________________ 1 चुल्लक दृष्टांत : भगवान धर्मक्षेत्रमा धर्मचक्रवर्ती होय छे / / 115 / / जह सो दुहिओ विप्पो तह संसारी जणो मुणेयव्यो / मिच्छत्तदरिद्देण य दुत्थो अत्थप्पसंगो य // 116 / / भावार्थ:-जेम दरिद्रताथी ते ब्राह्मण बहुदुःखी हतो तेम संसारी जीव पण मिथ्यात्वरूप दरिद्रताथी दु:खी होइ कोइ साराफलनी इच्छा धरावे छ / 116 / जीण्णोवाणचिहि दिट्ठो दोवारिएहिं जह चक्की / सुपसन्नकम्मविवर-पडिहारपरप्पसाएण / / 117 / / भावार्थ:-जेम ते ब्राह्मणने राज्यदर्शनमां जीर्णजोडाओ सहायक थया ने दरवानोए तथा अंदरना पोलीयाओए मोटी महेरबानी बतावी तेम अहिं कर्मविवर एटले ग्रंथीभेद थयाथी मोटी अनुकूलता प्राप्त थइ // 117 // सुहसामग्गिधएहि दिट्ठो तह तीत्थधम्मवरचक्की / तुद्रेण तेण दिण्णं महप्पसाएति पवरवरं // 118 / / भावार्थ:-जेम ब्राह्मणने राजदर्शनमां ध्वज एक सामग्रीरूपे हतो, तेम अहिं शुभपुण्यसामग्रीथी धर्मचक्रवर्तीतीर्थंकरन दर्शन प्राप्त थाय छे ने ते तुष्ट थइ चक्रवर्तीनी पेठे पोतानी महेरबानीरूप वरने आपे .छे // 118 // जह सा दिअस्स भज्जा दुट्ठमणा या अलच्छिसारिच्छा / तब्धयणेहि भिक्खं पत्थई मोत्तूण वररज्जं / / 119 / /