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________________ 53 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला भावार्थ:-ते पासाओवडे करीने विभवरूपजूवटुं खेलता समस्तलोकने जीती लीधो दर्शनज्ञानादिगुणोना समूहरूप रत्नोथी भंडार भरी दीधो / / 48 / / विक्खायकित्तीपसरो संजाओ रज्जकज्जसाहीणो / एवं चिय मणुयत्ते उवणयसंजोजणा जाण // 49 // भावार्थ:-जेनी कीति विशेष प्रसिद्ध थइ छ तेवो चंद्रगुप्त जेम राज्यकार्यमा विशेष स्वाधीन थयो तेम सम्यग्दर्शनरूप मंत्रिनी सहायताथी चारित्रधर्म रूप राज्यनी प्राप्ति करी भव्यजीव स्वतंत्र थाय छे आ प्रमाणे मनुष्यना दृष्टान्तनी उपनय योजना जाणी लेवी / / 49 / / इय बोओ दिट्ठ तो पासगणामा मए विणिद्दिवो / गरभवलट्ठाए लिहिओ पवयणसमुद्दाओ // 50 // . भावार्थ:-ए प्रमाणे पाशकनामा बीजो दृष्टान्त मनुष्यभवनी दुर्लभता उपर शास्त्रसमुद्रमांथी उद्धरी अहिं निर्देशेल छे / / 50 // सिरिविजयप्पहसूरि-रज्जे सिरिविणयविमलकविराया / सिरिधीरविमलपडियसीसेण णयाइविमलेण // 51 // भावार्थ:-श्रीविजयप्रभसूरिना राज्यमां श्रीविनय
SR No.004393
Book TitleNarbhavdrushtantopnaymala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1996
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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