________________ 74 : : नरभवटुिंतोवनयमाला ... भावार्थ:-जेम ते शेठना छोकराओने पोते वेची मारेला रत्नोनो फरी समागम थवो दुर्लभ छे, तेवी रीते मनुष्य जन्मथी भ्रष्ट थएला जीवोने पण फरी मनुष्यनो जन्म. मलवो महा दुर्लभ छे / / 13 / / घेत्तूणं रयणाणि कहमवि तेसि समागमो हुज्जा / देवःपहावेण पुणो मणुयत्तं णो तहा भटुं // 14 // भावार्थ:-कोइपण उपायथी देवतानी महेरबानीथी ते गएला रत्नोने लइने समागम थाय पण प्रमादथी भ्रष्ट थएल मनुष्यभवनो समागमतो फरी मलवो दुर्लभ छे / / 14 / / अत्रोपनययोजना यथा अहीया दृष्टान्त घटावे छे, जेमणिच्छयविवहारमाइ-जलबहुमुल्लागमाइरयणधणो / जो सुविहियगीयत्थो सो विवहारी मुणेयव्यो // 15 // भावार्थ:-निश्चय अने व्यवहारनय विगेरे देदीप्यमान बहुमूल्यवाला आगमादि रत्नथी धनवाला जे सुविहितगोतार्थ होय ते व्यवहारी [धनदत्तश्रेष्ठी] जाणवा // 15 // पासत्थोतनकुसील-संसत्तहाच्छंदरूवपंचसुया / . . बज्झसुहबद्धचित्ता अण्णोण्णं ते परममित्ता // 16 // .