________________ 7 राधावेध दृष्टांत: : : 117 कंचुइणा संलतं सा एसा देव ! मंतियो धूआ। जो परिणीऊण मुक्का तुब्भेहिं पुव्वकालंमि // 8 // भावार्थ:-उत्तरमां कंचुकीए (अंतेउरना रक्षके) जणाव्यु के हे नरेश ! आ मंत्रीनी पुत्रो छे, जेणीने आपे प्रथम परणीने ज अंतःपुरनी अंदरज राखेल छे / / 8 / / एवं भणिया राया तीए समं तं करेइ संभोग / उउण्हार्यात्त तहच्चिय पाउन्भूओ य से गम्भो // 9 / / भावार्थ:-आ प्रकार- कंचुकीन कहे, सांभली ते राजा तेणीनी साथे विलासमां फसी गयो अने अनुक्रमे ते मंत्रीपुत्रीने ऋतुस्नाने गर्भ रह्यो / // 9 // अह उ पुत्वमच्चेण आसि भणिया जहा तुहं पुत्ती / व ज गम्भो जं च नरिंदो समुल्लवइ // 10 // ___ भावार्थ:-प्रथम मंत्रीए पोतानी पुत्रीने का हतु के-हे पुत्रि ! ज्यारे तने गर्भ रहे त्यारे ते वात मने जणाववी केमके हुँ एहवं काम करीश के तने राजा पोते पोतानी मेले बोलावे // 10 // तं साहज्जइ तइया तहत्ति तइए वि सव्ववृत्तंतो / सिट्ठो पिउणो तेणा वि भुज्जखंडंमि लिहिओ सो // 11 // ... भावार्थः-पिताना आ कथनने मान आपी तेणीए