________________ 110 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला अत्यंत दुर्लभ छे तेवी रीते आ अपारसंसारमा हारी जवायेल मनुष्यपणुं फरीथी प्राप्त करवु अत्यंत दुर्लभ छे // 91 / / अत्रोपनययोजना यथा हवे दृष्टान्त घटावे छे, जेमविण्णाणकलाकुसलो जीवो संसारी मूलदेदुव्व / जह जुयवसणवसणो तह प्रमायव्वसणदुत्थो // 12 // भावार्थ:-मूलदेवनी पेठ आ संसारमा संसारीजीव विज्ञानकलाकुशल जाणवो, जेम ते मूलदेव अनेक व्यसनोथी घेरायो हतो रोम संसारीजीव पण प्रमादना दोषथी माठी स्थितिमां पडेलो होय छे / / 92 / / जहावंती तह नरगई जह गणिया तह य धम्मसद्धाय / जह अक्का तह अरुई जह अयलो तह अहम्मनिवो / / 93 / / भावार्थ:-जोम अवंतीनगरी हती तेम अहीं नर (मनुष्य) गति जाणवी, देवदत्तागणिकाना ठेकाणे धर्मश्रद्धा अने अक्काना स्थानमां ( ठेकाणे ) अरुचि तेमज अचलना स्थानमां अधर्मराजा जाणवो // 93 // जह अडवी तह भववण-गहणे विप्पो तहा य विवहारो। जह दाण मासाण पुण्णं मग्गाणुसारि तहा / / 94 // भावार्थ:-महा अटवीना स्थानमां गहनसंसार,