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________________ / / अथ परमाणुनामा द्वितीयदशमो दृष्टांत: // आवश्यकचूर्णे त्वन्यथा ब्यख्यातोऽस्ति, तथा हि भावार्थ:-श्री आवश्यकसूत्रनी चूर्णीमां दशमा दृष्टांतनी व्याख्या जुदी रीते देखाडेल छे, ते आ प्रमाणेइह काइ सहा महई अणेगखंभसयसनिवेसिल्ला / कालेण जलणजाला-करालिया पाविया पलयं // 1 // भावार्थ:-आ जगतमा कोइएक विशाल तेमज अनेक हजार स्तंभोनी रचनावाली सभा हती, ते सभा कोइवखते लाय ( अग्निवडे करीने घरबलवू ) थवाथी सर्वथा नाश पामी // 1 // कि सा होज्ज कयाइवि इंदो चंदोऽहवा मणुस्सिदो। जो तं तेहिं अहिं पुणोवि अहदुग्घडं घडिही / / 2 / / भावार्थ:-जो इंद्र, चन्द्र के मनुष्येन्द्र ते परमाणुओथीज ते सभाने बनाववानो यत्न करे तोपण शुं तेवी ? अने ते सभा बनी शके खरी, पण तेवी सभा तो बनवी अशक्य छे // 2 // जह तेहिं चिय. अणुएहि सा सभा दुक्करा इह घडेउं / तह जीवाणं विहडिय-मित्तो मणुयत्तणं जाण // 3 //
SR No.004393
Book TitleNarbhavdrushtantopnaymala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1996
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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