________________ 126 : : नरभवदितोवनयमाला भावार्थ:-ते ज पुरुषो क्षोभ पामे छे के जेओ विविधकलाचातुरीने नथी धरावता (जाणता), हे निष्कलंककलागुणनिधानपुत्र ! तारा जेवा निपुणोने तो क्षोभनो संभव केम होइ शके ? // 39 // इय भासिओवि घिडिम-मवलंबिय सो मणागमवियट्टो' / कहमवि गेण्हेइ श्रणुं पकंपिरेण करग्गेणं // 40 // ___ भावार्थ:-आ प्रमाणे वारंवार कहेवाथी ते ज्येष्ठ (मोटा) पुत्रे महामुसीबते थोडीक धीठाइ अवलंबी अने कंपायमान हस्तना अग्रभागथी धनुष्यने धारण कर्यु // 40 // सव्वसरीरायासेण कहमवि आरोहिऊण धणुदंडं / जत्थ य तत्थ य वच्चओ मुक्को सिरिमालिणा बाणो / / 41 / / भावार्थ:-शरीरना सघला बलथी घणी मुश्केली वडे धनुष्य उपर पण चढावी लक्ष्य विनाज अनियतदिशामां तेणे (श्रीमालीए) बाण छोडयुं // 41 // थंभे अन्भट्टित्ता झडित्ति सो भंगमुवगओ य तणु / लोगो कयतुमुलरवो निहुय हसि उ समारद्धो // 42 // भावार्थ:-ते बाण थांभलासाथे अफलाइ जल्दीज भांगी गयुं, सभामां बेठेला प्रेक्षकजनोए पण कुतू 1 मविअड्ढो इत्यपि