________________ 52 : : नरभवदिळूतोवनयमाला (विस्तार) जाणी लेवो, चंद्रगुप्त जेवा जीवने दर्शन सचिव मागे छे // 42-43-44 / / . सिकलाविया समन्या विण्णाणकला तहा हु भव्यस्त / .. चारित्तधम्मानरबह- सहायकज्जे तहा जाओ // 45 // भावार्थः-समस्तविज्ञानकला. भव्यने दर्शनमंत्रिए शीखवी तेमज चारित्रधर्मरूप नरपतिनी सहायता पण करी // 45 // पवयनिवुवुरालिय-वणुप्पवंचं सहायमासन्ज / दंसणमंतिबलेप य नंदुव्व हणिज्ज मिच्छत्तं // 46 // भावार्थ:-पर्वतराजा जेवा औदारिकशरीरनी सहायता मेलवी दर्शनरूप मंत्रिना बलथी मिथ्यात्वरूप नंदने हणे छ // 46 // नह पाडलिपुररज्जं चरित्तधम्मं तहा य निरवज्नं / सम्मत्तमप्पमत्तयसुणिम्मिया पासया तत्थ // 47 // . भावार्थ:-जेम पाटलिपुत्र नगरनुं राज्य तेम अहिं निरवद्यचारित्रधर्म जाणवो सम्यक्त्वने अप्रमादरूप पासा बनावेला जाणवा // 47 // अलैहि तेहि लोओ विणिज्जिओ सव्वओ विभवजूए / इंसणमाणगुणुक्कररयणेहिं पुरिमो कोसो // 48 // .