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________________ 88 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला भावार्थ:-श्रेष्ठ एवा विविध जातना चित्रोवाली भीतोथी युक्त, निर्मलमणिओथी सुशोभित अने उलेचसहित चमकतां रत्नोनां दीपकनी प्रभाथी नाश पामेल अंधकारवाला वासभुवनमा उद्भटशृंगार (नहीं छाजता एवा वेष)ने सजीने अचलसार्थवाह सायंकाल वखते देवदत्ताने त्यां आव्यो, देवदत्ताए पण भोजनादिकथी तेनो सारो सत्कार कर्यो, // 12-13 / / एवं तेन समं सा गमेइ कालं विसालभोगपरा / परमच्चंतसिणेहा णिचं चिय मूलदेवमि // 14 // भावार्थ:-आ प्रमाणे विशालभोगोमां तत्पर ते गणिका जो के तेनी साथे काल व्यतीत करे छे तोपण मूलदेवमां अत्यंत स्नेह धरावती हमेशां रहे छे // 14 // अक्का पभणइ एसो न पवेसइ तं नियंमि गेहमि / / खिज्जेइ किंचि चित्ते नाउं जणणी य तभावं // 15 // भावार्थः-कूटिनीए कह्य-ए मूलदेवने पोत ना एटले आपना घरे पेसवा न देवो, आवी रीतना माताना भावने जाणी ते देवदत्ता चित्तमां अत्यंत खेद करवा लागी // 15 // भणिया पुत्ति पवेमसु जो रच्चइ तुज्म झूरसि किं चित्ते / समए पवेसिओ सेो भणियं अक्काए तो एवं / / 16 / /
SR No.004393
Book TitleNarbhavdrushtantopnaymala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1996
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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