________________ // 5 // अथ पञ्चमो रत्ननामा दृष्टन्तः / / रयणकयाणगवस्स- उच्छलंतकित्तीए तामलित्तीए / आसी पमुइयचित्तो सागरदत्तेत्ति णामा य // 1 // भावार्थ:-रत्नोना व्यापारथी फेलायेल कीर्तिवाली तामलिप्तिनगरीमा प्रसन्न मनवालो सागरदत्त नामनो शाहुकार वसतो हतो // 1 // सो लाहट्ठमण्णयाइ नाणाविहवत्थुभरियबोहित्थो / रयणद्दीवमइगओ विहिओ रयणाण संजोगो // 2 // भावार्थ:-एकदा लाभमाटे अनेक वस्तुओथी भरेल वहाणने लइ रत्नद्वीपमा गयो ने त्यां भाग्ययोगे रत्नो पण मली आव्या // 2 // परियमणोरहो सो चलिओ जा एइ जलहिमझमि / णयरीए तामलित्तीए सम्मुहं ताव संपोयं / / 3 / / भावार्थ:-मनोरथ पूर्ण थनाथी ते त्यांथी चाल्यो, ज्यारे समुद्रमध्यमां तेनुं वहाण तामलिप्तीनगरी तरफ चालवा लाग्यं // 3 // पुष्णक्खएण भिण्णं अइगुहिरे तंमि सागरजलंमि / सव्वोवि रयणरासी दिसोदिसं विप्प इण्णो य // 4 // ___ भावार्थ:-त्यारे अकस्मात् पुण्यक्षयथी घणाउंडा समुद्रजलमां ते त्रुटी डूबी गयुं अंदर भरेल रत्नपुंज चारे तरफ विखराइ गयो // 4 //