________________ 3 सर्षप दृष्टांत : ': 57 तरेह तरेहना धान्यनी जातिओ, जेम त्यां डोशी छ तेम अहिं अविरति (पापारंभथी अनिवृत्ति) छे, जेम डोशीने दारिद्र हतुं तेम अहिं मिथ्यात्वरूप दारिद्र अविरतिरूप डोशीने जाणवू // 7 // संकाइदुब्बलंगी नत्थिक्कजराइजीण्णजरदेहा / जिणवयणसरिसवाणं पत्थो तह दिद्विवाओ य // 8 // भावार्थः-शंकाथी अविरतिरूप डोशीने दुर्बल अंगवाली जाणवी, नास्तिकपणारूप घढपणथी तेणीना तमाम अंगो जीर्ण थयेल छे तेम जाणवू, जिनवचनरूप सरसवने दृष्टिवाद (बारम् अंग) रूप प्रस्थ (धान्य भरवानुं मापः) जाणवू // 8 // सुविवेयसुप्पगेहिं विगंछए णो वि कम्ममिलियाणं / / जिणवयणसरिसवाणं जह थेरा अविरइ तहा य // 9 // भावार्थ:-सद्विवेकरूप सुपडावती पृथक्करण करी कर्मरूप बीजा धान्यो साथे मलेल जिनवचनरूप सरसवोने जुदा काढवा माटे अविरतिरूप डोशी समर्थ थती नथी // 9 // एवं दसणभट्ट नरो न पावेइ पुणो वि मणुयत्तं / घण्णयनिदसणेण य दुलहो लाहो तहा जाण // 10 // भावार्थः-ए प्रमाणे सम्यक्त्वयुक्त मनुष्यजन्मने