________________ 168 : : नरभवदिलुतोवनयमाला भावार्थ:-जेम जुदा पडेला ते परमाणुओथौ सभानुं निर्माण (बनवू) फरी अशक्य छ, तेम हस्तथी चाल्युं गयेलं मनुष्यपणुं जीवोने फरी मलवं असंभव नहि तो अशक्य अवश्य छ / / 3 / / जह सूद्धधम्मसाला अणेगसम्मत्ततत्तगणखंभा / विसयकसायमहाणलजालेहिं जालिया सा वि // 4 // भावार्थ:-अनेक सम्यक्त्वादि गुणरूप स्तंभोथी सुशोभित शुद्ध धर्मरूप शाला छे, ते . पण विषयकषायरूप अग्निनी ज्वालाथीं बली नाश पामी गइ // 4 // सा होउं पुण दुलहा नरिंदवंदेहिं पुण्णहीहिं / पावेअव्वा दुक्कर-दसदिट्ट तेहि भासिल्ला / / 5 / / . // इत्यपि दृष्टान्तोऽस्ति // भावार्थ:-तो पछी पुण्यहीन प्राणीओथी फरी तेवी शुद्ध धर्मशाला थवी अशक्य छ, तात्पर्य ए छे के उपरना दश दृष्टांतोथी स्पष्ट जणाय छे के प्रकाश आपनारी शुद्ध धर्मशाला फरी पामवी कठीन छ / 5 / भावार्थ:-आ जुदी रीतनुं दशमुं दृष्टांत श्री भावश्यक सूत्रनी चूर्णीमां कहेल छ /