________________ 102 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला भावार्थ:-त्यारबाद बाकी रहेला अडदना बाकु. लाओवडे तेणे भोजन कयं, अने अमृतमय भोजननी पेठे, तेथी ( बाकी रहेल बाकुलाथी ) अपूर्वतृप्ति संपादन करी // 6 // वेण्णायडतनयरं पओसकालंमि पाविओ तत्थ / पंथिसहाए सुत्तो पभायंसमयंमि पेच्छेइ / / 64 // पडिपुण्णसोममंडल-मइधवलपहापासियदिसोहं / एज्जंतमुयरदेसे पेच्छेइ अण्णो वि तं तत्थ // 65 // भावार्थ:-त्यारबाद सांजने वखते बेनातटनगरमां आवी पहोंच्यो अने मुसाफरखानामां सुइ गयो, प्रभात वखते एटले पाछली रातो अतिप्रभाथी समस्तदिशाओने उज्वल करनार अने परिपूर्णमंडलवाला चंद्रने उदरमां [पेटमां] प्रवेश करता स्वप्नमां जोयो तेज वखते बीजा एक मुसाफरे पण स्वप्नमां तेवूज जोडे // 64-65 // पडिबुद्धा ते जुगवं हट्टा सुविणेण तंमि तओ कालं / अइमंदभागधेओ कप्पडिओ भणइ सुविणमिणं // 66 / / सुविणफलं पहियाणं पुरओ पुच्छेइ ताव एक्केण / घयगुललित्तयमंडय-लाहो तुज्झत्ति वाहरियं // 67 // भावार्थ:-बन्ने आवा उत्तमस्वप्नथी प्रमुदित (हर्षवान्) थइ साथेज जाग्या, परंतु ते बन्नेमांनो