________________ 124 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला भावार्थ:-अने नगरनी अंदर वसनारा मनुष्यो पण बेसी गया, राजाए पोताना तमाम पुत्रोने मंड. पमां बोलाव्या, परणवाने आतुर थयेली राजकुमारी पण वरमालाने लइ त्यां उपस्थित थइ मंडपमा आवी] // 32 // अह सव्वपुत्तजेट्टो सिरिमाली राइणा इमं वुत्तो / हे वच्छ ! मणोवंछियमवज्झमेत्तो कुणंसु मज्झ / / 33 // भावार्थ:-त्यारबाद नरपतिए पोताना वडील (युवराज) पुत्रने का के-हे पुत्र ! तुं पोतानी कलाने बतावी मारा मनोवांछितकार्यने सिद्ध कर // 33 // धवलसु नियकुलपरम-मुइण्णं नेसु रज्जमणवज्जं / गेहाहि जयपडायं सत्तूण य विप्पियं कुणसु // 34 / / भावार्थः-पोताना श्रेष्ठ अने पवित्रकूलने प्रस्तुत कार्य साधी उज्वल कर अने काइपण जातनी खोटखामी विनाना आ श्रेष्ठ राज्यने मेलव, अने जयपताकानो तुं स्वीकार कर ने शत्रुओने दुःखदायक थाय तेम कर // 34 / / एवं रायसिरिपि पच्चक्खं निव्वुइं नरिंदसुयं / प रणेसु कुसलयाए राहावेहं ल काउं // 35 / /