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________________ 32 : : नरभवदिळूतोवनयमाला भावार्थ:-जेम ते ब्राह्मणनी हलका मननी कंगाल जेवी स्त्री हती तेणीना कथनथी ते ब्राह्मणे उत्तमराज्यनी उपेक्षा करी मात्र भोजनज़ मांगी लीधुं 119 दुट्टकम्मपयडिदिइतरुणीपरवसो तहा जीवो / हिच्चा चरित्तरज्ज अहिलसइ विसयसुहभिक्खं // 120 // भावार्थ:-तेवी रीते दुष्ट अष्टकर्मप्रकृतिस्थितीरूप स्त्रीनी जालमा फसाइ संसारी जीव पण उत्तमचारित्रनी उपेक्षा करी विषयसुखनी भीक्षाने मांगी ले छे // 120 // तो भणइ धम्मचक्की किमिय पत्थेइ महू पसन्नमणे / वरनाणदसणचरित्तरजं तुम्भं पयच्छामि, / / 121 / / भावार्थ:-त्यारबाद धर्मचक्रवर्ती कहे छ केहुं प्रसन्न छु छतां तुं आ तुच्छ शुं मांगे छे, जो तारी लालसा होय तो उत्तमज्ञानदर्शनचारित्ररूप राज्यने आपुं / / 12 / / नो बुज्झइ सो मूढो हिय में भासिओ अ सइसया / रियभोयणुव्व तस्स य चक्किप्पसाओ पुण दुलहो // 122 / / भावार्थः-आम अनेकवार हितावह कह्यां छतां पण ते मूढ समजतो नथी चक्रवत्तिना अनुग्रहरूप भोजन- फरीथी प्राप्त थर्बु जेम ब्राह्मणने अत्यन्त दुर्लभ छे तेम तीर्थंकरनो प्रसादपण धर्मप्राप्तरूप होय ते पण अत्यन्तदुर्लभ छे // 122 / / .
SR No.004393
Book TitleNarbhavdrushtantopnaymala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1996
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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