________________ 1 चुल्लक दृष्टांत : कहमवि देवबलेण लहइ पुणो भोयणं च सो विप्पो / जाएइ चक्की तत्थ य भोज कल्लाणनामाणं // 123 // भावार्थः-कदाचित् देवानुग्रहथी ते ब्राह्मण फरी पण चक्रवत्तिनो प्रसाद मेलवी शके परंतु बोधिबीज (सम्यक्त्व) विगेरे गुणो विना जीव तो कोइपण रीते मनुष्यपणुं मेलवी चथी शकतो // 123 // / हवे चालतो कथाने लंबावे छे / / अह अण्णया य अण्णो समागओ पुव्वसंगओ विप्पो / जाएइ चक्की तत्थ य भोज कल्लाणनामाणं // 124 / / भावार्थः-एकदा ते अन्य पूर्वपरिचित ब्राह्मण आव्यो ने चक्रवत्ति पासे पोताना उपकारना बदलामां चक्रीने खावा लायक कल्याणनामनुं भोजन माये छे / / 124 // तो भणइ दीयं चक्की नेयं तुह जिज्जए महाभोज / घयजु तं परमण्हं उयरे जह सारमेयाणं // 125 / / . भावार्थः- उत्तरमा चक्रबत्तिए ब्राह्मणने कह्य के-हे द्विज ! तने आ भोजन पची शकशे नहिं जेम घृतथी पूर्ण परमान्न (खीर) कुतराओने पचती नथी तेवी रीते आ भोजन तारे माटे अतिगरिष्ठ छे / / 125 / /