________________ 68 : : नरभवतोदिटुंवनयमाला सोवि य समुदत्तो पावियफलगं कहंचि तीरंमि / लग्गो विसण्णचित्तो खारजलासीणसव्वंगो // 5 // भावार्थ:-ते पण समुद्रदत्त (सागरदत्त) शाहुकार एक पाटीउं मली जवाथी महामुशीबते कांठे आवी लाग्यो ते वखते तेनुं शरीर खारापाणीमा रहेलं होवाने लीधे बहुज नाराज चित्तवालो थइ गयो हतो // 5 // पारद्धं रयणाणं गवसणं तेण पउणदेहेण / जह तस्स रयणनिबहो दुलहो तह इत्थ मणुअत्तं // 6 // भावार्थ:-त्यारबाद तेजे गएल रत्ननी गवेषणा करवी शरु करी, जो के ते हवे पुष्टशरीरनो हतो तोपण तेने गएल रत्नराशी पाछी मलवी तो दुर्लभ ज छे तेवी रीते. आ मनुष्यजन्म पण दुर्लभ जाणवो // 6 // अत्रोपनययोजना, यथा- . हवे दृष्टान्त घटावे छे, जेमजह सेट्टी तह भन्यो सुगुरुसुधम्माइतत्तसंजुत्तो। इंसणगुणवररयणेहिं पुरिअअस्थिक्कबोहित्यो // 7 / / भावार्थ:-जेम श्रेष्ठी हतो तेम अहिं सद्गुरुसद्धर्मादितत्त्वयुक्तभव्यजीव जाणवो, सम्यक्त्वदर्शनरूप रत्नथी आस्तिक्यरूप वहाण भरेलु हतुः // 7 //