यपणुं तो मलवु अत्यन्तदुर्लभ छे / / 4 / / अनोपनययोजना यथा-- अहींया द्रष्टांत घटावे छे, जेमकम्मपरिणामराया तब्भज्जा कालपरिणइणामा / मोहस्स बंधु जेट्ठो लोयट्टिइ भयणीए लहुओ / / 42 // जह चणिक्को मंती दंसणमंती तहा मुणेयत्वो / कम्मपरिणामनरवइ-पासे मग्गेइ भविजीवो // 43 // उवमिइभवप्पवंच-गाथाओ तप्पवित्ति यया / तह चंदगुत्तुव्वजीवं दसणसचिवो य मग्गेइ // 44 / / भावार्थः-कर्मपरिणाम राजा छे, कालस्थिति तेनी स्त्री छ, मोहनो ज्येष्ठबंधु ने लोकस्थिति भगिनीथी नानो चाणाक्यमंत्रिरूप दर्शनमंत्रि जाणवो, कर्मपरिणामरूप राजा पासे भव्यजीवने मागे छे, उपमितिभवप्रपंच कथाथी आ कथानो सघलो प्रपंच