________________ 6 स्वप्न दृष्टांत : : 113 उस्सुत्तणिवसया पमायदहितक्कभोयणा तुट्ठा / निअनिअमाणागासे सुवंति ते सुविणलाहट्ठ // 102 / / भावार्थ:-उत्सूत्रनी निद्राने वश थइ प्रमादरूप दहीं ने तक (छाश) थी मिश्रभोजन करी पोताना मानरूप आकाश (खुल्लामेदान) मां स्वप्ननी आशाथी बिचारा अज्ञानीयो सुइ जाय छे / / 102 // उम्मग्गसारिणो ते णो लभिज्जति दसणं सुविणं / विसयसुहगिद्धियाणं दुलहो चारित्तधणलाहो // 103 // भावार्थ:-उन्मार्गने अनुसरता तेओने दर्शनरूप स्वप्ननी प्राप्ति थती नथी केमके विषयसुखनी आसक्तिथी चारित्ररुप धननो लाभ थतो नथी / / 103 / / कहमवि देवबलेण य लाहो सुविणस्स हवइ णेव पुणो / एवं अणोरपारे संसारे सदसणं खु मणुयत्तं / / 104 / / भावार्थ:-कदाचित् कोइ उपाये देवताना बलवडे करीने तेवा स्वप्ननी फरीथी प्राप्ति थवी शक्य छे, परन्तु आ अपार संसारसमुद्रमां सम्यग्दर्शनसहित मनुष्यपणुं प्राप्त थQ तो घणुंज अशक्य छ / / 104 / / इय छट्ठो दिट्ठतो सुमिणयणामा मए विर्णािटो / नरभवलखट्टाए लिहिओ पवयणसमुद्दाओ // 105 / / भावार्थ:-आ प्रमाणे चंद्रस्वप्ननामनो छदा दृष्टांत शास्त्रसमुद्रमांथी उद्धरी में मनुष्यभवनी दुर्लभता