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________________ 2 पाशक दृष्टांत : : 41 के-तमाम कला ए एक पैसामांज समाएली छे, लोकमां पैसाने जेटलं मान छे तेटलं गुणोने नथी / / 7 / / अण्णावि जामिउ ममं धणट्ठा समागया हुज्ज पिऊणगेहे / सम्माणिआ ता बहुभत्तिपूवं दिणं ममं नो खलु पीइदाणं / 8 / . भावार्थः-मारी बीजी धाढ्य बहेनो पिताने घेर आवेल हती तेणीए पैसाने लइ बहुमान पामी अने मने तो पिताए जरापण दान के मान न आप्युं // 8 // सरिच्छसंबंधगुणेवि एसो अम्मापिऊहिं विहिओ पडिच्छो / दुक्खस्स हेउं सुणिऊण पुत्तो चितेइ चित्ते वसुदुक्खदुत्थो / 9 / भावार्थः-अमारो सघलीनो पुत्रीरूपे सरखो संबंध होवा छतां पण मातापिताए मोटो भेद को. पुत्र चाणाक्ये माताना दुःखनुं कारण सांभली पैसाना दुःखथी व्यग्र थइ मनमी विचार्यु / / 9 / / विज्जा समग्गा अहिया मए .. जहा तहा समज्जामि धणं जहिच्छया / * अम्मापिऊणं तह पुच्छिऊणं - सुहे दिणे निग्गमओ चणिक्को // 10 // . भावार्थ:-जे प्रकारे में सघली विद्याओगें उपार्जन कयुं छे तेवी रीते इच्छानुसार पैसो पण मेलवू
SR No.004393
Book TitleNarbhavdrushtantopnaymala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1996
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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