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________________ 2 : : नरभवदिद्रुतोवन यमाला ओमां मनुष्य गतिनुं स्थान सर्वोत्तम छे / / 2 / / . . मुद्धा सव्वंगाणं, तंमि मुहं तंमि दिविजुयलं च / तंमि पुण कसिणतारा, तहा गईणमि मणुयत्तं // 3 // ___ भावार्थ:-जेबी रीते शरीरना तमाम अवयवोमां मस्तक, मस्तकमां मोढानो भाग, मोढाना भागमा पण बे नेत्र अने नेत्रोमां पण कीकीनें स्थान उत्तरोत्तर विशेष महत्त्वनुं स्थानक छे, तेवो रीते तमाम गतिओमां मोटाइथी परिपूर्ण मनुष्यगति छे / / 3 / / जह खीरं सुरसाणं तओ, दहि मंगलं तओ विनवणीअं / सपि तओ विसिटुं, तहा विसिळं खु मणुअत्तं / / 4 / / भावार्थ:-जेम सुंदररसवाली वस्तुओमा दुध ने तेथी दहिं मंगलमय, तेथी पण मांखण, मांखणथी पण घृत (घी) विशेषथी विशेष श्रेष्ठ लेखाय छे, तेवी रीते मनुष्य पणुं पण विशिष्ठता धरावे छे / / 4 / / जह विउलं गयणयलं, जोइसचक्क तओवि बिहुबिबं / अमयं तओ विसिट्ठ, तहा गईणमि मणुअगइ / / 5 / / भावार्थ:-जेम गगनमंडल विशाल छे ने तेमां ज्योतिषचक्र रम्य छे, तेमां पण चन्द्रबिम्ब ने चन्द्रमानी मध्ये पण अमृत विशेष रमणीय छे. तेवी रीते सकल गतिओमां मानवगति विशेष उच्च ने उपयोगी छे // 5 //
SR No.004393
Book TitleNarbhavdrushtantopnaymala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1996
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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