________________ 5 रत्न दृष्टांत : संजमरवणद्दीवं पत्तो पुण तत्थो गुरुजिणाणुकलाओ। आगमणयवररयणाण सोहणं भायणं जाओ // 8 // भावार्थ:-संयमरूप रत्नद्वीपे पहोंच्याबाद त्यां जिनदेव अने गुरुनी अनुकूलताथी सिद्धान्त अने नयरूप रत्नोनुं भाजन थयो / 1853 विगहोस्सुत्तमहानिल-उन्भडकल्लोलभीसणवसाओ / अस्थिक्कजाणवत्तं भग्गंमि गया रयणरासी / / 9 / / भावार्थः-विग्रह अने उत्सूत्ररूप प्रचंडपवनना वेगथी थएल भयंकर कल्लोलोने लीधे आस्तिकतारूप यानपात्र (वहाण) भांगी गयुं ने संयमरूप रत्नराशी गुम थइ गयो // 9 // . रुद्दे य भवसमुद्दे णिच्च परिभम्मुवागओ णिगोयगिहे / तस्स सुइरयणगणों दुलहो तह जाण मणुअत्तं // 10 // ____ भावार्थ:-भयानक संसाररूप समुद्रमां बहु भमीने निगोदरूप घरमां पाछो आव्यो परंतु जेम गयेल राशी दुर्लभ छे तेम मनुष्यपणुं अतिदुर्लभ छे / 10 / इय पंचमदिटुंतो रयणगणामा मए विणिद्दिष्टो / नरभवलद्धट्ठाए लिहिओ पवयणसमुद्दाओ // 11 / / भावार्थ:-ए प्रमाणे मनुष्यजन्मनी दुर्लभताउपर रत्ननामनो पांचमो दाखलो प्रवचनसमुद्रथी लइ में अहिं योजेल छे / / 11 / /