________________ 112 : : नरभवट्टितोवनयमाला भक्तिपूर्वक विवेकसाथे प्रश्न करे छे / / 97 / / जह कण्णा तह विरई पाणिग्गहणं कराविया तेण / जह पंचदिव्वकलियं रज्जं पत्तं वरं ज्झत्ति / / 98 / / जह पंचदिव्व पंच य महत्वयालंकियं चरणधम्भ / संविग्गमुणिहिं विहियं तस्स य आयरियपयरज्जं // 99 / / .... भावार्थ:-कन्याना पाणिग्रहण [हस्तमेलाप] रूप विरतिनो स्वीकार अने पंचदिव्यरूप पवित्रपंचमहाव्रतवाला चारित्रधर्मनी प्राप्ति अने राज्यरूप सुविहित मुनिओथी स्वीकारायेल आचार्यपद जाणवू / 98-99 / सुणिऊण तस्स रज्ज अण्णे पासंडिया विचितेइ / जह इमिणा लद्धफलं तहा न अम्हाण लाहोत्ति / / 100 / / - भावार्थ:-ते मूलदेवने मलेला राज्यने सांभलो पेला रंक जेवा अन्यतीथिको विचारे छे के जेम एणे (मूलदेवे) स्वप्नना बलथी आ. अत्युत्तम राज्य मेलव्यु तेम अमे केम प्राप्त करो शकता नथी / 100 / लन्भामि पुणो सुदिणं जइ तो पभणामि बुहजणस्स पुरो / इय चितिऊण निद्धं-धसकिरियाई किलिस्सति / / 101 // / ___भावार्थ:-जो तेवु स्वप्न फरीथी अमने प्राप्त थाय तो स्वप्नना जाणकार एवा पंडितो पासे निवे दन करीये, एवा विचारथी अन्यमतवाला संघलाओ अज्ञानक्रिया करवामां ज अंध थइ - क्लेश पामे छे