________________ 7 राधावेध दृष्टान्त: : : 125 भावार्थः- ए मुजब ज राज्यलक्ष्मी ने प्रत्यक्ष शान्तिस्वरूप आ राजकुमारीने परणी ले, परंतु तारे फक्त कुशलपणाथी राधावेध करी योग्यता बताववी जोईशे / / 35 / / एवं वुत्ते रण्णा संखोहं पाविओ य वुड्ढसुओ / लज्जायमाणवयणो दीणमणो उढिओ थद्धो // 36 // ___ भावार्थ:-आ प्रमाणे पिताना * वाक्यो सांभली ज्येष्ठपुत्र श्रीमाली क्षोभ पाम्यो, लजितवदने उभो थयो, परंतु निश्चेष्ट [जड जेवो] स्तब्ध थइ गया।३६। कि कत्तव्वयमूढो अपुरिसक्कारथामगुणहीणो / विहलाभिमाणहिट्ठो थरहरियतणुत्ति तह दिट्ठो // 37 // ___ भावार्थ:-किं कर्तव्यता मूढ तेमज पुरुषाकार (पराक्रम ने बल) विनानो अने कंपता शरीरवालो ते ज्येष्ठपुत्र राजानी दृष्टिए पड्यो // 37 // पुणरवि भणिओ रण्णा संखोहं वज्जिऊण हे पुत्त! / कुणसु समीहियमत्थं कित्तियमेत्तं इमं तुब्भ // 38 // भावार्थ:-ते जोइ राजाए कह्य-हे पुत्र ! क्षोभ मूकीने इच्छित अर्थने जलदी सिद्ध कर, आथी तारोज यश थशे, गभरावानी कशी पण जरूर नथी / 38 / संखोहं पुत्त ! कुणंति ते परं कलासु जे न वियड्ढा / तुम्हसरिसाणं स कहं ? अकलंककलागुणनिहाण ! // 39 / /