________________ 104 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला प्रातःकालना आवश्यक कृत्यो करी अंजलीमा (हथेलीमां) पुष्पो भरी स्वप्नना फल जाणनार पासे गयो // 7 // परिपूजितच्चरणो काऊण पयाहिणं पणयमउली / . बद्धंजली निवेएइ ससहरपाणं सुविणयंमि / / 71 // भावार्थ:-अने तेना चरणो पूजी, प्रदक्षिणा दइ, मस्तक नमावी, हाथ जोडी, स्वप्नमां करेल चंद्रपाननुं स्वप्न स्वप्नज्ञ (स्वप्नना फलने जाणनार स्वप्नपाठक)ने निवेदन कर्यु // 71 / / तो सुविणपाढगेणं रज्जफलं निच्छि ऊण तं सुविणं / . लावण्णामयपुण्णं कण्णं परिणाविओ पढमं / / 72 / / ___ भावार्थ:-स्वप्नना पाठके पण ते स्वप्न, फल आने (मलदेवने) अवश्य राज्यप्राप्ति थशे तेवो निश्चय थवाथी लावण्य (रूपरंग)थी परिपूर्ण पोतानी कन्याने पहेलाज ते मूलदेव साथे परणावी दीधी / / 72 / / एसो ते रज्जफलो सत्तदिणभंतरे फुडं सुविणो / काउं तहत्ति अंजलि-पुडेण पडिवण्णमेएणं / / 73 / / भावार्थ -अने त्यारबाद कह्य के-तमारं आ स्वप्न खरेखर सात दिवसमां राज्यप्राप्तिनुं सूचक छ, माटे तमने सात दिवसमां राज्य मलशे ते सांभली मूलदेवे पण हाथ जोडी " तथास्तु." शब्दथी स्वप्न