________________ 48 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला वत्तव्वया इत्थवि अत्थि बाढं एलोइयव्वा बुहमाणसेहिं / . सदुत्तरज्मयणपवित्तवित्ती संखेवओ इत्थ कओहियारो // 31 // भावार्थ:-अहीं पण घj कहेवार्नु छ परंतु विस्तारना भयथी अहीं संक्षेप करवामां आव्यो छे जेओ निपुणमति छे तेओए उत्तराध्ययननी पवित्र वृत्ति (टीका) जोइ लेवी / / 31 // अइदुद्धरं पव्वयनामरायं किरायरायं विहिओ सहायं / नंद हणिज्जा गहियं च पाडली-पुरस्स रज्जं समएण पत्तं // 32 // भावार्थ:-अतिदुर्धर भीलोना राजा पर्वतने सहायक करी नंदने मारी पाटलीपुत्रनुं राज्य थोडा वखतमां मेलवी लीधुं / / 32 / / रज्जाभिसेओ कुमरस्स तस्स विणिम्मिओ सव्वजणेहि तत्थ / चाणविकण्णा बुद्धिबलेहि पव्वयं __ हणिज्ज रज्जं कयभेगच्छत्तं / / 33 / / भावार्थ:-तमाम लोकोए ते चंद्रगुप्तनो राज्याभिषेक कर्यो, चाणाक्ये बुद्धिबलथी सहायक पर्वत राजने मारी चंद्रगुप्तनुं राज्य एकछत्र करी दीधं / 33 / चितेइ भंती पुररज्जभत्तं लद्धं मए णो निवनंदलच्छी / कोसं बलं बाहणरट्ठमाइ केणावुवारहिं तदज्जिणामि / / 34 / / भावार्थः-मंत्रिचाणाक्ये विचायु के में नगरनुं राज्यमात्र मेलव्युं छे नंदनी लक्ष्मी तो हाथ लागी