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________________ 6 स्वप्न दृष्टांत : भावार्थ:-कूटिनीए आ वात जाणीने का केहे पुत्री! जे रुचतो होय तेने प्रवेश कराव, चित्तमां खेद शामाटे करे छ, प्रसंग आव्ये देवदत्ताऐ मूलदेवनेज आववा दीधो परंतु धनलुब्धा कूटिनीने फरी आ वात न रुचवाथी इनकार (आनाकानी) करवा लागी // 16 // पभणेइ देवदत्ता नाहं लुद्धा धणेण किंतु गुणे / सम्वोवि गुणसमूहो निवसइ इह मूलदेवंमि / / 17 / / ___ भावार्थ:-देवदत्ताए कह्य-हुं धननी लालचुं नथी पण गुणनी लालचुं. छ. सघला गुणो मूलदेवमां छ // 17 // भणिया सा अक्काए अणेगगुणगणसमण्णिओ अयलो / एमा जइ तुह इट्ठो सा भणइ किज्ज तो परिच्छा / / 18 / / भावार्थ -अका (माता) ए कह्य-हे पुत्रि ! जो तने इष्ट होय तो अनेकगुणोना समूहे करीने सहित एवो अचलसार्थवाह छे, पुत्रीए कह्य ठीक, परंतु तेनी परीक्षा करो ? तो अयलस्स समीवे दासी संपेसिया जहा भणसु / तुह वल्लहाए जायं उच्छुण य भक्खणे चोज्जं / / 19 / / भावार्थ:-त्यारबाद अचलसार्थवाह पासे दासीने
SR No.004393
Book TitleNarbhavdrushtantopnaymala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1996
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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