________________ 6 स्वप्न दृष्टांतः : : 109 भावार्थः-आ वात पहेला पोतानी साथेज सरखं स्वप्न जोनार रंकने मालुम ( खबर ) पडी अने ते रंक विचारवा लाग्यो के मने आ मूलदेव जेवं राज्य केम प्राप्त न थयु? केमके में पण तेना जेवू स्वप्न जोयु हतु त्यारे लोकोए जणाव्यु के तेमां फक्त तारी अणसमजपणानोज दोष छ जो तु विज्ञानवान होत तो तने पण आ मूलदेव जेवु फल प्राप्त थात 84 एत्तो जमण्णमेयं सुविणं लब्भामि तं कहिस्सामि / निउणस्स कस्सइ जेण हुज्ज जइ रज्जसंसिद्धी // 89 // * भावार्थ:-आ वात सांभली ते रक मनुष्ये विचार्य के जो तेवु स्वप्न फरीथी मने आने तो कोइ हुंशीयार जाणकारने निवेदन करुं के जेथी मने पण तेवा राज्यनी प्राप्ति अवश्य थाय // 89 // दहितक्कपउरभोयणपरायणो सोवि रोरो जहिच्छाए। मुविणं मग्गंतो सो किलिस्सिओ कालमइबहुयं / / 90 // .. भावार्थ:-आवा विचारथी दहि, छाशथी प्रचुर भोजनमांज तत्पर थइ तेवा स्वप्ननी - आशामां ते रंक घणा कालसुधी दुःख भोगवतोज गयो // 90 // जह तस्स य सुविणस्स प्र लाहो. अइदुल्लहंतहा भट्ठ / मणुयत्तं मणुयाणं अपारसंसारजलहिमि / / 91 // भावार्थः-जम ते रंकने फरी तेवु स्वप्न आव