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________________ : नरभवदिठूतोवनयमाला करनारो अने महाव्रतनो त्याग करीने प्रमादमां पडेलो ते देशथी पासत्थो कहेवाय छे. 1 हवे गलियाबलदनी जेम जे महाव्रतादिना भारने न उपाडे ते उसन्नो जाणवो, ते पण देशथी अने सर्वथी, एम बे प्रकारे छे, तेमां शेषकाले कारण विना पाटी पाटला वावरे, अमुक श्रावकना घरनुं लावेलुज म्हारे भोजन लेवं इत्यादि दोषयुक्त पिंड लेवावालो जे होय ते. सर्वथी उसन्नो कहेवाय छे, तथा देश थकीतो प्रतिक्रमणादि ठेकाणा ओच्छा वधतां करे, अने सुगुरुनं वचन जालवे नहि अने राजवेठी काम करनार अने उपयोग विना क्रिया करनार, एम करवाथी आगामिभवे जेने चारित्र मलवं महादुर्लभ छे तेवो अने पोताना शिष्योने पण क्रियामां शिथिल करनार होय ते देशथी उसन्नो कहेवाय छे. 2 हवे कुशीलनुं स्वरूप कहे छे-ज्ञानदर्शनचारित्रना भेदथी त्रण प्रकार- कुशील होय छे, एटले त्रण रत्नोनी आराधना न करे तो कुशील जाणवू, जेमके ज्ञानथी "काले विणए बहुमाणे" इत्यादि ज्ञानाचारनो भंग करे, तथा दर्शनथी "निस्संकिय निकंखिय" इत्यादि दर्शनाचारनो भंग करे तथा चारित्रथी.
SR No.004393
Book TitleNarbhavdrushtantopnaymala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1996
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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