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________________ 116 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला - भावार्थ:-प्रेमने पराधीन थयेला एवा राजाए आ कोनी पुत्री छे ? तेवू सेवकने पूछयु, सेवके का-हे देव ! आ मंत्रीनी पुत्री छे, तेवो उत्तर परिजन तरफथी मलतांज तेणीना उपर विशेष अनुरागवान् थइ राजाए अनेक प्रकारे मंत्री पासे मागणी करी छेवढे तेनी साथे लग्न कर्या बाद तुरतज तेणीने अंतःपुरमा मोकलावी दीधी // 4-5 // अण्णण्णपवररामा-पसंगवासं गओ य नरवइणो। विस्सुमरिया चिरेण य दलृ 'आलोयणठियं तं / / 6 / / नंपियमणेण ससहर-सरिच्छपसरंतकतिपब्भारा / का एसा कमलच्छी लच्छीविव सुंदरा जुवई ? / / 7 / / भावार्थ:-परंतु राजा तो अन्यान्य (बीजी बीजी) प्रवरस्त्रीओना प्रसंगमां लपटाइ गयो अने घणाकाल सूधी मंत्रीपुत्रीने भूलीज गयो, परंतु क्यारेक ते मंत्रीपुत्री अंतःपुरमांज दृष्टिगत थता राजाए नोकरोने पूछयु के चंद्रना निर्मल बिंब जेवी कान्तिने धारण करनार कमलाक्षी ( कमलना जेवी आंखवाली ), लक्ष्मीना जेवी आ सुंदर युतति (स्त्री) कोण छे ? // 6-7 // 1 ओलोयण इत्यपि.
SR No.004393
Book TitleNarbhavdrushtantopnaymala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1996
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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