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________________ 30 : : नरभवदिळूतोवनयमाला छण्णवइगामाणं कोडीओ तत्थ कुलसहस्साई / . .. कइया भारहपज्जत-मेस संजायपुण्णवरो / / 112 / / भावार्थ:-छन्नुक्रोड तो गामो छे, जमां हजारो कुल छे तेवा भारतवर्षनो छेडो पूर्ण वरवालो ब्राह्मण एकेक दिवसे एकेक घरे जमता क्यारे पामे ! / 112 / तइया वाससहस्सं संभवइ आउयं नराण परं / ... कह एय कालजीवी नयरस्स वि लहइ पज्जतं // 113 / / ___ भावार्थः-ते वखते मनुष्योनुं वधारेमां वधारे हजार वर्षनुं आयुष्य हेतुं एटला काल सुधी जीवनारो नगरनो पण पार शी रीते पामी शके ? तो आखा भारतना छेडानी वातज क्यां रही / / 113 // एवं पुनरवि दुलहं जह चविकगिहमि भोयणं तस्स / तह मणुयत्तं जीवाण जाण संसार कांतारे / / 114 / / भावार्थ:-आ प्रमाणे ते ब्राह्मणने फरीथी चक्रवर्तीना घर- भोजन जेम दुर्लभ है, तेम मनुष्यपणुं पण फरीथी मलवं अत्यंत दुर्लभ छे / / 114 / / अत्रोपनय योजना, यथा___ अहींया दृष्टांत घटावे छे, जेम-2.. जह सो साहियभरहो चक्की राया य बंभदत्तो य / . तह तीत्थयरो धम्म-चक्कवट्टी सकारुण्णों / / 115 // भावार्थ:-जेवी रीते भारतने साधी ब्रह्मदत्तचक्रवर्ती राजा थयो हतो तेवी करुणाकर तीर्थंकर.
SR No.004393
Book TitleNarbhavdrushtantopnaymala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1996
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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