________________ 86 : ': नरभवदिटुंतोवनयमाला फसाववामां पाशवागुरा (जाल) जेवी धनसंपन्न देवदत्ता नामे गणिका वसती हती // 4 // रायण्णकुलुप्पण्णो संपुण्णो रायलक्खणसहि / तत्थस्थि मूलदेवो धुत्तो पत्ता परं कित्ति // 5 // - भावार्थ:-ते ज नगरीमा राजन्यकुलोत्पन्न सेंकडो राज्यलक्षणोथी सहित विशेष ख्याति पामेलो मूलदेव नामे धूतारो हतो // 5 // धुत्ताणं तेणाणं वसणाणं कोउगाण कुसलाणं / विउसाण धम्मियाण य जो मूलसलाहणं लहइ // 6 // भावार्थ:-जे मूलदेव धूताराओमां, चोरोमां, कुटेवोमां, कुतूहलोमां, निपुणलोकोमां, विद्वानोमां अने धार्मिकोमा सर्वत्र प्रशंसा पामतो हतो // 6 // कंदप्पदष्पपणयं धिसयसुहं तस्स सेवमाणस्स / गणियाए देवदत्ताए सद्धि देवस्स जंति दिणा // 7 // भावार्थ:-कंदर्प ( काम )ना विकारथी प्रेममय विषयसुखने देवदत्तागणिकानी. साथे भोगवता ते मूलदेवना दिवसो व्यतीत थवा लाग्या // 7 // अहण्णया महूसव-समए उज्जाणकोलणनिमित्तं / अयलेण देवदत्ता दिट्ठा सह मूलदेवेण // 8 // .... . भावार्थ:-हवे कोइएक वखते वसंतमहोत्सवने